कचरी,पापड़ जाड़े की धूप में छत पर बनाने का आनंद कुछ अलग था
बड़ी -मंगोड़ी तोड़ती औरतों का झुण्ड अलग ही कहानी कहता था
आलू के चिप्स तो अमीर -गरीब सबकी छतों पर बनते और सूखते थे
छोटे बच्चे से लेकर बड़ों तक पूरे परिवार सम्मलित हो जाते थे
आँगन चौबारे सब खुशबू से महकते थे,बच्चे कच्चा ही सामान खा जाते थे
भूले भटके गर कभी बानर सेना आ जाए तो मोहल्ले सारे हिल जाते थे
ना वो वक़्त रहा ,ना खाने वाले रहे ,पैकिट में चिप्स -पापड़ सिमटने लगे
हमने देखा है वो वक़्त ,याद आता है अक्सर वरना ज्यादातर परिवार अब भूल चले
--रोशी
गुरुवार, 18 दिसंबर 2025
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