सोमवार, 31 अक्तूबर 2022

 विभीषण था भाई रावण का पर स्वभाव साधू सा पाया

दुर्योधन का साथ रहा सदेव पर कुटिलता मृत्यु तक ना त्याग पाया
जन्मजात गुण -अवगुण सदेव रहते साथ जीवन भर कोई ना बदल पाया
सर्प भले ही लिपटे रहें चंदन पर ,जहर उगलना ना त्याग पाया
प्रकृति प्रदत्त स्वभाव कदापि कोई लाख जतन कर ले ना बदल पाया
बचपन के कुचक्र ,अंतर्द्वंद चलते जीवन भर साथ ,कोई कम ना कर पाया
सत्संगति ,संस्कार ना बदल पाए कभी किसी की दुर्बुधि यह इतिहास ने बताया
अहम् ,इर्ष्या,द्वेष,लिखे होते हैं उसकी नियति में ,विधाता ने ऐसा उसको बनाया
प्रेम ,संस्कार ,विद्या कुछ भी ना ला सकते बदलाव ,यह ईश्वर ने है बताया
ह़ार गए कृष्ण ,विभीषण,सरीखे जैसे संत पर कुटिलता कोई ना तज पाया
--रोशी

बुधवार, 26 अक्तूबर 2022

 भाई -दूज का त्यौहार प्रतीक है पवित्र रिश्ते का बहन का भाई से ,

खिल उठता है भाई का मन ,देखकर जब बहन है आई ससुराल से
दोनों होते हैं सदेव जुड़े एक प्रेम की अद्रश्य ,अद्भुत डोरी से
कितने भी रहें दूर एक दूजे से त्यौहार ले आता करीब उनको प्रेम से
हमारे संस्कार ,परम्पराएं ,त्यौहार सब रिश्तों को रखते समेट के
टकटकी लगा देखते हैं दोनों राह परस्पर एक -दूजे की बहुत ही प्रेम से
खिचे चले आते हैं दोनों मिलने को सात समंदर पार से भी
मन रहता है बेचैन दोनों का परस्पर ना मिलने पर भी
--रोशी
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शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2022

 रसोई से आती सुवासित पकवानों की खुशबू

दे जाती है आने वाले त्योहारों की दस्तक घर को
दीपावली का त्यौहार बिखेर देता है खुशियाँ हज़ार
घर लिपे -पुते हैं दिखते,अतिथि के स्वागत को हैं तैयार
बच्चे चेहकते ,घरों में फुदकते ,बिखराएं ख़ुशी अपार
रसोई ,सफाई ,पूजा की सामग्री , सजावट काम हैं अपार
व्यस्त है सब अपनी तरह मनाना है त्यौहार शानदार
कोई रूठे नहीं यह ही कोशिश करते हैं हर वर्ष बारम्बार
--रोशी



गुरुवार, 20 अक्तूबर 2022

 इतिहास गवाह है हम दिए जलाते हैं ,रोशनी करते हैं

राजा राम अयोध्या वापिस आये ,सीता जी के साथ
दीपावली का त्यौहार सदेव हम इसी ख़ुशी में मनाते हैं
कंही भी जिक्र नहीं है उर्मिला और लक्षमन की ख़ुशी का
उन दोनों का भी वनवास ख़त्म हुआ है आज १४ वर्ष का
उर्मिला ने अयोध्या में १४ वर्ष सिर्फ जागते हुए बिताये
वन में लक्ष्मण भी इतने वर्ष कहाँ एक पल भी थे सो पाए ?
तपस्विनी की भांति जीवन था गुजारा उर्मिला ने,तिल-तिल वो रोज़ जली थी
एकटक देखती थी वो उस राह को जो अचानक काँटों से भर गयी थी
इसी राह से गए उसको अकेले ,सुने महल में छोड़ पति भाई-भाभी के साथ वन को
पर इतिहास खामोश रहा सदेव उनकी व्यथा ,गहन पीड़ा ,तकलीफ बताने को
ना बाल्मीकि ने झाँका उनके जीवन में ,जहाँ था गहन अंधकार ,उनके जीवन पर
ना तुलसीदास ने मानस में उनकी व्यथा थी कभी दर्शायी, कुछ उनपर लिख कर
उर्मिला,लक्ष्मण सरीखा उधारण ना है दूजा, है जिसने प्रेम की विधा है सिखाई
भात्र प्रेम ,सातवचनों को था दोनों ने शिद्दत से निभाया पर दुनिया ना जान पाई..
--रोशी

सोमवार, 17 अक्तूबर 2022

 मात्र एक सप्ताह रह गया है दीपावली में

दिए ,झालरें ,खील -खिलौने दिखने लगे हैं बाज़ारों में
नए वस्त्र ,जूते-चप्पल ,खिलौने लगे हैं सब खरीदने में
हर इन्सान लगा है भागमभाग में ,अफरातफरी में
स्त्रियाँ व्यस्त हैं रसोई में ,बनाने में सुवासित पकवान
घर में फ़ैल रही है बेहतरीन खुशबू ,बच्चे व्यस्त हैं खाने में
घर ,ड्योडी लगे हैं सबकी सफाई में ,धूल-मिटटी ,व्यस्त हैं हटाने में
देवी लक्ष्मी लौट ना जाये घर से व्यस्त हैं सब अपने निवास को चमकाने में
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--रोशी

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2022

 रूबरू हुए एक नवविवाहिता से ,मांग में सिंदूर ,हाथों मे मेहंदी ,पाँव में था आलता

उस लड़की का चल रहा है तलाक का मुकदमा अदालत में हमको था यह पता
अक्सर जाती थी बकील के पास , थाना जाती थी करने अगली तारीख का पता
पति ने बेघर किया उसको ,इश्क़ फरमाया अन्य विवाहिता से उसको था यह पता
विधवा माँ के साथ एक वर्ष से थी रह रही जहां खाने ,कपड़े का था ना पता
मुश्किल है जिसका घनघोर जीवन ,हमको था यह बहुत अच्छे से पता
उस लड़की ने कल पूरा दिन करवाचौथ का रखा था निर्जला व्रत पूरी श्रद्धा के साथ
शाम को बिधि -विधान से खोला व्रत ,पूरे अपने साजो शृंगार के साथ
ससुराल अय्याश पति के पास नहीं जाना निश्चय कर डाला था केस पति के साथ
एक सवाल जेहन में आ रहा है बारम्बार व्रत ,साजोशृंगार क्या था सब दिखावा ?
बेबकूफी ,मजबूरी ,संस्कार ,या था एक आडंबर जो हमने कल था आँखों से देखा
--रोशी
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इसका जवाब छोड़ते हैं आप सब पर अपनी राय जरूर दें

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रविवार, 9 अक्तूबर 2022

 सुनो इन्द्र देवता अब आपातकाल स्थिति आन पड़ी है भारी

रोक लो अब मेघों का कहर ,बिपदा आन पड़ी है अत्यंत भारी
गाँव ,देहात में छाया विकट कहर ,खेत ,खलिहान सब जलमग्न
घर -छप्पर गिर रहे टूटकर ,मजबूर हुए सब गरीब इंसान
खाने के पड़ गए लाले ,बह गया गृहस्थी का सब सामान
बीमारियो ने है पाँव पसारे ,हर जन है हैरान -परेशान
तकलीफ में है हमारा अन्नदाता ,जीवन उसका हुआ गमगीन
गुजर जाएगा है तकलीफ देह वक़्त पर छोड़ जाएगा गहरे जख्म
जीवन में जब आ जाती है अचानक आपदा ,समझा जाती जीने का मर्म
--रोशी

शनिवार, 8 अक्तूबर 2022

 मौसम की अतिवृष्टि ने त्योहारों का मज़ा फीका कर दिया था जिसका पूरे वर्ष शिद्दत से इंतज़ार

किसान जो अपनी गन्ने ,धान की फसल और कमाई का कर रहा था इंतज़ार
सारे ख्वाब हूए चकनाचूर उसके ,खाने को दाना नहीं ,जेब में पैसा नहीं सब बह गया पानी में
कुम्हार जिसने महीनो जतन से बनाए थे दीपक ,खिलौने सब के सब घुल गए पानी में
सारा परिश्रम गया व्यर्थ ,बच्चों के सुनहले सपने सभी बह गए इस बेमौसमी बरसात में
जब हमारे अन्नदाता ,मजदूर बर्ग बेहाल तो बताओ कैसे मनेगा दीवाली का त्योहार ?
पटाखे ,झालरें ,दीपक बनाने वालों पर टूटा है बारिश का कहर ,खुशी से ना मनेगा सबका त्योहार
श्रमिक वर्ग बैठा घर पर खाली ,पानी ने मचा दी चहुं ओर तबाही वो खाली हुआ बेरोजगार
बाज़ार हूए खाली ,छाई है बे-रौनकी हर ओर बस दिखता है पानी ही पानी चहुं ओर
यही करते है अर्ज़ रब से कि रोक दो अति व्रष्टि , बरसाना बंद कर दो अब पानी
जरूरत है ना अब इसकी, त्रस्त हुए जन- मानस बस रोक लो अब बरसाना पानी
--रोशी
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गुरुवार, 6 अक्तूबर 2022

 बाज़ारों के रौनक दे रही संकेत दीपावली के आगमन का

हर तरफ है अफरा -तफरी फैली सफाई घर -दुकान सजाने का
व्यस्त है हर कोई खुद को बेहतर दिखाने में ,खुद को सजाने में
महिलाएं हैं मशरूफ़ खुद को निखारने में ,पुरुष हुए मस्त जुएखाने में
हो गए हैं शुरू दावतों के दौर ,व्यस्त हुये सब खाने और पीने -पिलाने में
लगा रहे हैसियत से बड़कर ताश की बाज़ी ,तनिक भी ना है ध्यान परिवार में
त्योहार की खुमारी छाई सब पर ,व्यस्त हैं सभी अपने -अपने तरीकों में
तरीके हैं मनाने के अलग -अलग पर सराबोर हैं सभी खुशियों के रंग में
--रोशी
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मंगलवार, 4 अक्तूबर 2022

 राम और कृष्ण ईश्वरीय अवतार थे ,संसार में अधर्म का नाश था जरूरी

विश्व को बड़ते पाप पर संयम ,धर्म ,सदाचार का पाठ पड़ाना था जरूरी
क्या राम को ना पता था माता सीता का ठिकाना? ,पर वन में पूछना था जरूरी
कृष्ण कंस का वध करने में थे पूर्ण सक्षम ,पर सही वक़्त की प्रतीक्षा करना था उनको जरूरी
14 वर्ष का वनवास ,सीता का हरण ,वन में ढेरों कष्ट ,जगत को बोध कराना था जरूरी
महाभारत को रोकने में सक्षम थे पूड़तया माधव पर, गीता का ज्ञान विश्व को देना था बहुत जरूरी
सही वक़्त पर सही फैसला बदल देता है जीवन की दिशा ,गर की होती जल्दबाज़ी राम और कृष्ण ने निज जीवन में
वंचित रह जाती दुनिया राम चरित मानस और गीता के ज्ञान से ,ना होते कोई आदर्श हमारे पास जीवन में
--रोशी

रविवार, 2 अक्तूबर 2022

 गरबे का खुमार और संगीत का बुखार छाया हुआ है फिजा में

स्त्रियाँ लहंगा -चोली में ,पुरुष हैं दिखते पारंपरिक परिधानों में
डांडिया का है शोर विभिन्न वस्त्रों के प्रदर्शन पर है पूरा ज़ोर
अपनी डांस प्रतिभा को आजमाने का है मचा जबर्दस्त शोर
अपनी -अपनी श्रेस्ठ्ता,प्रतिभा को लगे है सब प्रदर्शित करने में
सास -बहू भी ना रहती पीछे एक दूजे को डांडिया में नीचा दिखाने में
गरबा तो बनता जा रहा है एक राष्ट्रीय पर्व सम्पूर्ण राष्ट्र में चहुं ओर
इंतज़ार रहता सांझ का ,बस गूँजता पंडाल ढ़ोल -नगाड़े से हर ओर
होता था पहले सिर्फ गुजरात में गरबा अब जड़ें फ़ैल गईं हैं इसकी सर्वत्र
युवा पीड़ी थिरके इसके मधुर संगीत पर ,बच्चे ,बूड़े सभी नाचें हो के मदमस्त
--रोशी
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  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...