झूठी -सच्ची अफवाहें सुन रहे हैं निरंतर महाकुम्भ की क्या सच ,क्या झूठ कोई जानकारी नहीं है महाकुम्भ की जो जाए वो भी पछताए कुम्भ ,जो ना जाए वो भी पछताए कुछ भी सच्ची असलियत ,तकलीफें सटीक ना जान पाए टीवी ,समाचार पत्र ,सब निज सुविधानुसार जनता को गुमराह करता जाए मनगढ़ंत कहानियां ,किस्से सुन -सुन दिमाग की धज्जियाँ उड़ती जाए मन की व्यथा सबकी बड़ी विचित्र दौर से है गुजर रही सभी की एक दूजे को देख भागे जा रहे सब ,मनोदशा विचित्र चल रही सभी की
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें