माँ रेशमी साड़ी को तरसती गुजर गई
सारी जिन्दगी और बचत बेटे पर खर्च करती रही
पिता उम्र से पहले ही बूड़े हो गए ,कंधे झुक गए
बच्चों की खातिर निवाले और छत की जुगत ही बैठाते रह गए
जवानी कष्टों ,तकलीफों में गुजार चेहरे पर एक शिकन तक ना महसूस होने दिया
बुडापे में बेटों ने जन्मदाता को परस्पर सहूलियत से दरकिनार कर दिया
श्राद्ध पर दिल खोलकर भोजन ,वस्त्र बांटकर समाज में परचम फैला दिया
भरपेट भोजन ,फल मिष्ठान को जो तरसे जिन्दगी भर उसको बंटवा दिया
बुजुर्गों की सेवा ,इज्ज़त जीतेजी कर लो ,आत्मा पर शदीद बोझ कम हो जाएगा
सिवाए यादों के बरना हमारे पास जन्मदाता की और कुछ ना रह जाएगा
--रोशी
पिता उम्र से पहले ही बूड़े हो गए ,कंधे झुक गए
बच्चों की खातिर निवाले और छत की जुगत ही बैठाते रह गए
जवानी कष्टों ,तकलीफों में गुजार चेहरे पर एक शिकन तक ना महसूस होने दिया
बुडापे में बेटों ने जन्मदाता को परस्पर सहूलियत से दरकिनार कर दिया
श्राद्ध पर दिल खोलकर भोजन ,वस्त्र बांटकर समाज में परचम फैला दिया
भरपेट भोजन ,फल मिष्ठान को जो तरसे जिन्दगी भर उसको बंटवा दिया
बुजुर्गों की सेवा ,इज्ज़त जीतेजी कर लो ,आत्मा पर शदीद बोझ कम हो जाएगा
सिवाए यादों के बरना हमारे पास जन्मदाता की और कुछ ना रह जाएगा
--रोशी
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