बुधवार, 7 सितंबर 2022

 ज़िंदगी और पहाड़ी सड़क में बहुत समानता होती है

कब ऊंचाई ,कब ढलान पता ही नहीं चलने देती है
कब हम आसमान से नीचे टपकते हैं पता ना है चलता
कैसे हम समतल डगर पर आ गिरते अंदेशा ना होता
ज़िंदगी में कब अचानक कुहासा आ जाए ज्ञात ना होता
जैसे पहाड़ पर चलते अचानक बदरी छा जाए ज्ञात ना होता
सबक देती हमको यह डगर ज़िंदगी का भरपूर जो हमको पता ना होता
कामयाबी और नाकामी रहो दोनों के लिए तैयार ,जैसे पहाड़ी यात्रा में होता
कब कोहरे की शक्ल में मुश्किल छा जाए जिसका एहसास भी ना किया होता
खुद को सम्हाल ,एक एक कदम जैसे बड़ाते पर्वतीय यात्रा में हम खुद को
वही फलसफा है ज़िंदगी का ,सावधानी हटी,दुर्घटना घटी ,सम्हालना है खुद को
-- रोशी
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