फटी कथरी ,चिथड़ों से तन कैसे ढका जाता है कदाचित कोई कैसे जाने ?
जब सर पर ना हो छप्पर,पन्नी तो पूस की रात कैसे गुजरती है कोई कैसे जाने ?
मात्र एक गुदड़ी में पूरा परिवार कैसे सिमट जाता हैशीत काल में कोई कैसे जाने ?
आग की तपिश,अलाव के स्वप्न मात्र से लंबी रातें कैसे गुजरती हैं कोई कैसे जाने
नाममात्र के वस्त्रों के साथ हाड़ गलाती शीत लहर में हंसकर जीना कोई कैसे जाने
गुजर जाती है बेबस ,गरीब की जिन्दगी उसका तसुब्बर करे बगैर कोई कैसे जाने?
सहनशक्ति,बर्दाश्त की बेमिसाल ताक़त पाई इन लाचारों ने जो कोई कभी ना जाने
--रोशी
जब सर पर ना हो छप्पर,पन्नी तो पूस की रात कैसे गुजरती है कोई कैसे जाने ?
मात्र एक गुदड़ी में पूरा परिवार कैसे सिमट जाता हैशीत काल में कोई कैसे जाने ?
आग की तपिश,अलाव के स्वप्न मात्र से लंबी रातें कैसे गुजरती हैं कोई कैसे जाने
नाममात्र के वस्त्रों के साथ हाड़ गलाती शीत लहर में हंसकर जीना कोई कैसे जाने
गुजर जाती है बेबस ,गरीब की जिन्दगी उसका तसुब्बर करे बगैर कोई कैसे जाने?
सहनशक्ति,बर्दाश्त की बेमिसाल ताक़त पाई इन लाचारों ने जो कोई कभी ना जाने
--रोशी
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