कितना बेरहम ,हिंसक ,निर्दयी हो गया इन्सान
धर्म ,जात-पांत के मकड़-जाल में उलझ गया इन्सान
मानवता ,संस्कार ,इंसानियत सब कुछ बिसरा बैठा इन्सान
भाई-चारा,प्रेम का पाठ पड़ाया हर धर्म ने सदेव इन्सान को
दरिंदा बन बैठा ना जाने कहाँ से इन्सान एक दूजे की नस्ल मिटाने को
माँ की कोख,पत्नी का सुहाग उजाड़ने में तनिक ना सोचते यह बेगैरत इन्सान
धर्म के नाम पर सिर्फ आतंकवाद का पाठ पढ़ रहे दुनिया में अब ढेरों इन्सान
--रोशी
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