मंगलवार, 8 नवंबर 2022

 ऊम्र बिता दी तजुर्बे हासिल करते -करते

हर गुजरता दिन दे जाता है नयी सीख जाते -जाते
इतने संकरे मोड़ों से गुजरी है जिन्दगी अब तक
बहुत कुछ हासिल कर लिया इस ऊम्र तक आते -आते
होती डगर सबकी टेड़ी ही होती है ,आसां नहीं यह सफ़र जिन्दगी का
किताबें तो सिर्फ पढना हैं सिखाती ,हर दिन देता तजुर्बा जीने का
शतरंज की बिसात की मानिद है जिन्दगी,शह-मात का खेल है हर रोज़
तरक्की ,यश -अपयश जन्मते ही विधना लिख देती साथ हमारे
बस कितने इम्तेहान होंगे जिन्दगी भर ये ही ना होता हाथ हमारे
--रोशी

  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...