मंगलवार, 7 जून 2011

हर युग की कहानी नारी की जुबानी

बरसो से हम बात करते रहे हैं समानता की 
पर नारी को ही छलते आये  हैं इसकी दुहाई दे-देकर

हर युग में ही भोग्या बनती आई है नारी 
कभी सखा, कभी प्रयेसी और कभी पत्नी बनकर

रघुकुल में भी भोगा है दारुण दुःख सीता और उर्मिला ने 
एक ने काटा बनबास अरण्य में, दूसरी ने राज कुल में

यदुवंश में भी राधा ने ही काटा अपना जीवन प्रभु प्रेम में 
सनेत्र बांधी पट्टी गांधारी ने और पाया अंधत्व का दारुण दुःख

बांटी गई पांचाली पांच पतियों में जो व्याही गयी सिर्फ अर्जुन को 
कांप उठती है आत्मा जब भी सोंचती हूँ इन सबके दुःख को 

पुरुष ने तो हमेशा ही भोगा त्यागा और कष्ट दिया इन सबको 
अग्नि परीक्षा तो दी है सदैव नारी और अबला ने

कष्ट, दुःख,  विरह-वेदना सबको झेला है हर युग में उसने 
ना ही कोई युग बदला , ना ही बदली हमारी सोंच

हम कितना आधुनिक युग में चाहे जी ले पर 
त्याग बलिदान आज भी है हिस्से में तो नारी के कांधो पर..  

13 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा है आपने-आपकी इस पोस्ट का लिंक यहाँ भी है

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर.....

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

सुन्दर सार्थक रचना !

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना|

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बड़ा ही सशक्त विचार।

Jyoti Mishra ने कहा…

beautifully written..

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत अच्छा सोचती हैं ......

Vivek Jain ने कहा…

बहुत सुन्दर व सशक्त रचना|
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

रोशी जी बहुत सुन्दर लिखा है...

श्यामल सुमन ने कहा…

नारी बिन सूना जगत नारी जीवन-धार।
सृजन-भाव ममता लिए नारी से संसार।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

मुकेश कुमार तिवारी ने कहा…

रोशी जी,

त्रेता से कलियुग तक नारी के जीवन के हर पृष्ठ को पलटती हुई कविता दिल तक पहुँचती है।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

शिखा कौशिक ने कहा…

हम कितना आधुनिक युग में चाहे जी ले पर
त्याग बलिदान आज भी है हिस्से में तो नारी के कांधो पर..
sateek v marmik abhivyakti .aabhar

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

क्या कहूं.. बहुत सुंदर रचना

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