शुक्रवार, 30 सितंबर 2022

 ज़िंदगी का हर गुजरता लम्हा ,वापस नहीं आता उसका आनंद उठाओ

जैसे जीना चाहो खुल के जियो ,जितनी साँसे है उनका पूरा लुफ्त उठाओ
मन का खाओ-पीयो,जो दिल चाहे पहनो ,खुद के लिए भी जीना सीख जाओ
देश -विदेश की सैर करो ,बड्ते कदमों को ना रोको ,सारा जग घूम डालो
ज़िंदगी और सेहत मिली है बेशकीमती जी भरकर उसका लुफ्त उठा डालो
हर गुजरता लम्हा है नए दौर में मुश्किल खुद का जीवन आसान बना लो
परिवार के साथ गुफ्तगू ,दोस्तों से जी भर दिल्लगी आज ही कर डालो
जो ठाना हो करने का आज से ही मकसद को अंजाम तक पहुंचा डालो
दिल ,दिमाग जो कहे करने को नेक विचार पर अमल आज ही कर डालो
जीवन की घड़ियाँ रेत की मानिद फिसल रहीं हर घड़ी जो जी चाहे कर डालो
ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा ,कथन को दिल ,दिमाग में बैठा डालो ,बैठा डालो
--रोशी
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गुरुवार, 29 सितंबर 2022

 चाट के ठेले के पास देखे दो बालक चुपचाप ,लालच भरी निगाह से खड़े

निस्तेज चेहरा ,जीर्ण -शीर्ण काया,धूल -मिट्टी से अटे ,कुछ पाने की इच्छा से खड़े
दयनीय भाव से भीख मांगते ,शायद भूखे भी थे दिखते ,उम्मीद से कुछ पाने की
बार -बार करते थे गुजारिश , पैसे दे दो खाना नहीं मिला, गुजारिश थी पैसों की
हमने कहा पैसे नहीं कुछ खिला देते हैं ,तत्काल थे वो लपके ठेले पर सब खाने को
क्या खाओगे ?यों देखा मानो आतुर थे वो मिनटों मे समूचा ठेला खाने को
पल भर में खत्म किया खाना ,देख उनको दो अश्रु हमारी भी आँख से टपके
भूख क्या होती है ?,भोजन की अहमियत का ना था एहसास हुआ हमको कभी
आज था जाना अपनी भरी थाली का मोल ,जब जेब में ना हो पास टका कभी
अन्न का दाना है कितना बेशकीमती ,जब थाली सिर्फ दूर से देखनी हो कभी
शुक्र अदा करो उस ईश्वर का जिसने अता की इतनी नेमते ,जानकर आपको खास
बेशकीमती है यह भोजन की थाली, जिसको है ना मयस्सर ,पूछो उससे आज .....
--रोशी
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 बुराई पर अच्छाई की जीत जग विदित है

दशहरे पर रावण का दहन भी सदेव से निश्चित है
इतने ज्ञानी ,ध्यानी रावण ने क्यों किया घिनौना कर्म ?
हो गया समस्त वंश का नाश ,अगर ना किया होता ऐसा अधर्म
पुत्र ,भाई, पत्नी सबने था उसको रोका ,पर विधना ने तो लिख रखा था कुछ और
स्वर्ण-जड़ित लंका हो गयी खाक गर किया होता सबकी बातों पर रावण ने गौर
महान योद्धा ,परम ज्ञानी ,महान शक्तिशाली पुरशो में नाम दर्ज़ होता इतिहास में
सीता ,विभीषण ,हनुमान के साथ गर ना किया होता अत्याचार अपने राज्य में
विधना ने तो लिखा था रावण के भाग्य में कि लंका मिल जाएगी पलों में खाक में
गर सुनी होती अपनों की ,ना होता यों दहन हर वर्ष ,नाम होता दर्ज़ इतिहास में
--रोशी
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रविवार, 25 सितंबर 2022

 बेटियों की निश्चल,मासूम मोहब्बत के लिए पड़ जाता है हमारा यह जीवन कम

तोतली आवाज़ें ,पायल की रून-झुन जब गूँजती दिल हो जाता बाग- बाग हरदम
झट बाबा के लिए पानी का ग्लास लातीं ,माँ का दौड़ के नन्हें हाथों से सर दबाती
कभी गुड़ियौ का पिटारा खोल बैठ जातीं,कभी नन्हें हाथों से रसोई में रोटी बनातीं
कब अलमारी से माँ की चूनर ओढ़ खुद को आईने में निहारती पता ही ना चलता
कब कालेज जाने लगती? कब एकायक जवान हो जाती? महसूस ही नहीं होता
जमाने भर की दुश्वारियाँ,घर की जिम्मेदारियाँ सब चुप-चाप ओड़ लेती हैं बेटियाँ
बमुश्किल सर की चादर बचाती हैं ,और शोहदों से खुद को सहेज पातीहैं बेटियाँ
शराबी बाप ,घर की मुफ़लिसी ,आवारा भाई सब कुछ जमाने से छुपा लेती बेटियाँ
घर से विदाई के वक़्त पीहर की बरक्कत वास्ते धान बिखेर जाती हैं सदेव बेटियाँ
ससुराल के दर्द.भीतर समेट ,पति की बेबफाई का खंजर छुपा जाती हैं बेटियाँ
बेटियाँ भारी नहीं होती कभी माँ -बाप पर ,भारी होता है उनकी इज्ज़त महफ़ूज रखना जन्मदाता को
भारी होता है उनका दहेज ,,उनका ससुराल में अपमान जो मार देता बेटी के जन्मदाता को
रूह काँप जाती है माँ बाप की जब मोहल्ले में देखते कभी तेजाब से जली बेटी या ससुराल में जलाकर मारी गयी बच्ची को
ईश्वर से मांगते हैं बदनसीब जन्मदाता कि बेटी वो ना दे किसी भी गरीब को ...किसी भी गरीब को
--रोशी

शनिवार, 24 सितंबर 2022

 देखी क्या किसी की फितरत बदलते हुए,क्या बदल सका है कोई ?

कभी नहीं ,जो होती बचपन में ना बदल सका उसको ताउम्र कोई
जो मिजाज ,प्रवृति ,होती जन्मजात रहती उम्र भर साथ इंसा के
दुर्योधन रहा सदेव सज्जनों के साथ पर असर ना हुआ स्वभाव पर उसके
पूरी ज़िंदगी पैंतरों में जाती गुजर पर कामयाबी न लगती किसी के हाथ
सरल ,नम्र और मिजाज बदल कर देखो शायद तबदीली हो आपके साथ
कुछ दृष्टांत हैं इतिहास में कि हुआ आत्मा का काया -कल्प सम्पूर्ण
कौआ भी बन गया हंस और बदल गयी उसकी आत्मा सम्पूर्ण
--रोशी
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शुक्रवार, 23 सितंबर 2022

 ज़िंदगी इम्तेहान लेती है ,सौ फीसदी लेती है रोज़

हर पल दिमागी सतर्कता ,जरूरी रखना होता है रोज़
घर -गृहस्थी ,शिक्षा ,व्यापार हर छेत्र में इम्तेहान होता रोज़
सावधानी हटी,दुर्घटना घटी उक्ति इस्तेमाल होती रोज़
बड़ा मुश्किल है दैनिक रोज़मर्रा का जीवन और इसके इम्तेहान
कितनी भी सावधानी रखो ,हो जाती है कोई ना कोई चूक
भुगतना भी पड़ता है इसका खामियाजा हमको हर रोज़
सीता भी भरोसे में लांघ गयी थी लक्ष्मनरेखा एक रोज़
द्रोप्दी भी अनायास उड़ा गयी थी दुर्योधन का उपहास एक रोज़
हम रोज़ असफल होते हैं ढेरों बार ,फिर बड्ते हैं एक कदम आगे
फिर नई परीक्षा ,नए इम्तेहान देने को प्रतिदिन ,हर कदम ,हर रोज़
--रोशी
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  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...