कोहरे की चादर ने समेट लिया निज आगोश में प्रकृति को
आकाश से मानो बर्फ गिर रही हो ,कुछ ना सूझता एक दूजे को
मात्र एक दो दिन के कोहरे से ही अस्तव्यस्त हो उठती जिन्दगी
जहाँ पूरे वर्ष रहता बर्फ,कोहरा कल्पना से परे है वो जिन्दगी
सामान्य जीवन जीते हैं वहां के निवासी ,हम घबरा उठते हैं दो चार दिन में
प्रकृति सिखा देती है जीने का तरीका सबको अलग -अलग ढंग में
--रोशी

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