गुरुवार, 18 दिसंबर 2025


 उपरवाला भी बेमौसमी बरसात कहर की माफिक बरसा रहा है

जब धान की फसल कटने को है बिलकुल तैयार आफत बरसा रहा है
सपने थे ,उम्मीदें थीं अनगिनत दिल में सब कुछ समेट गया यह गिरता पानी
सब ख्वाब मिटटी में दफ़न हो गए जब देखा यूँ आसमान से गिरता पानी
आसमां से गिरता पानी सबको दिखा,खून के आंसू गरीब के ना कोई देख पाया
दिवाली की मिठाई ,दिए ,फुलझड़ी बच्चों के खिलोने सब हो गए बरसात में जाया
कितनी तकलीफों से गुजर उम्मीदें सजाई थी त्यौहार की ,घर में खुशहाली की
पल में अर्श से फर्श पर पंहुचा दे ,पलों में बिगाड़ दे दुनिया किसी की
गरीब की फसल से होती है होली या दिवाली ,बरना रहते उसके हाथ हमेशा खाली
ईश्वर करे ना अनर्थ दुखियारों के साथ,मना सके यह भी ख़ुशी से होलीऔर दिवाली
--रोशी

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