माँ
माँ तो ईश्वर से प्राद्त्त अनुपम सौगत होती हैगर्भ से लेकर जीवन पर्यत बालक को अपना सर्वस्व देती है
बालक मुसकाए तो माँ खिलखिलाए, कदाचित रोए तो खून के आंसू रोती है
बालक पर सर्वस्व न्यौछावर और उसके इर्द गिर्द ही अपनी दुनिया बुन लेती है
नित नूतन सपनो का जाल, माँ शिशु के वास्ते बुन लेती है
बालक की आँखो से ही माँ सारे ब्रह्माण्ड है देखती
तोतली जुबां से सारी भाषाएँ गुनती और समझती है
माँ को करते नमन देवता और दुनिया भी सलाम करती है
माँ को करते नमन देवता और दुनिया भी सलाम करती है
सिर्फ एक दिन ही उस माँ के लिए दुनिया मदर्सडे मनाती है
साल के 365 दिन भी हैं कम ,मगर दुनिया उसकी एहमियत माँ के कूच कर जाने के बाद समझती है