देखा आज एक पूर्ण पल्लवित पलाश का एक वृक्ष
अपनी पूर्ण विकसित शाखों को यूँ फेलाए था वो
जैसे लेने को आतुर हो प्रेयसी को अपनी बाँहों में
तन पर लपेटे था वो पीत वसन की चादर चहुँ ओर
रिझा रहा था वो अपने पीले पुष्प गिराकर अपनी प्रेयसी को
हर कोशिश थी उसकी भरसक प्रेमिका को लुभाने की
कभी देखा है ऐसा निशब्द प्रेमालाप किसी भी प्रेमी का
जो बिन बोले ही सब कुछ कह देता है पूर्न मौन रहकर