रविवार, 15 मई 2022

 

कभी किस्मत की गाड़ी बिन डीजल दौड़ जाती है
सारा श्रेय यात्री और उसकी गाडी को जाता है
अगर साथ हो ड्राईवर तो तारीफ उसको मिलती है
दूजा कोई उसी गाडी को चलाये तो गाडी रुक जाती है
सोचा है क्यौ?यह किस्मत होती है ,जो हमको नचाती है
सारी अक्ल ,काबिलियत धरी की धरी रह जाती है
हमारे जनम से पहले सुना है हमारी किस्मत लिख जाती है
जैसी विधना गाड़ी दौड़ाए वैसी हमारी ज़िंदगी दौड़ जाती है

रोशी--

शनिवार, 14 मई 2022

 बच्चे होते हैं मासूम और नादां

बालसुलभ नादांनियां कर बैठते हैं होकर परेशा
हम करते हैं बेबजह दंडित होकर उनको परेशा
कभी खुद पर किया गौर," हम कहाँ के सच्चे थे "?
कितनी नादांनियां,हरकतें ,शैतानियां करते थे
मस्ती ,झूठ ,उछल-कूद बेखौफ सब करते थे
आज सोच कर हंसी नहीं रुकती ,करते सब बेबकूफी थे
तो आज फिर क्यौ उसी जुर्म की सजा बच्चों को देते ?
जब हम ना थे कभी सच्चे ,फिर बच्चे क्यौ सजा भुगते ?
रोशी --
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Ruchi Singhal
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 साथी हाथ बड़ाना,एक अकेला थक जाएगा मिल कर बोझ उठाना

देखा चरितार्थ होते ,जब अनेकों ने एक कन्या के विवाह का था विचार ठाना
थोड़ा -थोड़ा सबसे लेकर ही कन्या की गृहस्थी का समान था जुटाना
बूंद -बूंद से देखा साक्षात घड़ा भरते ,पूरा दहेज का समान जुटते उसके घर
बेटी को मिल गया भरपूर दहेज ,जा सकेगी वो खुशी से अब साजन के घर
कम से कम उस मासूम को ना मिलेंगे अब ससुराल से कम दहेज के ताने
एक लड़की तो है अब सुरक्षित ,सो सकेंगे उस गरीब के माँ-बाप उलहाने से
दिल को आता सुकून कि नेक काम का व्रत सफल हुआ आज सबका
कन्या -विवाह से बेहतर कोई दूजा महा -यज्ञ है दुनिया में कोई ना दूजा
रोशी --
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सोमवार, 2 मई 2022

 इनर -व्हील क्लब में मात्र -दिवस पर प्रस्तुत कुछ उद्गार

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माँ शब्द है छोटा सा पर सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड है इसमें समाया
नर -नारी ,देवजन कोई भी ना इसके मर्म कोहाई जान पाया
माँ का स्पर्श भर देता है भरपूर अनूठा जज्बा हम सब में
जब होता हाथ में माँ का आंचल,तो लगती है दुनिया मुट्ठी में
माँ की अंगुली पकड़कर सीखा चलना और लांघ लिए पर्वत सारे
ना महसूस हुआ कदापि गिरने का डरक्यौंकी माँ थी सदेव साथ हमारे
कोई भी विपदा ना लगती थी बड़ी क्यौंकी माँ तो थी सदेव पीछे खड़ी
जब से छूटा माँ का साथ हमसे लगता है मानो जग में हूँ में अकेली खड़ी
चेहरा और आँखों से ही बालक की खुशी और गम जान जाती है सदेव माँ
दिल- दिमाग बदस्तूर बालक का बयां कर सकतीहै सिर्फ माँ
गर माँ है तो ईंट -गारे की चहरदीवारी,आँगन ,चौबारा एहसास दिलाता है घर का
बरना तो ज़िंदगी कटती है बालक की जैसे पेड़ हो बाग में खड़ा बिना जड़ का
हर उम्र में होती है जरूरत सबको माँ के बजूद की ,उसके लाड़ -प्यार की
क्यौंकी एक वही तो है जो वयस्क बालक को सदेव समझती है नौनिहाल आज भी
रोशी ----

  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...