काश सिर्फ एक दिन मर्द घर- गृहस्थी औरतों की जगह सम्हाल कर देखें
सुबह अलार्म की घंटी से मशीन की माफिक भागना -दौड़ना करके देखें
बर्तन ,कपडे ,खाना ,बच्चे ,परिवार सब सम्हालती हैं फिरकी की तरह दौड़कर
चेहरे पर बिना शिकन ,बिना किसी शिकायत घर-दफ्तर सब सम्हालती हैं हंसकर
घर का राशन ,स्कूल ,शादी -व्याह किस खूबसूरती से निभाती हैं इतने मोर्चे
इतना हौसला ,जिगर दिया रब ने औरतों को एक साथ निभाने को सभी मोर्चे
प्रसव पीड़ा को बर्दाश्त कर सकती है तो सिर्फ औरत ,मर्दों के बस की बात नहीं
नौ महीने गर्भ में बच्चा लेकर घर की जिम्मेदारी सम्हाल सकना मामूली बात नहीं
--रोशी
गुरुवार, 18 दिसंबर 2025
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