बुधवार, 25 मई 2011

क्या उम्मीदें होंगी पूरी

आँचल में सारा प्यार भरकर उडेलना चाहती है माँ 
पर कुछ बन्धनों में बेडिओं में जकड़ी है वो माँ 
चाह कर भी कभी कुछ ना कर पाने का मलाल करती है माँ 

सर्वस्व न्योछाबर करने को हरदम तैयार रहती है माँ 
बिना कभी भी यह जाने की औलाद किया करेगी ना सोचती माँ 
जब आंखे होंगी कमजोर तो किया सहारा बनेंगी औलाद ?
जब शरीर थकेगा तो किया हाथ पकड़ेगी औलाद सोचती है हरदम माँ ?
जब होगी वृद्ध , असहाय तो किया बोझ उठाएगी औलाद 
सोचती है माँ ?

11 टिप्‍पणियां:

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

सर्वस्व न्योछाबर करने को हरदम तैयार रहती है माँ
बिना कभी भी यह जाने की औलाद क्या करेगी ना सोचती माँ...

बहुत सुन्दर विचारों ते परिपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

माँ ही तो सबका ख्याल रखती है!

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

माँ तो सब कुछ करती है अपनी औलाद के लिए .......

अब सभी औलादें अपनी माँ के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करती हैं या नहीं .... चिंतनीय विषय है

Shikha Kaushik ने कहा…

Roshi ji bahut hi matmikta ke sath maa ke mahtv ko ukera hai aapne .aabhar .

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति.. बिना प्रतिफल की इच्छा के केवल माँ ही अपना सर्वस्व बच्चे पर न्यौछावर कर सकती है, पर आज कल बच्चे कितना उसके बारे में सोचते हैं? बहुत सुन्दर विचारणीय प्रस्तुति..

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

भावपूर्ण रचना.. मुनव्वर राना की दो लाइन याद आ रही है।

मां मेरे गुनाहों को कुछ इस तरह से धो देती है
जब वो बहुत गुस्से मे होती है तो रो देती है।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

माँ सदा सहारा रही है और रहेगी।

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

मां की ममता और महत्व को तो अवतार लेकर भगवान ने भी स्वीकारा है...
बहुत सुंदर...

संजय भास्‍कर ने कहा…

हुत सुन्दर विचारणीय प्रस्तुति..

Lata agrwal ने कहा…

ma ki mamta ko bahut sunder shabdo me likha hai.

Lata agrwal ने कहा…

ma ki mamta ko bahut hi sunder shabdo me likha hai.

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