सड़क पर फटी कथरी ,नाम मात्र के वस्त्रों में कांपते इन्सान ही जाने
कहर की रात ,एक- एक प्रहर काटना नामुमकिन वो गरीब ही जाने
भट्टी की ठंडी राख के नीचे छुपे कुत्ता- बिल्ली बेजुबान रात कैसे काटते ईश्वर जाने
बेसहारा,बेघर सूरज के आगमन की प्रतीक्षा में शीत लहर झेल जाता वो ही जाने
हाड़ गलाती शीत लहर आम इन्सान के बस में ना है झेल पाना बस वो ही जाने
हीटर ,अंगीठी के आगे भी ठिठुर रहा इन्सान ,बिना कपडे जो जिन्दा है वो ही जाने
अद्रश्य शक्ति ईश्वर ने दी है शायद गरीब को कष्ट झेलने की यह ईश्वर जाने
--रोशी

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