पर कुछ बन्धनों में बेडिओं में जकड़ी है वो माँ
चाह कर भी कभी कुछ ना कर पाने का मलाल करती है माँ
सर्वस्व न्योछाबर करने को हरदम तैयार रहती है माँ
बिना कभी भी यह जाने की औलाद किया करेगी ना सोचती माँ
जब आंखे होंगी कमजोर तो किया सहारा बनेंगी औलाद ?
जब शरीर थकेगा तो किया हाथ पकड़ेगी औलाद सोचती है हरदम माँ ?
जब होगी वृद्ध , असहाय तो किया बोझ उठाएगी औलाद
सोचती है माँ ?