सोमवार, 18 अगस्त 2025

मायके आते वक़्त बेटियां चुपके से बाँध लाती हैं पल्लू में कुछ अनमोल दाने
वापसी पर रोप जाती हैं पीहर की दहलीज पर खुशियों की फसल बसअनजाने
पीहर की दीवारें ,चौबारा सब बोल पड़ते हैं यकायक यूँ ही बिटिया से
तक रहे थे कब से राह तुम्हारी ,बेसब्री से कहाँ थीं तुम? ,पूछते हैंसब बिटिया से
मां के हाथों से बनी एक सुखी रोटी भी दे जाती अनुपम,अद्भुत स्वाद बिटिया को
बचपन का स्वाद यकायक संतुष्ट ,तृप्त आज कर गया जी भर कर बिटिया को
भाई की सलामती,मां की लम्बी उम्र की दुआएं मन ही मन दे जाती हैं बेटियां
मायके की खुशहाली के सजदे मन ही मन पड़ जाती हैं हमारी लाडली बेटियां
खुशियों की सौगात देने ,जिन्दगी के कुछ अनमोल पल गुजारने आती हैं बेटियां
कुछ लेने नहीं ,बेमकसद बस प्यार की डोर से खिंची चली आती हैं यह बेटियां
--रोशी 



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