सोमवार, 28 फ़रवरी 2022

 जीवन जीने की विधा इसकी कला ना समझ पाया हर कोई

बड़े -बड़े ऋषि भी ना पा सके इस कला की कभी गहराई
राजा द्रुपद ने किया यज्ञ लेने को अपमान का बदला
पुत्री द्रोप्दी ने तो था सारा इतिहास ही था बदला
सम्पूर्ण महाभारत ही बना कारण द्रोपड़ी के सिर्फ एक व्यंग का
क्यो हम ऐसे अपशब्द अनजाने ही कर जाते है इस्तेमाल
जो हृदय विदीर्ण कर जाते हैं ,आत्मा को कर जाते हैं घायल
बस एक लम्हा ही काफी होता है जिव्हा को सुमधुर वचन को
क्रोध के आवेग को सम्हालने में तो ऋषि -मुनि भी थे असमर्थ
जो इसमें हुए सक्षम वो इतिहास में कर गए अपना नाम दर्ज़
हो जाती है सबसे गलती ,बस जरूरत है स्वप्रयास की ,कोशिश में है ना कोई हर्ज़
रोशी

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022

 कभी कभी जबर्दस्ती की मुस्कराहट से चेहरे को दमकाना पड़ता है

मन के भावों को हृदय के भीतर ही सँजो कर रखना पड़ता है
यह कलाकारी खुद ही सीखनी पड़ती है ,और प्रतिदिन परीक्षा भी देनी होती है
वक़्त ,हालत के मुताबिक ढल जाने की प्रवीडता हासिल करनी ही होती है
जिसने यह हुनर जान ,समझ लिया जीवन का सार मानो समझ लिया
सोलह कलाओं में इस विधा का बहुत अद्भुत महत्व है ज़िंदगी जीने के लिए
अपनी दुश्वारी समेट कर अपने दिल में रखो ,यही फलसफा है जीने के लिए
रोशी --

गुरुवार, 24 फ़रवरी 2022

 दोस्तों का साथ ,कुछ पल का हँसना खिलखिलाना

मन को कर देता आनंदित ,नव ऊर्जा से समाहित
वो कुछ पल ही बन जाते हैं खास बस यौं ही उनसे मिल -मिलाकर
हर रिश्ते की होती है कुछ मर्यादा ,कुछ सीमाएं जिनका ना होता होशो -हवास
बस कुछ चुगलियाँ ,कुछ घर -भीतर की मानो आ जाता सब बाहर
कुछ अपनी ,कुछ उसकी सुनी ,बस ठहाके लगाते निरंतर जोरदार
कुछ नया सीखते ,कुछ उसको सिखाते वक़्त कब गुजरता ना रहता याद
जीवन में रंग भर देती हैं यह गुफ्तगू ,कुछ पल ही सही जीवन हो जाता खुशगवार
रोशी -

बुधवार, 23 फ़रवरी 2022

 बासन्ती पवन ने ली है अंगड़ाई ,तरुवरों ने फिजा में खुशबू है फैलाई

मदमस्त है मौसम शीत लहर के प्रकोप से सबने थोड़ी मुक्ति पायी है
आम की बगिया में बौर ने खुशबू फैलाई है ,गुलमोहर की डाली भी फूलों से झुक आयी है
मोटे स्वेटर ,रज़ाई से सबने है निजात पायी ,बच्चे ने बाहर खेलने की इजाजत पायी है
सबको हो रहा सुखद एहसास इस मौसम के परिवर्तन का ,अभी जो बहुत सुखदाई है
परिवर्तन तो प्रकृति का शाश्वत नियम है ,इसका परिड़ाम भी जीवन के दोनों पहलू दिखाता है
सही या विपरीत दोनों परिसथितियों से लड़ने की ताकत और समझ से हमको रूबरू करवाता है
रोशी --

सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

 चुनावी माहौल में आजकल मस्त मंज़रों से होते रोज़ रूबरू

आम जनता हो गयी है कितनी स्वयं के लिए जागरूक
रोज़ अनगिनतओं रेलियां निकलती हैं अपने -अपने प्रचार वास्ते
आम आदमी भी इसका खूब फायदा उठा रहा है स्वयं के वास्ते
शायद सोच है उसकी कि नेता जी तो अब पाँच बरस करेंगे राज
लूटेंगे जनता को तो हम भी बहती गंगा में धो लें अपने हाथ
रोज़ वेश -भूषा बदल कर वो भी हो जाता है नित नई रैली के लिए तैयार
कल था लगाया नारा कमल के लिए आज है वो साइकल के लिए तैयार
नगद धन राशि ,कपड़ा ,राशन मिलेगा बस कुछ मीटर चलने पर
सौदा क्या बुरा है ?घर गृहहस्ती चलेगी कुछ महीने पटरी पर
सब अपने -अपने फायदे की जुगाड़ में हैं चाहे हो वो नेता या जनता
देश -समाज की ना थी पहले कोई सुध ,न अब कोई कभी है सोचता
रोशी --

रविवार, 20 फ़रवरी 2022

 नारी की सुबह होती ही है हँसते -मुस्कराते चाहे सारी रात गुजरी हो करहाते

शक -शुबहा भी ना होने देती हाले -दिल का ,उसमे सब समेत जाती है
महिलाएं तो प्रातः कल से ही अपने मन माफिक हाव -भाव बदलती हैं
शायद यह उनकी मजबूरी ,आदत है ईश्वर प्रदत्त गुण को खूब भुनाती हैं
कभी बच्चों की खातिर ,कभी घर-परिवार के वास्ते नारी मुस्कराती है
मन में हो गहन विषाद ,तड़प पर मजाल है किसी को भनक ना लगने देती है
यह कला बस खुदा ने नारी को ही बक्शी है ,इसमें उसको ईश्वर ने पारंगत बनाया है
अपनी पीड़ा भीतर समेटना ,उपर से ज़ोर -ज़ोर से हसना अद्भुत है यह कलाकारी
बेजोड़ कला पायी है नारी ने मन में हो उसके चाहे कितनी भी दुश्वारि
रोशी --

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2022

 पुरानी यादों का बक्सा तो सबके पास होगा

सभी ने उसको अब तक सहेज कर रख छोड़ा होगा
गाहे -बगाहे उसमें रखे यादों के पन्ने तो जरूर सरसराये होंगे
कुछ पुरानी यादों ने अलबत्ता आँखों के कोर जरूर भिगोये होंगे
कुछ सखियों के साथ की चुहल-बाज़ियाँ ने मन को बरसों पीछे खींचा होगा
कभी छोटे से टुकड़े पर की कढ़ाई जो आज भी बक्से में नीचे अहतियात से सँजो रखी होगी
कितनी बेशकीमती यादें उस बक्से में आज तक रख छोड़ी हैं ,शायद ज़िंदगी भर
कभी न कभी हम एक छोटी सी दुनिया में ,पूरे जहां की खुशियाँ समेट लेते हैं उम्र भर
अखबार की कतरनें ,लतीफों का खजाना ,कुछ पुरानी तस्वीरें बस फालतू सी चीज़ें कब बन जाती हैं जान से भी ज्यादा प्यारी समेटते रहे जो बचपन भर
कभी -कभी खोल कर हवा लगा देते हैं उन बेमतलब चीजों को समेट कर
हिम्मत बटोरते हैं फैकने की उनको ,पर हाथ बेसाख्ता रुक जाते हैं हर बार
रोशी-

सोमवार, 14 फ़रवरी 2022

 सिर्फ एक दिन प्रेम -दिवस के लिए क्यौ ?

प्रेम का एहसास बाकी 364 दिन भी क्यौ नहीं ?
पत्नी ,प्रेमिका तक ही क्यों सीमित रखे इस जज्बे को
माँ ,बेटी -बहन ,अनगिनत रूप हें हमारे आस -पास इसके
बस दिल से ,नज़र से देखने की देर है हमको ,उन तक पाहुचाने की इसको
देर किस बात की है ,क्यौ ना आज से ही शुरुआत कर दे इसकी
और प्रेम रंग से सरोबार कर दें काया अपने प्रिए की
बड़ा ही गहरा रंग होता है प्रेम का ,जो भिगोता है दोनों को
देने वाला भी भीग जाता है प्रेमरस में ,पाने वाला भी मदमस्त हो जाता है
रोशी--

  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...