शनिवार, 4 जनवरी 2025

 


 जमाना कहता है कि हम बेरुखे हो गए
कभी बदलती फिजां पर गौर ना किया
मौसम के पलटते मिजाज़ को गर देखा होता ध्यान से
समझ आ जाता हम ऐसे आजकल क्योँ हो गए ?
चेहरों पर पड़ा नकाब हट गया ,आते-जाते रंग दिख गए
कल जो अपने थे आज हमसे कुछ यूँ जुदा हो गए
समझने लगे जब से ज़माने की बदलती फितरत
समझ आ जाता हम ऐसे आजकल क्योँ हो गए
--रोशी 

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