लाडली
माँ ही चिडया कि मानिद समेट लेती है अपने बच्चे
अपने लाडलों के साथ ही जीती और मरती है
बेटियों में बसती है उसकी जान , जीती है उनमें अपना आधा -अधूरा बचपन
स्वेटर की तरह ही तो रोज बुनती और उधेरती है नित नए सपने
व्याह दी जाएँ जब उसकी बेटियां तो सिर्फ आवाज़ से समझ जाती है
अपनी शहजादियों का दावानल ,उनकी पीड़ा और अब बदल जाते उसके स्वप्न
अब दूंदने में लग जाती माँ एक अदद अलादीन का चिराग
मिलते ही जिन्न से मांगे वो सिर्फ और सिर्फ अपनी लाडली का सुखमय जीवन
तभी तो माँ से ही होता मायेका और माँ से ही जीवन
अपने लाडलों के साथ ही जीती और मरती है
बेटियों में बसती है उसकी जान , जीती है उनमें अपना आधा -अधूरा बचपन
स्वेटर की तरह ही तो रोज बुनती और उधेरती है नित नए सपने
व्याह दी जाएँ जब उसकी बेटियां तो सिर्फ आवाज़ से समझ जाती है
अपनी शहजादियों का दावानल ,उनकी पीड़ा और अब बदल जाते उसके स्वप्न
अब दूंदने में लग जाती माँ एक अदद अलादीन का चिराग
मिलते ही जिन्न से मांगे वो सिर्फ और सिर्फ अपनी लाडली का सुखमय जीवन
तभी तो माँ से ही होता मायेका और माँ से ही जीवन