शुक्रवार, 30 दिसंबर 2022

 साल ख़त्म होने को आ गया ,सोचा विगत वर्ष में क्या खोया -पाया

सुकून भरी जिन्दगी जी ,खुदा की नेमतों का भरपूर लुत्फ़ उठाया
अपनों के साथ जिए जीवन के बेहतरीन लम्हे और उनका आनंद उठाया
कोरोना से भी जीती जंग ,परिवार संग खुशगवारी से पूरा वर्ष बिताया
जब जोड़ -घटाव किया तो खुद की जिन्दगी को नफे में ही पाया
दोस्तों के साथ गुजारा साल बस चुटकियों में ही झट गुजर गया
हाल पूछते हैं जब वो हमारा ,उनके फ़ोन के इंतजार में दिन झट गुजर गया
छोटी -छोटी खुशियों को समेटते रहे साल कब गुजरा अंदाज़ा भी ना हुआ
है अर्ज़ उपरवाले से गुजार दे बाकी जिन्दगी यूँ ही जैसे पिछला वर्ष गुजर गया
--रोशी
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बुधवार, 28 दिसंबर 2022

 उफ़ क्या हो रहा है ?हमारे समाज को

युवक,युवतियां बेझिझक खुदकशी ,निर्मम हत्या कर रहे हैं
बिन सोचे -विचारे पीछे छूट जाने वाले परिवार को नकार रहे हैं
वृद्ध माता -पिता जिनकी शेष जिन्दगी दोजख के समान बना जाते हैं
आंख मूंद कर मोहब्बत करते हैं ,पल में रिश्ता ख़त्म करते हैं जिन्दगी हार जाते हैं
आत्महत्या कर खुद चले जाते हैं,कदाचित आकर परिवार की जिल्लत देख पाते हैं
युवा पीडी को,ऊँचे उड़ने की चाह,परिवार से विघटन शायद यह दिन दिखा रहे हैं
आधुनिकता का जमा पहने उच्च वर्ग का माहौल पथ भटकाने के वास्ते काफी है
इसकी दलदल में फंसकर अपनी सीमाएं ,माहौल ,संस्कार सब भूलते जा रहे हैं
एक दूजे का अनुसरण आँख बंद कर ,ड्रग्स ,सट्टा जैसी गंद में फंसते जा रहे हैं
परिणाम भी इसका हम सब रोज़ टीवी,अख़बार में रोज़ पड़ते आ रहे हैं
प्रेमियों की आपसी कलह हत्या,खुदकशी सरीखे संगीन परिणाम रोज़ आ रहे हैं
--रोशी
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मंगलवार, 27 दिसंबर 2022

 जिन्दगी की जरूरतें ,इचछायें जब जितनी चाहे बड़ा-घटा लो

जब चाहो चादर से बाहर पाँव निकालें, बेहतर होगा अन्दर रख लो
बचपन से बच्चों को पैसे की एहमियत सिखाओ ,बचत की उनको आदत डालो
गर सीख गए रूपये की कीमत ,तो जिन्दगी में ना खानी पड़ेगी ठोकर
वक़्त ,जरूरत के हिसाब से पैसा खर्चना भी बचपन से सिखाना होगा
बेहतर संस्कारों से, तरबियत से बच्चों का मुस्तकबिल बेहतर होगा
आज की थोड़ी से मेहनत से ,हमारी उम्दा सोच से बच्चों का कल संवर सकेगा
--रोशी
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रविवार, 25 दिसंबर 2022

 मुख में राम,बगल में छुरी रखे ढेरों बंदे मिलना आम है

हम उनको कितना पहचान पाते हैं यह हुनर हमारा खास है
इंसान को परखने का हुनर ईश्वर ने सबको बक्शा है बहुतायत में
कभी जल्दबाजी ,कभी बेबकूफी कभी बेइंतेहा भरोसा सब में
इतिहास गवाह है हमने धोखा सदेव अपनों से ही खाया है
खंजर की नोक पर भी नज़र रखो सबने धोखा उसीसे खाया है
एक दूजे से मोहब्बत के ख़ूबसूरत एहसासों से होती सबकी दुनिया मुक्कमल
गर धोखा,खंजर ना होता मोहब्बत के साथ हमारा इतिहास भी कुछ और कहता
--रोशी

शनिवार, 24 दिसंबर 2022

 सर्द मौसम ,गिरते तापमान ने कर दिया है निशब्द

ख्याल ,ख्वाब ,अहसास सब मानो सुन्न हुए ,है ना कोई शब्द
जिन्दगी भी गई है ठहर ,सड़कें भी हैं सुनसान,ना है कोई कोलाहल
आवारा घूमते कुत्ते भी है गायब ,चौकीदार भी किसी कोने में हैं निशब्द
सीटी बजाना भुला बैठा है ,जागते रहो की ध्वनि भी शायद जम गई कंठ में उसके
सर्द रात्रि में पहरा देना है उसकी मजबूरी, सुनसान सड़क पर आजू-बाजू कोई ना उसके
बेहद कष्टकारी होता है प्रकृति का कहर इसके वास्ते हैं ना कोई शब्द
--रोशी
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शनिवार, 17 दिसंबर 2022

 दंश चुभाती शीत लहर ,हाड कंपाती ठंडक

गरीब ,बेघर इंसान पे क़यामत है बरपाती बेधड़क
फूस के छप्पर को चीरकर जब अन्दर है आती शीतल बयार
नाम मात्र की कथरी में छुपा बैठा होता है गरीब का पूरा परिवार
कैसे कटती है रात सोचना भी है बहुत दुश्वार रजाई में दुबके इंसानों को
ईश्वर बस रहम कर इन बेघरों पर अब क़यामत ना बरपा ,ना तडपा इनको
मत ले इनके सब्र का पैमाना ,वैसे ही होते हैं यह बेचारे कुदरत से तडपाये
पेट की भूख इतनी तकलीफ नहीं देती जितने डंक चुभाती है शीतल हवाएं
बड़ा ही कष्टप्रद होता पूस का महीना बेघर ,गरीब बिन वस्त्रों के इंसानों के वास्ते
इंसान के साथ लावारिस जानवरों पर भी है टूटता कहर ,, शब्द ना हैं इसके वास्ते
--रोशी
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मंगलवार, 13 दिसंबर 2022

 आधुनिकता का जमा पहनाकर टीवी पर नित क्या परोसा जा रहा है

चरमराती परिवारिक व्यवस्था ,बहकती युवा पीड़ी का बदहाल चित्रण रोज़ दिखाया जा रहा है
किस दिशा में जा रहा है हमारा समाज और ,कितना पतन होना बाकी है समझाया जा रहा है
सौतेले मां -बाप ,सौतेले बच्चे किस तरह से जी रही है आधुनिक पीड़ी, सब को बताया जा रहा है
खोखले रिश्तों में आधुनिकता का रंग चड़ाकर पेश प्रतिदिन किया जा रहा है
आपसी समन्वय ,संस्कारों की धज्जियाँ उड़ा दी गई हैं ,नित प्रतिदिन उनका दोहन किया जा रहा है
पद-प्रतिष्ठा ,धन -दौलत का अँधा-धुंद प्रदर्शन इस व्यवस्था में आग में घी सरीखा काम कर रहा है
बेहूदा कहानियां पेश कर समाज को क्या सन्देश देना है ,,मकसद नहीं समझ आ रहा है
सेंसर जैसी व्यवस्था लागू कर ,इन सीरिअलों पर कुछ विराम लगाना अब जरूरी होता जा रहा है
कुछ अरसे बाद ऐसा ना हो कि टीवी खोलना भी भयंकर त्रासदी का सबब हमारे लिए बनता नज़र आ रहा है
--रोशी

सोमवार, 12 दिसंबर 2022

 जिन्दगी में बहुत कुछ है हमेशा सीखने -सिखाने को

ऊम्र का तकाज़ा सिर्फ भ्रम है ,जिन्दगी में बहुत कुछ है करने को
बस अपनी उम्मीदों ,हौसलों को जिन्दा रखिये ,रास्ता खुद-बा-खुद बन जायेगा
बढती ऊम्र के साथ मिलता है तजुर्बों का साथ ,रास्ता खुद आसां हो जायेगा
हर वक़्त अपनी बढती ऊम्र ,व्यस्तता का रोना रोते हैं ,जो है सरासर गलत
एक बढता कदम हमारा भर देता है रोशनी जीवन में ,कर देता है सबको चकित
देखा है करीब से जिन्होंने बदल डाला है जीने का नजरिया ,, 50 बरस के बाद
बिंदास ,खुशगवार जीवन जी रहें हैं निरंतर जीने के ढंग में बदलाव के बाद
अक्सर जीवन निकल जाता है बस घर-गृहस्थी के झंझटों में व्यस्त रहने के बाद
खुद के शौक तो पूरे करें साथ ही औरों के वास्ते प्रेरणा बनें 50 की ऊम्र क बाद
दुनिया कितनी तेजी से बड रही निरंतर ,खुद को पीछे रखने का क्या मकसद
जो ना कर सके अब तक ,उस ख्वाब को बना लो फ़ौरन अपने जीने का मकसद
--रोशी

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2022

 शादियों का माहौल ,करता है नव -उर्जा का संचार

किसी उत्सव से कम ना होता है ,लगता है कोई त्यौहार
मेहमानों की गहमा -गहमी ,,नौजवानों का जोश बड़ा देता है रक्तसंचार
बेहतरीन ,सुस्वाद व्यंजन सुवासित कर देते हैं सारी फ़िज़ा को हर बार
सिल्क की साड़ियो,उम्दा सूटों में सजे घराती-बाराती बना देते माहौल रंगीन
परफ्यूम की खुशबू,फूलों की महक बिखरा देती है फिजां में उम्दा किस्म की महक
रिश्तेदारों से अरसे बाद होती मुलाकात भर देती जीवन में उत्साह ,भरपूर चहक
ठहरी जिन्दगी ,अनमने रिश्ते आ जाते हैं करीब ,अजब सी आ जाती है ताजगी
ढर्रे पर फिर चल पड़ती है सबकी जिन्दगी दिल आ जाते हैं सभी के करीब
येही तो ख़ूबसूरती है हमारी परम्पराओं ,रीत-रिवाजों की सबको खींच लाते करीब
--रोशी
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शनिवार, 3 दिसंबर 2022

 आँखों पर चश्मा ,झुके कंधे ,सर के सफ़ेद बाल

आज के युवा की बदलती तस्वीर बयां करती उसका हाल
क्या हाल हुआ है हमारी युवा पीड़ी ,होते जा रहें सभी बेहाल
नौनिहालों को दीखता लगा हुआ चश्मा ,किताबों के बोझ तले कुचलता बचपन
तनाव ,दिमाग पर बोझ ,क्या खुल कर जी सकेंगे जिन्दगी के सुनहरे दिन
प्रतिस्पर्धाओं ने लील लिया है सम्पूर्ण बचपन,जीते-जी बन गए मशीन
ना भोजन ,ना खेल कूद सुबह से रात्रि तक बस दौड़ता दीखता है मासूम बचपन
जवानी रोटी,नौकरी के मकडजाल में ऐसी उलझी है,कंधे तो झुकना ही है हर दिन
कंप्यूटर ने चढ़वा दिया आँखों पर चश्मा ,बच्चों के उलझाया उनको हर दिन
बढता जिम का शौक लील रहा युवाओं को जवानी में ही ,अति हो गयी है हर दिन
विभिन्न जीने के अंदाज ,अपने शौक कोई ना रहे जिन्दगी जीने के पुराने नियम
संयमित जीवन,सात्विक आहार,व्यायाम लुप्त हो रहे,बन रहें जीने के नए नियम
--रोशी
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  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...