रविवार, 11 मई 2014

माँ

हर पल याद आता है वो माँ का निश्चल प्यार -दुलार
वो दांत-फटकार ,वो उलहाने ,आँखों में समाया था उनके छोटा सा संसार
हर घडी उनका रोकना -टोकना लगता था तब कितना निरर्थक
पर आज यूं लगता है जीवन हुआ है उन सीखों से कितना सार्थक
अप नी पीड़ा ,दुःख ,तकलीफ का ना होने दिया कभी एहसास
बस बच्चे ही थे उनकी दुनिया ,और वो रही सदा अपनी धुरी के आसपास
आवाज़ से ही जो जान लेती है बच्चों की पीड़ा ,और ईश्वर से जो मांगे औलाद के गम
अपने दामन में भरने को..... संसार में सिर्फ कर सकती है  सिर्फ माँ ,माँ और माँ

  हम स्वतंत्रता दिवस पूरे जोशो खरोश से मना रहे हैं बेशक हम अंग्रेजों की गुलामी से तो आजाद हो गए हैं धर्म ,जाति की जंजीरों में हम बुरी तरह जक...