कहाँ खो गया वो खूबसूरत ,मस्त बचपन
अब तो नज़र ही ना आते किसी बच्चे के वो दिन
मशीनी जिन्दगी हो गयी है माता -पिता की खुद की हर दिन 
उसमें ही पिसता रहता है आजकल के नौनिहालों का सम्पूर्ण बचपन 
धमाचौकड़ी ,कूदते -फांदते बच्चे ना दिखते,छूट गया सबका बचपन  
बाकी बचा वक़्त लील गया मोबाइल ,निष्क्रिय बना दिया है बालकों का बचपन 
परिवार कहाँ होता इकठ्ठा एक साथ ,गपशप करे आपस में बीत जाते ढेरों दिन 
सलाह -मशवरा देता अब गूगल ,छूट गए पीछे  बुजुर्गों के वो भी थे सुनहरे दिन 
परिवार,,पड़ोसी सब रिश्ते सिमट गए मोबाइल भीतर, मिल बैठे ना अब कोई दिन  
किसी की ना होती जरूरत महसूस घर के कोने में ही सिमट गया है अब बचपन
                                                                                         --रोशी
