गुरुवार, 18 दिसंबर 2025

 


इन्सान मौजूदा दौरमें इतना व्यस्त है कि जिन्दगी से सुकून गायब हो गया है

बचपन से लेकर आजकल बुडापा भी सबका कुछ यूँ ही कटता दिख रहा है
नौनिहालों के पास भी वक़्त नहीं है दादी -बाबा से लोरियां सुनने का आजकल
खेलना,भागना -दौड़ना तो सब गुजरे ज़माने की बातें बन गयी हैं आजकल
जिन्दगी की आपाधापी में बचपन से ही सब उलझ कर रह गए हैं मौजूदा वक़्त में
जिन्दगी के सबक ,संस्कार सीखने-,देखने का वक़्त ही नहीं हैआजकल इन्सान में
किताबों के बोझ तले कुचल देते हैं बचपन ,बच्चों को रोबोट बना रहे हैं हम खुद
प्रकृति ,परिवार ,समाज से दूर रखकर बच्चों को मशीन बना रहे हैं हम खुद
मानसिक अवसाद,अकेलापन जन्म ले रहा है, जिन्दगी से सुकून गायब हो रहा है
आने वाली नस्लों का भविष्य सुन्दर और सहज बनाना होगा हमको अभी से
गर ना चेते अभी तो जीवन असुरक्षित ,असहज बन कर रह जायेगा बचपन से
--रोशीv

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