मंगलवार, 29 मार्च 2022

 कब कौन सा हुनर आपको शोहरत दिलवा दे ?

कब वो आपकी किस्मत के पन्ने पलट दे
कहना है मुश्किल ,कब जीवन के रंग बदल दे?
जरूरी नहीं जो विद्या बचपन में की थी हासिल
वही आपको कर दे सफल ,बना दे जीवन में काबिल
अगणित प्रतिभा होती है हर इंसा में जब चाहे करे हासिल
समंदर में ज्यौ छुपे होते अनमोल रत्न गहरे जल के भीतर
गोता तो खुद ही लगाना होता है ,मोती ,रत्न करने को हासिल
प्रोड़ावस्था में या बृद्धावस्था में भी हुए हैं कई अजूबे इस दुनिया के भीतर
जहां चाह वहाँ राह जैसे जुमले को किया सच हमारे कई धुरंधरों ने किस्मत को आज़माकर
जो सोचा ना था ख्वाब में वो भी कर दिखाया इस उम्र में आकर
रोशी --

सोमवार, 28 मार्च 2022

 साठ फीसदी भारतीय इंसान की ज़िंदगी बस स्वप्न देखते गुजरती है

जन्मते ही खाने -पानी की जुगाड़ फिर बीमारी की चिंता सताती है
स्कूल तो बहुत दूर पहले काम -धंधे पर बच्चे को लगाने की चिंता सताती है
सर पर छत ,तन पर कपड़ा सिर्फ इसकी जुगत वक़्त से पहले उसे बूड़ा देती है
बच्चों के मुस्तकबिल का सपना तो उच्च बर्ग ही देख पाता है ,सोच पाता है
आम आदमी समूची ज़िंदगी रोटी ,कपड़ा और मकान से आगे ना जा पाता है
समूची दुनिया चाँद पे कदम रखने के करीब है पर ,बच्चे को चंदा -मामा कह कर बहलाना बस उसका नसीब है
फसल कट कर घर आ जाए ,वर्ष की हाड़ -तोड़ मेहनत का हिस्सा उसको मिल जाए यह भी उसकी किस्मत है
बच्चों को बस अपने पैरों पर खड़ा करने में ही ,दिन -रात की जुगत उसको उलझाए रखती है
दुनियावी ऐशों-आराम तो सिर्फ कुछ ही इन्सानो की किस्मत में है ,बाकी की ज़िंदगी तो हमारी सोच से भी परे है
सिर्फ एक टुकड़ा रोटी का ,दो कतरा पानी ,शरीर ढकने को कपड़ा बस इतना ही मिलना बड़े नसीब की बात होती है
रोशी --
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Aditi Goel

रविवार, 27 मार्च 2022

 मिलते हैं रोज़ अनेकों बच्चों से ,हर उम्र और वर्ग के हम प्रतिदिन

रह जाती हूँ अचंभित देखकर उन बालकों का देखकर मोबाइल- प्रेम हर दिन
कुछ आधुनिकता का असर ,कुछ माता-पिता की अपनी व्यस्तता निस-दिन
व्यस्त भाग -दौड़ भरी ज़िंदगी ,एकल परिवार भी हैं शायद इसके जिम्मेदार
कुछ तो सोचना ही होगा परिवारों को और निकालना होगा ठोस उपाय जरूर
नानी -दादी ,माता -पिता जब खुद व्यस्त हैं अपने मोबाइल के साथ दिन और रात
लोरियाँ-कहानियाँ सब हो गयी गुजरे जमाने की दास्तां ,अब मोबाइल का चाहिए बच्चों को साथ
नौनिहालों को रोज़ देखती हूँ मोबाइल के लिए रोते -कलपते ,मानो हो वो उनका अलादीन का चिराग
खेल -कूद ,भाग -दौड़ और आपसी गुफ्तगू के बदले सन्नाटे ने घेरा है घर -परिवारों को आज
सब अपने -अपने खोल में बैठे हैं सिमटे बड़े -बूढ़े और आज के नौनिहाल और जवान
अपना धर्म -संस्कृति ,संस्कार और परम्पराएँ तो जानने का किसी को भी ना भान
उस जादुई डिब्बी में है सारी दुनिया की जानकारी यह ही बन गयी हमारी सबसे बड़ी दुश्वारी
वक़्त रहते ना चेते हम तो सबको अदा करनी होगी इसकी बहुत ही कीमत भारी
रोशी --


शनिवार, 26 मार्च 2022

 हमारे बीच कितने अनमोल सितारे हैं छुपे

पड़ गयी गर नज़र तो बाहर आ जाते हुनर छुपे
किसी को मिल जाती मनमाफिक मंज़िल तुरंत
कोई तो बेचारा ज़िंदगी भर ऐड़िया रह जाता घिसे
किस्मत ,मेहनत ,तजुरबा सब की है अहमियत इस रेस में
कछुआ तो पहले भी हरा चुका है खरगोश को रेस में
ढेरों सचिन ,लता ,साइना छुपी हैं कंही ना कंही इस माशरे में
ना जाने कब किसकी नज़र पड़ जाए उनको तराशने में
पैदा तो हर कोई होता है भीतर समेटे अपने अनोखी प्रतिभा के साथ
बस किस्मत है आपकी कब नजरे इनायत हो जाए ईश्वर की आपके साथ
रोशी --
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शुक्रवार, 25 मार्च 2022

 लोग क्या कहेंगे? सरीखा जुमला बचपन से ही सुनते आए

ना बचपन में इससे पल्ला छूटा ,ना अब तक इससे दूर हो पाये
अपने बच्चों के साथ भी यही जुमला यदा -कदा इस्तेमाल करते आए
क्यौ इतनी की जमाने की फिक्र कि अपनी शकसियत ही ना पहचान पाये
खुद के लिए ना जी कर जमाने कि खुशियाँ ही सदेव तलाशते आए
ज़िंदगी के इस पड़ाव पर आकर यह जाना कि यह भी कोई जीना है
अपने वजूद से ज्यादा दुनिया को खुश करना है ,नकली मुखोटा लगा कर रहना है
अपने भीतर झाँको नकली-आवरण उखाड़ डालो और बच्चों को भी यही सिखाना है
सत्कर्म करते रहो ,उच्च विचार और नेक राह पर ईमानदारी से चलना है
लोग क्या कहेंगे? इस चक्रव्यूह में ना ऊलझ कर बेखौफ जीवन जीना है
रोशी --
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गुरुवार, 24 मार्च 2022

 यह दिल जैसी चीज़ भी खुदा ने खूब बनाई है

बड़ी -बड़ी दुश्वारियाँ झेल जाता है बड़े ही सुकून से
हल्की सी ठेस से चटख जाता है ,झट से ,चटाख से
इसका रिमोट होता है दिमाग में ,जिसमें सारी शैतानी ,हैवानियत भरी है
दिल तो बहुत कोमल ,नाज़ुक बनाया है खुदा ने ,गलती सारी दिमाग की ही है
बदनामी तो बेचारे दिल की होती है दिमाग तो पर्दे के पीछे ही सदेव रहता है
निष्कर्ष यह है कि संगत हमेशा उच्च रखो ,अपनी सहूलियत खुद परखो
जितने दुष -परिड़ाम हुए हैं उनका जिम्मेदार बेचारा यह दिल कदापि ना होता
फैसला गर खुद किया होता तो दिल इतना रुसवा ना हुआ होता ......
रोशी --
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सोमवार, 14 मार्च 2022

 बचपन से अगर सिखाया जाए सच और झूठ का फर्क ,ज्ञान ,गलत और सही

तो भावी जीवन कितना बेहतरीन हो सकता है ,सोचने की फुर्सत नहीं
माँ-बाप इतने व्यस्त हैं भौतिक जीवन में ,संस्कारों के लिए वक़्त नहीं
स्कूल -ट्यूशन लगा ज़िम्मेदारी निभाते ,बालक के साथ बैठने का वक़्त नहीं
जैसे साँचे में डालो मिट्टी आकार ले लेती है ,पर उसके लिए भी वक़्त नहीं
फिर कहते हैं आजकल बच्चे बिगड़ गए ,कुछ सुनते नहीं ,मानते नहीं फिर
जब हमको बचपन में वक़्त देना था ,तो दिया नहीं ,आज उनके पास समय नहीं
हमारा फर्ज़ पूरा करने में हमने कोताही बरती ,इस शिकायत के हम हकदार नहीं
रोशी --
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