शनिवार, 4 जनवरी 2025

बहकाबे

केकई कैसे फंसी मंथरा के मकड़ जाल में और विसरा दिया 
समान्त पुत्र प्रेम 
एक पल में ही धाराशाही हो गया वो स्नेह और संतान प्रेम 
बचा ना था आज कोई प्रीत के धागों का कतरा 
 मान भी राम से ले रही थी वो सारी पिछली ममता नेह का हिसाब भी
हाँ ! यही तो पढ़ा था बालपन से किताबों में हमने 
सोचते रहे ताउम्र कि कैसे भूला देता है वो अपने 
पल भर में ही निर्मोही ,निष्ठुर वक्त का झंझावत
ही बना देता है
अब दुनिया परखी और समझ आया कि हाँ सब 
कुछ हो सकता है कभी भी
टूट जाते है पलमान में नेह के अटूट और अनूठे बंधन 
बहकाबे की व्यार पल में उड़ा सकती है बरसों का बंधन 




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