शनिवार, 14 मई 2022

 बच्चे होते हैं मासूम और नादां

बालसुलभ नादांनियां कर बैठते हैं होकर परेशा
हम करते हैं बेबजह दंडित होकर उनको परेशा
कभी खुद पर किया गौर," हम कहाँ के सच्चे थे "?
कितनी नादांनियां,हरकतें ,शैतानियां करते थे
मस्ती ,झूठ ,उछल-कूद बेखौफ सब करते थे
आज सोच कर हंसी नहीं रुकती ,करते सब बेबकूफी थे
तो आज फिर क्यौ उसी जुर्म की सजा बच्चों को देते ?
जब हम ना थे कभी सच्चे ,फिर बच्चे क्यौ सजा भुगते ?
रोशी --
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Ruchi Singhal
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 साथी हाथ बड़ाना,एक अकेला थक जाएगा मिल कर बोझ उठाना

देखा चरितार्थ होते ,जब अनेकों ने एक कन्या के विवाह का था विचार ठाना
थोड़ा -थोड़ा सबसे लेकर ही कन्या की गृहस्थी का समान था जुटाना
बूंद -बूंद से देखा साक्षात घड़ा भरते ,पूरा दहेज का समान जुटते उसके घर
बेटी को मिल गया भरपूर दहेज ,जा सकेगी वो खुशी से अब साजन के घर
कम से कम उस मासूम को ना मिलेंगे अब ससुराल से कम दहेज के ताने
एक लड़की तो है अब सुरक्षित ,सो सकेंगे उस गरीब के माँ-बाप उलहाने से
दिल को आता सुकून कि नेक काम का व्रत सफल हुआ आज सबका
कन्या -विवाह से बेहतर कोई दूजा महा -यज्ञ है दुनिया में कोई ना दूजा
रोशी --
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