रविवार, 30 अप्रैल 2023

 द्रोपदी का संताप,पीड़ा ,क्या वास्तव में महसूस भी कोई कर पाया

पिता ने निज स्वार्थ की खातिर अग्नि, यज्ञे द्वारा था उसको पाया
प्रियतम का स्वप्न जो था वर्षों से संजोया द्रोपदी ने आज निज समक्ष पाया
पांच पांडवों में बाँट दिया सास ने तत्काल शायद समझकर उसको निर्जीव काया
नव वधु के जखमों का हिसाब और ,दिल की किरचों को समेटना है नामुमकिन
शब्दों में समेटना है असंभव ,उसकी दर्दनाक पीड़ा बया करना है नामुमकिन
कर्ण भी है हमारे इतिहास का बेहतरीन योधा जो सुलगता रहा गहन पीड़ा से सदेव
सगी मां के समक्ष हुआ था उत्पीडन अवेध संतान का था उसने तमगा पाया सदेव
मर्मान्तक ताने ,उपहास थे जीवन भर झेले ,भाइयों से सिर्फ उपेक्षा को पाया सदेव
ममता तो ना दी मां ने पर सगे बेटे के जीवन दान को किया उसका उपयोग
समाज से बहिष्कृत, योधा पग पग हुआ सदेव जख्मी ,बयाँ न कर सका इतिहास
रोशी

सोमवार, 17 अप्रैल 2023

 द्रोपदी ने गर ना दी होती उलहाना दुर्योधन को तो ना होती महाभारत की घटना

तुलसीदास को गर ना डी होती पत्नी ने उलहाना तो महाकाव्य की ना होती रचना
सीता ने ना लांघी होती लक्ष्मणरेखा ना भस्म होती रावण की स्वर्ण लंका की शान
शिशुपाल ने ना लांघी होती मर्यादा तो यूं अपने भाई के हाथों ना गंवाई होती जान
एक्लव्य की ना होती गुरु से भर्त्सना तो पिछड़ जाता वो लगाने में अचूक निशाना
गर भरे ना होते कैकई के कान ,उलट गया होता रामचरित मानस का सम्पूर्ण ज्ञान
कंस ने गर खाया होता रहम बहन पर तो ना जाती सगे भांजे से उसकी जान
कितने भी कर ले कोई लाख जतन, पर होनी होती है बहुत बड़ी और बलवान
रोशी
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रविवार, 16 अप्रैल 2023

 भरी दुपहरी तपती धूप में बिन पानी रह कर देखो हर बूँद की कीमत जान जाओगे

कभी राशन या बस की लाइन में दोपहर गुजारो हाथ के पंखे की जान जाओगे
अंतड़ियाँ भूख से कुलबुला रही हों तो अन्न केहर दाने की कीमत जान जाओगे
सर पर जब नहीं हो छत्त तो छप्पर की कीमत भी तत्काल जान जाओगे
जब ना हो सर पर मां -बाप का साया तब उनकी अहमियत सही से आंक पाओगे
जेब में जब नहीं हो फूटी कौड़ी तो एक एक टके की कीमत जान जाओगे
मिलकर किसी असाध्य मरीज़ से अच्छे स्वास्थ्य की एहमियत जान जाओगे
शीत लहर में तन पर ना कपडा तो दो गज चीर की कीमत तत्काल जान जाओगे
मिलीं जब सारे जहाँ की खुशियाँ आसानी से रब का शुक्रिया ना अदा कर पाओगे
रोशी

शुक्रवार, 14 अप्रैल 2023

 सपने देखना मत छोड़ो ,कुदरत से बमुश्किल मौका मिलता है

किस्मत वाले होते हैं वो जिनके सपनों को खुला आसमां मिलता है
पंख सिर्फ वो ही है पाते जो बुलंद इरादे,जज्बों को जिन्दा हैं रख पाते
समंदर लांघने की हिम्मत है जो रखता ,ईश्वर भी उसके इरादे ना डिगा सकता
कड़ी मेहनत ,पूर्ण लगन जब हो दिल में ,वक़्त भी शायद उसकी परीक्षा है लेता
गर ठान लिया मन में तो चीर सकता है पर्वत का सीना भी हर इंसान
सिर्फ हवाई घोड़े कल्पना में दौड़ाकर कामयाब ना हुआ कोई इंसान
ऋषि ,मुनि ,वीर योधा सिर्फ वो ही दर्ज करा सके इतिहास में अपना नाम
जीवन जिन्होंने अपना समर्पित कर दिया था अपने निज कर्मों के नाम
रोशी
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 वो थी अल्हड मासूम ,आँखों में उसने अपनी ढेरों सपने सजाए

आम सी लड़की की माफिक उसकीथी कुछ ख्वाहिशें वो दिल में थी सजाए
राजकुमार सफ़ेद घोड़े पे सवार उसको डोली में साथ ले जाएगा
उसकी हसीन दुनिया होगी ,खुशियों के सिवा गम तो पास फटक ना पायेगा
इस निष्ठुर ,पापी समाज ने गुपचुप उसके सपनों पर था आघात किया
असाध्य रोगी से था गुपचुप उसका विवाह कराया,जिन्दगी पर बज्रपात किया
दुखों का पहाड़ था टूटा उस बच्ची पर, कुछ ही माह में उसको विधवा बनाया
जानकर उसकी व्यथा ,एक फरिश्ता उसकी बदनसीब जिन्दगी में था आया
थामा उसका हाथ जिन्दगी को उसने अपनी मोहब्बत से रंगीन बनाया
बुराई पर हुई अच्छाई की जीत ,ऐसे फरिश्तों ने इस दुनिया को है हसीन बनाया
रोशी

 मध्यवर्गीय आम इंसान की जिन्दगी बचपन से बुढ़ापे तक बस सपनों में गुजरती है

सुनहरे ख्वाब बस जीवन की रेलमपेल में ही सिमट कर जिन्दगी खिसकती जाती है
हर रात नया ख्वाब संजोना ,उसको सिरे चडाना करने की जी तोड़ कोशिश ताउम्र जारी रहती है
मकान ,दुकान ,शादी ,बीमारी इनसे ही जूझते उसका शुरू होता दिन ,कब रात गुजर जाती है
उच्च बर्ग से मुकाबला ,पग -पग पर जिल्लत शायद इनके अपने नसीब में लिखी होती हैं
खुद को हर कदम पर कमतर समझना शायद इनकी यह कुदरतन मजबूरी होती है
दुनिया के ताने ,उलाहने सब कुछ इनकी ही झोली में हैं आते रोज़ इनसे दो चार होते हैं
घर ,बेटी की इज्ज़त बचाने में इनको जरा सी शांति मयस्सर नहीं होती बस जिन्दगी की गाड़ी दौड़ी चली जाती है
इस जहाँ के एशो आराम ,तमाम सुकून शायद कुदरत ने नवाजे हैं कुछ खास आवाम के वास्ते
दुनिया भर की मशक्कत्तों से जूझते -जूझते वक़्त से पहले ही बुढा देती है जिन्दगी
आम आदमी की हसरतें
रोशी
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Richa Mittal

 वो जन्मति हैं तो होती हैं बेशक मासूम ,कमजोर ,रुई के गाले की माफिक

कुदरतन हर खूबी, सलाहियत से लबरेज होती हैं वो दुनिया के काबिल
उनको कमजोर बना देते हैं मां -बाप ,परिवार और हमारा समाज बचपन से
सिर्फ गुडिया ,रसोई के बरतन पकड़ा देते हैं हम सुकून से खेलने को छुटपन से
उनको मौका ही नहीं देते खुल के जीने का ,समेट देते हैं सभी रास्ते तरक्की के
ताक़त,हौसलों के जरिए खोज ही लेती हैं वो नए बेहतर अवसर आगे बढने के
उनका ज़ज्बा,हौसला और लगन ही बनाता है उनको कामयाब और सभी दूसरों से
नारी शक्ति को रोकना था सदेव से नामुमकिन देख लो इतिहास में झांककर
नारी ही है जो एक वक़्त में निभा सकती है ढेरो किरदार बाखूबी बाहरऔर भीतर
मां,बहन ,बहु हर सांचे में ढलने की क़ाबलियत पाई हैउसने खुद के भीतर समंदर की लहरों को भी है चीरा उसने,चाँद पर पाँव रखने कीअब चाह है उसकी
ना डिग सके हैं बुलंद इरादे नारी के ,इतिहास गवाह है काबिलियत से उसकी
रोशी
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 जिन्दगी के कुछ हिस्से उलझनों और तकलीफों से जूझते निकल गए

कब जिन्दगी के उम्र के इस पड़ाव पर आ खड़े हुए पता नहीं चला
अपने शौक ,पसंदगी तो समेट दिए बक्से में दुनियादारी में ही उलझ कर रह गए
यह कहानी है हर घर की हर मोहतरिमा खुद ही यह कहानी बयां करती है
कुछ अपना ख्वाब पूरा कर पाती है कुछ के सपने रह जाते हैं अधूरे
ऊँचा मुकाम ,ओहदा हर किसी की किस्मत में वाकई लिखा नहीं होता
कुछ तो ता -उम्र अपने सपनों को जामा पहनाने में ही गुजार देतीं हैं
घर की चाहरदीवारी के भीतर ही गुजर जाती हैं यूं तो सारी जिन्दगी
परवाज़ तो किस्मत वालों को ही नसीब होते हैं ,पूरी जिन्दगी
कट जाती है एड़ियाँ रगड़ते -रगड़ते वर्ना यह बेआवाज़ सारी जिन्दगी
सुकून ,ख़ुशी खुद ही दूंढ लो इस जिन्दगी में वर्ना यह होती है बड़ी बेरहम जिन्दगी
रोशी
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 यह औरतें जो हैं वे बहुत कुछ जानती हैं

बचपन से माँ का चेहरा पड़ना जानती हैं
भाइयों को क्या चाहिए सब अच्छे से जानती हैं
बाबूजी आज क्यूँ खफा हैं भली भांति पहचानती है
घर में बचत का हुनर मां से खुद ही जान जाती हैं
बची रोटी को नमक के साथ निगलना जानती हैं
फटी फ्रॉक को सिलकर महीनो पहनना बाखूबी जानती हैं
अपने खचों में कटौती करना खूब जानती हैं
कम पैसों में पूरा महीना राशन खींचना जानती हैं
तार -तार हो चुकी साड़ी में इज्ज़त बचाने का हुनर खूब जानती हैं
घर की देहरी तक घर की बातें समेटना कुदरतन जानती हैं
मायके और ससुराल की सीमायें कितनी हैं यह जानती हैं
रिश्तों में तुरपाई करना भी बाखूबी जानती हैं
बिन रुके ,बिन थके गृहस्थी की गाड़ी को दौड़ना जानती हैं
एक वक़्त पर ढेरों किरदार निभाना वो सब जानती हैं
छा जाता है चहुँ और गहन अंधकार तो उम्मीद का दिया जलाना वो जानती हैं
इज्ज़त,प्रेम से रखो उसको सम्हालकर बरना चंडी का रूप रखना भी वो जानती हैं
रोशी

  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...