गुरुवार, 27 अगस्त 2020

पुनर्जन्म ......
बन्द खिड़की का पट खुला 
मानो जिंदगी को मिली नई उडान
क्योंकि उसका शरीर था निष्क्रिय
  कल्पना को उसकी मिले   नए रंग
अम्बर नीला ,बादल सफ़ेद  बिखरे थे चहुं ओर बहुरंग 
कैसा अम्बर ,कैसा बादल और कैसा इन्द्रधनुष  का है रंग ?
सोचती ही रही  थी  जो इतने बरसों से .आज भर उठे जीवन  में  सप्त रंग |
तन का रंग तो सबने खूब धोया पर ह्रदय में ना झांक पाया कोई
काया बना ली कोरी अपनी पर आत्मा और दिल ना बदल पाया कोई
आतंक,दहशत ,जुल्म ,झूठ ,फरेब के पक्के रंगों  से आत्मा है  सरोवार
काश हम देख पाते झांक कर अंतस में अपने ,काया को निर्मल किया होता एकबार 
  होली के रंग विखराते अद्भुत घटा  और ना होती होली बदरंग
खुद भी मनाते पावन त्योहार ,दुनिया को प्यार के रंग से करते सरोबार 

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