हम स्वतंत्रता दिवस पूरे जोशो खरोश से मना रहे हैं
बेशक हम अंग्रेजों की गुलामी से तो आजाद हो गए हैंधर्म ,जाति की जंजीरों में हम बुरी तरह जकड़े हुए हैं
बेटियां तो जन्मते ही वहशियों की नज़रों में खटकती हैं
बहुओं के सपने ससुराल की लपटों में खाक हो रहे हैं
बेटे भी खुद को सुरक्षित ना मान बेबजह दम तोड़ रहे हैं
क्योँ नहीं एक सुन्दर ,स्वस्थ समाज की हम कल्पना नहीं कर रहे हैं ?
विश्व पटल पर हिंदुस्तान स्वर्ण अक्षरों में लिखा हम क्यों नहीं देख पा रहे हैं ?
--रोशी
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