शनिवार, 8 जनवरी 2022

 
                                                            



तिल-तिल कर कैसे जिया जाता है जानती है बो सब बाखूबी
जिया जो हूँ उसने सूनी आंखों से ताकते विस्तृत आकाश को
खोजा है उससे कोई अपना पर गुजर गईं साडी रात दिखा ना कोई उसको ,
रात्रि का गहन अंधकार था फ़ैला चहुँ ओर और ना था कोई चाँद अपनी ,
प्रियतमा के साथ मधुर अठखेलिया करता हुआ
तारे भी जैसे लील गया था रात्रि का गहन अंधेरा
ठीक वैसे ही लग रहा था उसको अपना जीवन ना कोई खुशियों का सवेरा,
ना था भोर का उजाला ************************************
पर हां ऐसे भी जिया जा सकता है जानती है बो बाखूबी
ऋतु बदली ,माह बदला पर ना बदला उसका जीवन
सब कहते है दिन बुहरते हैसबके पर यह अंधकार बन गया उसका जीवन.....






बहुत चाहा ढाकने अपने जख्म पर यह तो रोज़ अपना अक्स दिखा जाते है 
ढका भी इनकी गरीब की फटी चादर मानिद आवरण से पर यह तो चादर में सिमट ही ना पाते है 
या तो उस चीर में ताकत ही ना रही है उनको ढकने की 
                                                                              होली 



होली आई जीवन में सतरंग  लाई 
लाल ,पीला ,हरा ,नीला ,काला ,और खेत 
सभी रंग फिजाओ में ,तन मन में और हवाओ में 
नर नारी ,बूढ़े-बालक ,युवा तनमन सभी है मदमस्त त्यौहार में 
तन का रंग तो सबने रगड डाला पर देख ना पाया ह्रदय में
राग द्वेष ,कलह जलन और वैर -भाव का रंग तो चढ़ा था पक्का
काश धो पाते ,मिटा सकते उसके भी सब रंग तो और भी सुन्दर होती होली ,इठलाते हम भी सबके संग .........................


भरम


भरम में थी आई जीती अब तक 
एक ढेला फेंका और भरम का जाल टूटा
समेट रखा था जो अब तक दामन में था छूटा 
ना रहा कुछ भी बाकी सभी अपनों का सब झूठा
मस्तिक शून्य,सवेदना शून्य हुआ 
शरीर और दिल भी टूटा
सभी जगत में था मिथ्या,कौन अपना ? कौन पराया ?
जिसको भी की ना ,उसने था फ़ौरन जबाब पलटा
अपना तो कुछ बाकी ना रहा सभी था उल्टा पुल्टा |

अबोध


आना उसका जिंदगी में ,हवा के झोके की माफिक 
झिंझोड कर चले जाना सर्वस्व उसके वजूद को अपने मुतबिक
भोजन ,भजन और खानपान रहा ना कुछ भी उसके हाथ 
खो ही गया था उसका अपना अस्तित्व मजबूर दिल के साथ
माँ ,बाप ,भाई ,बहन कुछ भी ना उसका अपना 
बस दिल तो वो हार बैठी थी अपना उसके हाथ ,
क्या सखी ,क्या सहेली ,क्या रिश्ते ,क्या नाते ना थे उसको कुछ भी याद 
जब दिमाग वहां से हटता तभी तो उसको रहता कुछ भी याद
आग लगी थी दोनों तरफ दिख रहा था उसका प्रबल प्रवाह 
ना थी ज़माने की खबर ,ना डर था घर परिवार की इज्ज़त का 
मिलने को आतुर थे वो दोनों बेखौंफ,निडर उसका दिमाग था 
पर कहाँ छोडा था उसको इस समाज के भेडियो ने 
सफ़ेदपोंशों ने खत्म करके ही छोड़ा उस मासूम जोड़ी को 
ईश्वर दे सुकून उनकी रूहों को ,वहां मिला दे दो अबोध बच्चो को....................
जिंदगी


सब कहते है कि बीती ताहि  बिसार दो और आगे की सुध लो
पर भूलना क्या होता है इतना आसा?
जिनको था दिल और दिमाग ने इतना चाहा 
एक ही झटके में टूटा पूरा का पूरा भरम का जाल 
खुल गयी आखें ,मिला जिंदगी का सबक और नए ख्याल 
पर किससे कहे ? क्या कहें? बचा ना था कुछ भी बाकी
स्वयं पर ही करो भरोसा यही था जिंदगी का फलसफा 
माँ बाप तो हमेशा ही रहे थे सुनाते जिंदगी के खास धोखे
पर हम मुर्ख समझते रहे कि घुमा देंगे जादू की छड़ी
बना ही देंगे जिंदगी , रिश्तो को सब कुछ आसां
पर अब पता चला कि हो गए थे हम फेल 
हमारी भी किस्मत में ना था समझ पाना यह रिश्तो का फलसफा
कई लोग तो बिना कुछ करे धरे भी पा जाते है सभी का प्यार
हम तो सब कुछ कर के भी ना पा सके मर्ज़ी से जीने का अधिकार

उम्मीद


लुटा दिया था उसने अपना सुखचैन उन पर 
पर ना कर पाई कभी भी खुश उनको सब कुछ लूटकार 
हर लम्हा वो खोजते ही रहे कुछ ना कुछ गलतियाँ
सामने ओढे रहे नकाब शराफत का पर खोदते ही ,
जड़े हमारे वजूद की
और जड़े हिल भी गयी थी काफी हद तक अगर जिंदगी में 
ना होती जगह उनकी 
प्यार से सींचा,सहारा दिया और नई कोंपल चमकी
ये प्यार ही तो है जिसने हरा कर दिया सूखे ठह को
वरना हम तो छोड़ बैठें थे उम्मीद फिर से उठने की
संतुलन


अबसाद ,गहन अबसाद में घिर गए थे हम 
अपनों ने ना दिया होता सहारा तो भर ही गए थे हम
अपनों ने ही धकेला था हमे अवसाद की गहरी खाई में
और अपनों ने ही निकला,और नेक सलाह सुझाई 
मानसिक संतुलन था गड़बढ़ाया और दिल था बहुत घबराया 
अंधेरा ही अंधेरा था और देता था कुछ दिखाई 
रिश्तो की गुत्थी उलझ गई थी इतनी कि सिरा भी ना आता पकड़ाई
पर क्या करे जीना भी तो यहीं हैं इस मकडजाल में आत्मा भी घबराई 
हम खुद ही इस सबके जिम्मेदार यही बस अब समझ आई 
ना करते हम अपने आसपास इतनी गंदगी करते ,
करते रहते हमेशा सफाई
सच्चे मित्र,सगे सबंधी और अपनों की इसी अवसाद ने पहचान कराई
अब ना घिरेंगे इस भंवर में जीने की है कसम खाई
पर किनारे तक आते आते पिछली सारी भूली बिसराई
फिर तैयारी कर ली थी हमने रिश्तो में उलझने की
दावानल में घिरने की अब फिर से बारी आई 
कोई ना है विकल्प इस मायाजाल का बहुभान्ति है अजमाई 


                                                                              माँ
                                                      




कब बच्चे हो जाते है बड़े और करने लगते है फैसले स्वयं 
पता भी ना चलता है रह जाते है स्तब्ध हम 
कभी उचित कभी अनुचित,उठा जाते हैं बो कदम
पर हम फ़ौरन भुला जाते हैं और भूल जाते है अपना गम 
ये ही तो होता है दिल का और खून का रिश्ता 
जो मुआफ कर देता है अपने कोख जायों का हर सितम
माँ तो माँ होती है औलाद दे बेठे चाहे जितने जख्म 
मुहँ से दुआ , दिल से प्यार ही निकलता है उसके हरदम
रिश्तेनाते 


अब मन ना लगता है इस जहाँ में तोड़ दिए सारे रिश्ते नाते 
कांच टूटा आवाज़ हुई बरतन गिरा झनाक हुई 
पर ये कम्वख्त दिल टूटा किसी को खबर ना हुई
पाकर जिनका साथ थे पले बढ़े इस जहाँ में 
तार तार कर दिया रिश्तो का जामा जो पहना था हमने
आत्मा विदीर्ण,शरीर वोझिल और मन है पूरा घायल 
रूह है बेचैन कि क्या हुआ एक पल में हुआ सब खत्म मिनटों में 
सालो में तिनका तिनका जोड़ बुनी थी रिश्तों की चादर 
समय की आंधी आई और उड़ा ले गई चादर कुछ भी
कतरा कतरा बिखर गया और समेट ना पाए हम चाहकर 
क्यों?आखिर क्यों?होता  है यूँ जो कभी ना चाहते हमसब
यही तो भाग्य की विडम्बना कि होनी तो होती है रहकर

कभी कभी 




कभी कभी प्यार के कैसे कैसे अद्भुत रूप देखे 
जीवन में जिनको किया अति प्यार वो ही आज अजनबी सरीखे 
जरुरी नहीं कि मन सदैव ही उसको चाहे और देखे 
रिश्ते ,नाते रोज़ बदलते है दिखाते है अपने रूप अनोखे 
जान से भी ज्यादा प्यारे ,कभी कभी नामाते उनके दिखावे 
प्यार की परिभाषा जिंदगी की स्लेट पर रोज़ ही लिखती नै इबारत 
नए शव्द,नया प्रेम नव पल्लव रिश्ते रोज़ ही है रूप बदलते 
जो मन को भाए,दिल को दे सुकूं वही है अपने सरीखे....
याद आती है वो नन्ही छोटी बिटिया 
बड़ी बड़ी आखों वाली छोटी बिटिया 
कब बड़ी हो गयी थी हमारी बिटिया 
पता ही ना चला हमको यह बिटिया
आज चली बाबुल का घर छोड़ यह बिटिया 
पिया का साथ पाने ,ससुराल हमारी यह बिटिया 
मायके की इज्ज़त और मर्यादा का बिटिया
रखना है तुमको ध्यान सदैव ही बिटिया

  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...