मंगलवार, 16 अगस्त 2022

 बड़ती उम्र ,सर के सफ़ेद बाल दे जाते ढेरों अनुभव ज़िंदगी की बेहतरीन डगर पर

स्वतः आ जाती है अक्ल ,हंसी भी आती अक्सर अपने खुद के विगत फैसलों पर
बचपन में सुना करते थे बुजुर्गों को कहते ,बाल धूप में कदापि सफ़ेद नहीं होते
वक़्त खुद -बा-खुद खोल देता है बंद अक्ल के ताले ,जो जवानी में नहीं हैं खुलते
बचपन से लेकर बुडापे तक रोज़ मिलता है तजुर्बा नवीन जो किताबों में ना मिलते
गलतियाँ खुद सिखाती हैं नए अनुभव ,दूसरों से भी ढेरों तजुर्बे हैं नित -प्रति दिन मिलते
हम बांटते हैं इनको अपनी नयी पीड़ी को ,जो उनको किसी किताब में नहीं मिलते
रोशी --
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रविवार, 14 अगस्त 2022

 आज़ादी के पचतर सालों का लंबा सफर असां ना था हमारे लिए

बहुत सी कुर्बानियाँ दीं ,गहरे ज़ख़म खाए शहीदों ने हमारे लिए
देश बिभाजन का विषद दंश झेला ,घर ,बच्चे ,परिवार सब कुछ खोया
विस्थापन का दर्द झेला, पुनः ज़िंदगी को पटरी पर चलाया ,अपना दर्द भुलाया
आज उन्नतशील देशों की कतार में विश्वपटल पर भारत का नाम लिखवाया
सुंदर पिचाई ,पराग अग्रवाल, ऋषि सुनक ,जैसे धुरंधरों से सम्पूर्ण विश्व है थर्राया
हिंदुस्तानी दिमाग ,खूबसूरती ,कला का माना है आज संसार में सबने लोहा
न टिका है कोई इनके सन्मुख ,ना आज तक कोई मुक़ाबला कर पाया है
हमारे जवान जब पहन बरदी जाते है सरहद पर ,भूल जाते हैं अपना घर- संसार
देश की रक्षा का होता उनको जुनून गोली सीने पर खाई बस बचाने को हमारा परिवार
हमारा धर्म ,संस्कार ,आचार -व्यवहार और संस्कृति को अपना रहे और देश हैं
प्रत्यक्ष में तो कुछ नहीं बोल पा रहे पर दिल से करते हमारे देश को सलाम हैं
सफर पिछत्तर साल का यों आसा ना था ,बहुत चोट खाकर ,देश भट्टी में तपा था
पर आज हम विकसित देशों की कतार में आ पहुंचे ,इसके पीछे भी बहुत दर्द छुपा था
रोशी --
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शनिवार, 13 अगस्त 2022

 बहनें आती हैं पीहर ढेरों प्यार और उत्साह समेटकर

आँचल में साथ बांध लाती हैं दुआएं और आशीर्वाद भरकर
महीनों पहले से सँजोती हैं ख्वाब पीहर के ,बुनने लगती हैं ढेरों सपने
माँ से सालों बाद मिलना होगा ,कलेजे को मिलेगी ठंडक जब गले लगाएगी अपने
याद आने लगेगी गली ,मोहल्ला और छत की मुंडेर ,जहां दफन हैं ढेरों ढेरों सपने
भाई -बच्चे राह तक्ते होंगे मेरी ,और बाबूजी -अम्मा भी देखते होंगे मेरा सपना बहनों का रास्ता ना कटता,पीहर की दूरी शायद बदती जा रही है सोचती जा रही
पीहर से जाते वक़्त बिखरा जाती हैं संपनतता के दाने और आशीर्वाद देती जा रही , हर तकलीफ ,परेशानी से रहे दूर मेरा पीहर यह ही मन्नत बहन मांगती जा रही
रोशी --
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शुक्रवार, 12 अगस्त 2022

 कितना पवित्र ,मोहब्बत से लबरेज त्योहार है रक्षाबंधन

चाहे कितना झगड़ें आपस में बहन-भाई पर मनाते हैं साथ रक्षाबंधन
है इस त्योहार में कुछ अजीब ताकत जो कोसों दूर से करीब ले आते अपनों को
रह ना पाते बिन मिले एक दूजे से इस पर्व पर खिंचे चले आते बीच में अपनों के
बारीक से सूत के धागे में निहित होती , अबूझे पवित्र प्यार की ताकत जन्मों से
भाई देता है वचन बहन की रक्षा ,हिफाजत का जो निभाता है बदस्तूर दिलों-जां से
बहन मानती है महफ़ूज खुद को भाई के साये में ,जीती है सारी ज़िंदगी सुकून से
द्रोप्दी की चीर का हक़ निभाया कृष्ण ने ,बचाकर उसकी इज्ज़त सिखाया सब को धागे का हक़ निभाना ,जब भी बहन हो संकट में भाई को है राखी का फर्ज़ निभाना
रोशी --
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मंगलवार, 9 अगस्त 2022

 बदल रहे हैं त्योहारों के मायने ,मनाने का तौर -तरीका

हर त्योहार खोता जा रहा है वास्तविक रंग -रूप और तरीका
अपनी सहूलियत के हिसाब से आज के युवा मना लेते हैं
सब हैं इतने मसरूफ़ कि वक़्त के बनते जा रहे गुलाम हैं
पारंपरिक रीत -रिवाज सब होते जा रहे विलुप्त अब परिवारों से
घर से कोसों दूर जा बसे हैं वयस्क ,दूर हो गए सब परिवारों से
आधुनिकता की भाग -दौड़ ने छीन ली हैं सारी जीवन की सारी रंगीनियाँ
थकी ,पस्त ज़िंदगी ने बेदम कर दिया है हमारी अगली पीड़ी की खुशियाँ
ना कोई उत्साह बचा होली ,दिवाली ,राखी का ,रह गया है सिर्फ लीक पीटना
भावी नस्लें क्या जानेंगी ,?सिर्फ इतिहास ही बयां कर सकेगा रीत रिवाजों का सिमटना ,उनके वजूद का मिट जाना और किताबों में समिट जाना .....
रोशी --
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सोमवार, 8 अगस्त 2022

 हर बदलता दिवस सीखा जाता है जीवन में बहुत कुछ

कभी सीखते हैं हम स्वयं से,कभी समाज से ,परिवार से बहुत कुछ

शुरुआत होती है खुशनुमा सुबह से ,पक्षियों के कलरव से सीखते बहुत कुछ
तिनका -तिनका जोड़ बनाते आशियाना ,जन्मते उसमे बच्चे,जो ना रहते साथ कभी
पंख निकलते ही हो जाते फुर्र ,खुले आसमां में नव नीड़ बनाने जो ना घोंसले में लौटते कभी
बड्ते सूरज के साथ ज़िंदगी रोज़ परिचय कराती है ,उसके घटते ताप ,और चंद्र के उदय का भी
घर -गृहस्थी के नित-प्रतिदिन के कटु अनुभव भी कराते हैं परिचय जीवन की सच्चाई का
जीवन की डगर ना है इतनी सीधी,जो आती है नज़र ,उलट -फेर है इसके हर पहलू का
घर ,परिवार हाट-,बाज़ार दोस्त -दुश्मन हर जगह से मिलते हमको नित कटु -सुखद अनुभव
बिखरे पड़े हैं ढेरों जीवन के यथार्थ सत्य ,मथने ,परखने को चहुं ओर हमारे
क्या सीख पाये जाते दिन से सिर्फ होता हम ही पर निर्भर और जीने के नज़रिये पर हमारे रोशी
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रविवार, 7 अगस्त 2022

 मेरे अपने ,प्यारे दोस्तों के लिए कुछ उद्गार 

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दुनिया का हर रिश्ता खुदा ने बड़ी मोहब्बत से है बनाया 

हर रिश्ते में एहसास ,प्यार जज़्बात सब उसने कूट -कूट कर है सँजोया 

पर हम जन्मते ही एक प्यारा खूबसूरत रिश्ता खुद बना बैठते हैं 

अपने दोस्त हम खुद बा-खुद  बचपन में ही बना बैठते हैं 

ना होता कोई खून का रिश्ता उनसे ,ना पुरानी पीड़ियों की रिश्तेदारी 

ना उनसे परिचय कराते हमारे माँ -बाप ,ना ही कोई होती उनकी हिस्सेदारी 

अपना दोस्त बनाना होता है सिर्फ हमारा निर्णय ,जिसमे होती दोनों की भागीदारी 

हमारी  खुशी,तकलीफ ,सुख -दुख का होता उसको पूरा भान और उसका एहसास

गर रहे ना इतने जज़्बात आपस में तो यह रिश्ता तब्दील हो जाता बकवास  

जब तक कोई समझें हमारे दोस्तों पर हर समस्या का हल चुटकी में निकल आता

होती है शायद दोस्तों के पास कुछ जादूई शक्तियाँ ,जो दिल में छुपाना चाहो झट बाहर निकल आता  

इस रिश्ते को बनाने में कायनात भी हो गयी फ़ेल ,जो अद्भुत रिश्ता इंसान ने है बनाया 

love u all my dear friends....

                                                                                                रोशी --



शनिवार, 6 अगस्त 2022

 तकलीफ को पूछने वाले ढेरों मिलेंगे,बांटने शायद दो -चार आएंगे

सलाह देने वाले ढेरों मिलेंगे ,तजुर्बेकार शायद दो- चार मिलेंगे
गलती बताने वाले ढेरों मिलेंगे ,सही राह पर ले जाने वाले ना मिलेंगे
नीचा दिखाने वाले ढेरों मिलेंगे ,आपको ऊंचाई पर देखने वाले कम मिलेंगे
जरा सा वक़्त क्या खराब होता ,उंगली उठाने वाले चारों ओर मिलेंगे
जब सितारे होते हैं सही दिशा में तो आपको सर पर बैठने वाले भी ढेरों मिलेंगे
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रोशी --

गुरुवार, 4 अगस्त 2022

 सिर्फ चेहरे की मुस्कुराहट ,पर ना जाओ ,साथ में आँखों को भी देखो

उसके पीछे छुपे दूजे चेहरे को पड़ने का हुनर रखो ,आँखों की भाषा सीखो
दर्द के सिवा और भी बहुत कुछ सिमटा होता है उसको ,देखते जाओ
आँखों को पड़ने का भी हुनर रखो ,उनकी अबूझ भाषा समझते जाओ
दिमाग के सारे द्वंद छुपे होते हैं चेहरे में ,जो आँखों से भी आते हैं नज़र
आपसे कटुता ,मित्रता है या धोखा ,प्रेम ,दुश्मनी है दिल में आता है सब नज़र
कामयाबी के पीछे यह हुनर छिपा होता जो हर किसी को ना आता नज़र
दिल से मिलना ,स्वार्थवश मिलना दोनों होते हैं अलग स्वयं जो आते नज़र
बशर्ते हम समझ सकें दोनों का फर्क ,ज़िंदगी हो जाएगी बहुत ही सुखद और सुंदर
रोशी --
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  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...