घर के बुजुर्गों को जीते जी इज्ज़त और औलाद का कीमती वक़्त चाहिए
एक कमरा और दो वक़्त की रोटी ,दवा और नाममात्र का सामान चाहिएउम्र बदने के साथ रुपया -पैसा ,ज़मीन जायदाद उनको कुछ भी ना चाहिए
फलता फूलता परिवार,नाती -पोतों की आँगन में किलकारी बस जीने को चाहिए
बेशुमार व्यंजन ,बेशकीमती लिबास ,उम्र के साथ इच्छाएं भी अब हो जाती हैं कम
उनको क्या चाहिए नज़र उठाकर कभी देखते भी नहीं उनकी जिन्दगी में हम
श्राद्ध में मनपसंद व्यंजन ,वस्त्र बांटे, जीते जी उनको अपनी पसंद परोसते रहे
माता पिता क्या पहनेगें ?बस सदेव हम उन पर अपनी ही पसंद थोपते रहे
जीते जी बुजुर्गों को इज्ज़त अपना कीमती वक़्त गर दिया होता हमने कभी
रूह से निकलती दुआओं का जखीरा भरपूर होता आज हम सबके पास अभी
--रोशी

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