
जल्दी स्नान ना ही पूजा, व्यायाम और न ही ध्यान
सुबह से मन है व्याकुल और परेशां
कब कहाँ खो गया मन और ध्यान ना थी कोई पेरशानी न था कोई व्यवधान
मन था निरंतर विचलित तीव्र गतिमान
सुबह से था कौन किधर न था ध्यान
शायद यह था मौसम और प्रकृति का तापमान
किया था जिसने हमको निरंतर परेशां
घर भीतर बहार अन्दर था मन चलायमान
बढती गर्मी उमस बाताबरण का था व्यवधान
निरंटर आग उगलते शोले
था कोई नहीं समाधान
इश्वेर ही दे सकता है
अब शीतलता का तापमान
पशु पक्षी नर नारी सभी व्याकुल थे चलायेमान
हे प्रभु कर दो दया भर दो सागर नदी और आसमान
बरसा दो नेह अमृत धरा पर घम घमासान .............