द्रोपदी का संताप,पीड़ा ,क्या वास्तव में महसूस भी कोई कर पाया
पिता ने निज स्वार्थ की खातिर अग्नि, यज्ञे द्वारा था उसको पाया
प्रियतम का स्वप्न जो था वर्षों से संजोया द्रोपदी ने आज निज समक्ष पाया
पांच पांडवों में बाँट दिया सास ने तत्काल शायद समझकर उसको निर्जीव काया
नव वधु के जखमों का हिसाब और ,दिल की किरचों को समेटना है नामुमकिन
कर्ण भी है हमारे इतिहास का बेहतरीन योधा जो सुलगता रहा गहन पीड़ा से सदेव
सगी मां के समक्ष हुआ था उत्पीडन अवेध संतान का था उसने तमगा पाया सदेव
मर्मान्तक ताने ,उपहास थे जीवन भर झेले ,भाइयों से सिर्फ उपेक्षा को पाया सदेव
ममता तो ना दी मां ने पर सगे बेटे के जीवन दान को किया उसका उपयोग
समाज से बहिष्कृत, योधा पग पग हुआ सदेव जख्मी ,बयाँ न कर सका इतिहास