Roshi's Poetry
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रविवार, 14 सितंबर 2025
हिंदी दिवस के अवसर पर ...हिंदी भाषा की व्यथI-----------------------------------------
सुनिए गौर से सब मेरी कहानी ,मेरी बदकिस्मती खुद मेरी जुबानी
बड़ा नाज़ था मुझको खुद की संप्रभुता पर ,थी मैं अपने घर में रानी
पनाह दे बैठी दुर्भाग्यवश कुछ लम्हों को निज घर में बहन को थी जो अंग्रेजी रानी
विभाजित और खंडित कर दिया परिवार मेरा ,बन गई थी में अपने घर में बेगानी
बंगाली ,उड़िया ,तेलगु ,मलयालम सरीखे नामों से बंट गए थे सब मेरे अपने
मैं रही शांत ,निश्छल ,खामोश क्यूंकि वे तनिक दूर ही थे मेरे सब अपने
बर्बादी ना रुकी मेरी ,अंग्रेजी ने समेट डाला नई भाषाओँ का भी वर्चस्व
गहरे तक जडें बैठा ली थी ,मिटा डाला मेरी नवीनतम रूहों का भी सर्वस्व
मेरा परिचय ,,बोलचाल ,समूल वजूद का नाश कर दिया था मेरे अपनों ने
भावी नस्लों को जन्मते ही कर दिया अपरचित मुझसे ,भीषण सजा दी अपनों ने
मर्मान्तक ,भयानक पीड़ा,और दुःख होता है जब जख्म देते हैं रूह को अपने
करते हैं शर्म महसूस आता है जब जिक्र मेरा ,झुका और छिपा लेते हैं चेहरे अपने
सिलसिला गर यूँ ही चलता रहा ,कदापि अब दूर नहीं बचा है देश में मेरा विनाश
निरंतर मिट रहा है अस्तित्व मेरा ,पन्नों में ही सिमट कर रह जाएगा मेरा इतिहास
--रोशी
सोमवार, 18 अगस्त 2025
हम स्वतंत्रता दिवस पूरे जोशो खरोश से मना रहे हैं
बेशक हम अंग्रेजों की गुलामी से तो आजाद हो गए हैंधर्म ,जाति की जंजीरों में हम बुरी तरह जकड़े हुए हैं
बेटियां तो जन्मते ही वहशियों की नज़रों में खटकती हैं
बहुओं के सपने ससुराल की लपटों में खाक हो रहे हैं
बेटे भी खुद को सुरक्षित ना मान बेबजह दम तोड़ रहे हैं
क्योँ नहीं एक सुन्दर ,स्वस्थ समाज की हम कल्पना नहीं कर रहे हैं ?
विश्व पटल पर हिंदुस्तान स्वर्ण अक्षरों में लिखा हम क्यों नहीं देख पा रहे हैं ?
--रोशी
त्यौहार जिन्दगी में रंग बिखराते हैं ना कि तकलीफें
हम क्योँ अपनी खुशिओं में गैरों को देते हैं तकलीफेंत्यौहार कुछ इस तरह मनाते हैं कि गैर धर्मों का उड़ाते हैं मजाक
अपनी मर्यादा बिसरा कर गैरों का करते हैं भरपूर अपमानऔर तिरस्कार
हर धर्म सिखाता है अहिंसा ,प्रेम ,मोहब्बत और भाईचारा का पाठ
कत्लेआम ,तोड़फोड़ ,हिंसा,आगजनी कोई धर्म है नहीं सिखाता
गर समझ लिया धर्म को गहराई से तो जो है प्रेम का पाठ पढाता
--रोशी
शीशे के कीमती गुलदान की मानिद होती है लड़की की इज्ज़त
सहेज कर रखना है बेहद जरूरी, बेशकीमती जेवर जो है अस्मतमामूली सी ठेस,अक्स छोड़ देती है गहरा, जिसकी भरपाई है ताजिंदगी मुश्किल
एक खरोंच गहरे ज़ख्म दे जाती है शीशे पर ,किरचें समेटना होता बड़ा मुश्किल
सीता ने ही दी थी अग्निपरीक्षा अपनी नेक किरदारी,ज़मीर की सारे ज़हां को
बेटियों को रखना पड़ता है ताउम्र ,हर कदम फूंक -फूंक कर दिन और रात
सम्हालना होता है शीशे का गुलदान शदीद एहतियात से इज्ज़त के साथ
दुनिया भरी पड़ी है शोहदों , दहशतगर्दों ,हैवानों और गिद्धों से हर कदम पर
आत्मा विदीर्ण हो उठती है जब बेटियों की अस्मत लुटती है बेदर्दी के साथ
बेशक चाँद पर क्यों ना पंहुंच जाए बेटी अनहोनी वहां भी हो सकती है उसके साथ
--रोशी
सम्पूर्ण विश्व युद्ध की आग में जल रहा है
एकदूजे की सत्ता हथियाने में लगे हैंइन्सान की जिन्दगी बेमोल हो गयी है
अनाथ बच्चों ,विधवा स्त्रिओं की संख्या में इजाफा हो रहा है
किसको फ़िक्र है इन सबकी ?बस मिजाइलों पर निशाना है
गरीब देशों की मजबूरी का फायदा सब मिल कर उठा रहे हैं
हालत बद से बदतर और इन्सान गाजर मूली सामान काटे जा रहे हैं
परमाडू बम की तबाही का सबक हिरोष्मा -नागासाकी को बिसरा बैठे हैं
तबाही का खामियाजा जापानी आज तक अपनी नस्लों में चुका रहे हैं
इंसानी जिन्दगी पर पूरी राजनीति और घटिया सौदेबाजी सब नेता कर रहे हैं
--रोशी
किस दिशा की ओर जा रही है नारी जाति?बेटी ,पत्नी और बहिन
ममता ,प्रेम ,सहनशीलता जैसे गुणों का हो गया समूल उनमें पतनक्या विदेशी सभ्यता का प्रादुर्भाव है ?कमी रह गयी है हमारे संस्कारों की
मर्यादा की सीमाएं लाँघ बैठी है बेटियां,भूल बैठी हैं परवरिश मां -बाप की
परिवार,सात जन्मों का बंधन बिसराकर लक्ष्मण रेखा लाँघ रही हैं बेटियां
शिक्षा,आज़ादी का दुरुपयोग ,निज संस्कार ,विदेशी सभ्यता अपना रही हैं बेटियां
आसमां छुओ ,पंखों को फैलाओ, पर पाँव ज़मीन पर जरूर रखना सिखाना होगा
बेटियों को परिवार,विवाह,मातृत्सव सरीखी शिक्षा भीअब नियमित सिखाना होगा
--रोशी
मायके आते वक़्त बेटियां चुपके से बाँध लाती हैं पल्लू में कुछ अनमोल दाने
वापसी पर रोप जाती हैं पीहर की दहलीज पर खुशियों की फसल बसअनजाने
पीहर की दीवारें ,चौबारा सब बोल पड़ते हैं यकायक यूँ ही बिटिया से
तक रहे थे कब से राह तुम्हारी ,बेसब्री से कहाँ थीं तुम? ,पूछते हैंसब बिटिया से
मां के हाथों से बनी एक सुखी रोटी भी दे जाती अनुपम,अद्भुत स्वाद बिटिया को
बचपन का स्वाद यकायक संतुष्ट ,तृप्त आज कर गया जी भर कर बिटिया को
भाई की सलामती,मां की लम्बी उम्र की दुआएं मन ही मन दे जाती हैं बेटियां
मायके की खुशहाली के सजदे मन ही मन पड़ जाती हैं हमारी लाडली बेटियां
खुशियों की सौगात देने ,जिन्दगी के कुछ अनमोल पल गुजारने आती हैं बेटियां
कुछ लेने नहीं ,बेमकसद बस प्यार की डोर से खिंची चली आती हैं यह बेटियां
--रोशी
हिंदी दिवस के अवसर पर ...हिंदी भाषा की व्यथI ----------------------------------------- सुनिए गौर से सब मेरी कहानी ,मेरी बदकिस्मती खुद मेरी...
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रात का सन्नाटा था पसरा हुआ चाँद भी था अपने पुरे शबाब पर समुद्र की लहरें करती थी अठखेलियाँ पर मन पर न था उसका कुछ बस यादें अच्छी बुरी न ल...
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आया था करवा चौथ का त्यौहार काम बाली-बाई देख चौक गए थे उसका श्रंगार पिछले कई महीनो से मारपीट, चल रही थी उसके पति से लगातार चार दिन पहले ही...
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हम स्वतंत्रता दिवस पूरे जोशो खरोश से मना रहे हैं बेशक हम अंग्रेजों की गुलामी से तो आजाद हो गए हैं धर्म ,जाति की जंजीरों में हम बुरी तरह जक...