गुरुवार, 28 सितंबर 2023

 ईश्वर ने जब संरचना की मां की ,अनगिनत विशिष्ठ गुणों से बनाया

प्रेम,वात्सल्य ,धेर्य ,वीरता ,ममता सरीखे अनेका एक गुणों का मिश्रण बनाया
इंसान हो या पशु -पक्षी मां की संरचना में अद्भुत खूबियों का समावेश कर बनाया
कुदरतन बच्चे पर मंडराते खतरे से लड़ने को उसमें रोद्र रूप भी है समाया
नर्म दिल वाली मां को समस्त तकलीफों से जूझना भी भलीभांति खुदा ने सिखाया
बालक को दो निबाले खिला भूख से व्याकुल माँ को मुस्कराने का हुनर सिखाया
जान को जोखिम में डाल बालक की अभेद ढाल बनना सिर्फ माँ को ही सिखाया
दुनिया की हर कला ,गुणों की है खान हर माँ उसको है अद्भुत खुदा ने बनाया
निज औलाद पर सर्वस्व न्योछावर करने का जज्बा सिर्फ मां में ही ईश्वर ने समाया
सर्वश्रेठ कृति की रचना कर ईश्वर ने धरती पर मां को विशिष्ठ दर्ज़ा दिलवाया
--रोशी
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मंगलवार, 26 सितंबर 2023

 रोज़ सीखते हैं जिन्दगी से एक नया सबक

मान बैठते हैं खुद को सर्वश्रेष्ठ प्रतिदिन
सोच बैठते हैं परम ज्ञानी खुद को हर दिन
वक़्त का पहिया कब रुका है ?चलता है निसदिन
किताबी ज्ञान तो बहुत सीखा गुजर गया बचपन
जो समझ बैठा खुद को परम ज्ञानी ,अहंकार ने डुबोया उसका जीवन
जिन्दगी सिखाये जो सबक ,तजुर्बे सीखो उनको प्यार ,मोहब्बत से निसदिन
इम्तेहान भी लेती है बिन कहे जिन्दगी,काम आता है इसमें दैनिक जिन्दगी का ज्ञान
--रोशी
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सोमवार, 25 सितंबर 2023

 ग़ुरबत की जिन्दगी बेहद दुष्कर है

यह सारी खूबियाँ निगल जाती है
परोस देती है सिर्फ खामियां भीतर तक की
कुछ बेहतर बचता ही नहीं है आपके भीतर
आपकी क़ाबलियत ,रूप -रंग ,सब परे हो जाता इसके अन्दर
वक़्त का पहिया घूमा नहीं ,बन बैठते हैं आप धुरंदर
अवगुण तत्काल बदल जाते गुंणों के समंदर में
गलतियाँ चुप जाती तत्काल गुणों की चाशनी में
सूरमा भी चाटते धूल जब विपरीत चलती है बयार
कंगाली में बेजान हो जाता दिमाग और सुन्न हो जाता शरीर
--रोशी
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Sangita Puri

 सुख के पीछे पीछे भागते छोड़ बैठते हैं कुछ अनमोल पल

शायद इससे बेहतर कुछ मिले इस चाह में गँवा बैठते हैं सब
जितना मिले समेट लो दामन में अपने तो रहोगे सदेव खुश
यह मृग मरीचका तो ऋषि मुनियों को भी दौड़ाती रही है बरसों से
अतृप्त ,असंतुष्ट तो रहा है मानव सदेव आदिकाल से
कुछ बेहतर पाने में ही गँवा बैठता है पूर्ण सांसारिक सुख
विधना ने जन्म के साथ ही कुंडली में लिख भेजे सुख -दुःख
शांत भाव से जियो जिन्दगी, नियति को स्वीकार रहो सदेव खुश
--रोशी
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 क्योँ बेटियों को उनका अपना मुकम्मल जहाँ मयस्सर ना होता है ?

बचपन में उसके दिलो -दिमाग में बैठा दिया जाता है ,पराये घर जाना है
शायद रस्मों -रिवाज़ ,घर -रसोई सीखने मात्र में बचपन गुजर जाता है
घर की देहरी के भीतर उसका बचपन घोंट और कुचल दिया जाता है
क्या सही क्या गलत का पाठ उसको जवानी तक भरपूर पड़ाया जाता है
घूमने पर रोक -टोक ,खाने पीने पर पाबन्दी का पाठ उसको रटाया जाता है
पीहर में हर पल उसको अहसास कराया जाता है की पराये घर जाना है
दिल -दिमाग में बेटियां बैठा लेती हैं की ससुराल अब उनका अपना घर होगा
उफ़,, विदा होते ही ससुराल में उनको दूजा पाठ सुनाया जाता है
ससुराल पति का कहलाया जाता है ,बेटी को नए सबक को फिर दुहराना पड़ता है
बेटियों जिन्दगी भर ना समझ पाती,पीहर या ससुराल कौन सा घर अपना होता है ?
--रोशी
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 हंस कर काटी गर जिन्दगी साथ में ढेरों मिल जायेंगे

आंख में अश्कों को देख सब दूर हो जायेंगे
मुस्कराता चेहरा भाता है सबको ,हाल चाल सब पूछने आएंगे
गर खोला हाले दिल का पिटारा ,सब झूटी तस्सलियाँ दे मन बहलाएँगे
कोई जख्मों पर ना लगाएगा मरहम,ज्यादातर नमक ही छिड़क कर जायेंगे
कब ,कैसे ,किसके साथ बांटना है तकलीफों का जखीरा बस यह हुनर सीख लो
नकली मुखौटे के साथ जीने की पड़ गई है आदत ,वही सबको खुश कर पाएंगे
फायदा है बड़ा इसका ना अपने दर्द दिखेंगे ना दूसरे के गम हम देख पाएंगे
--रोशी
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  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...