इन्सान मौजूदा दौरमें इतना व्यस्त है कि जिन्दगी से सुकून गायब हो गया है
बचपन से लेकर आजकल बुडापा भी सबका कुछ यूँ ही कटता दिख रहा हैनौनिहालों के पास भी वक़्त नहीं है दादी -बाबा से लोरियां सुनने का आजकल
खेलना,भागना -दौड़ना तो सब गुजरे ज़माने की बातें बन गयी हैं आजकल
जिन्दगी की आपाधापी में बचपन से ही सब उलझ कर रह गए हैं मौजूदा वक़्त में
जिन्दगी के सबक ,संस्कार सीखने-,देखने का वक़्त ही नहीं हैआजकल इन्सान में
किताबों के बोझ तले कुचल देते हैं बचपन ,बच्चों को रोबोट बना रहे हैं हम खुद
प्रकृति ,परिवार ,समाज से दूर रखकर बच्चों को मशीन बना रहे हैं हम खुद
मानसिक अवसाद,अकेलापन जन्म ले रहा है, जिन्दगी से सुकून गायब हो रहा है
आने वाली नस्लों का भविष्य सुन्दर और सहज बनाना होगा हमको अभी से
गर ना चेते अभी तो जीवन असुरक्षित ,असहज बन कर रह जायेगा बचपन से
--रोशीv

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