सोमवार, 18 अगस्त 2025

 शीशे के कीमती गुलदान की मानिद होती है लड़की की इज्ज़त

सहेज कर रखना है बेहद जरूरी, बेशकीमती जेवर जो है अस्मत
मामूली सी ठेस,अक्स छोड़ देती है गहरा, जिसकी भरपाई है ताजिंदगी मुश्किल
एक खरोंच गहरे ज़ख्म दे जाती है शीशे पर ,किरचें समेटना होता बड़ा मुश्किल
सीता ने ही दी थी अग्निपरीक्षा अपनी नेक किरदारी,ज़मीर की सारे ज़हां को
बेटियों को रखना पड़ता है ताउम्र ,हर कदम फूंक -फूंक कर दिन और रात
सम्हालना होता है शीशे का गुलदान शदीद एहतियात से इज्ज़त के साथ
दुनिया भरी पड़ी है शोहदों , दहशतगर्दों ,हैवानों और गिद्धों से हर कदम पर
आत्मा विदीर्ण हो उठती है जब बेटियों की अस्मत लुटती है बेदर्दी के साथ
बेशक चाँद पर क्यों ना पंहुंच जाए बेटी अनहोनी वहां भी हो सकती है उसके साथ
--रोशी 


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