मंगलवार, 19 जुलाई 2011

दर्द इतना क्यूँ ?

छोड़ दिया है आब दिल पर पड़ी गर्द झाड़ना भी
क्यूंकि उसके साथ- साथ नासूर भी हो जाते हैं
फिर देते हैं टीस , कर जाते हैं घायल रूह को
तो सोचा क्यूँ हटाऊं इस गर्द को मई भी
मरहम का काम इससे ज्यादा न कर सकेगा कोई भी
दब जाते हैं इसके नीचे सभी जख्म और घाव
अनगिनत है जो शायद गिन भी न सकेगा कोई भी ....

एक चेहरे पे कई चेहरे

एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं लोग
क्या खूब कहा है किसी ने सच में होते हैं ऐसे लोग
सामने कुछ और,पीछे कुछ बाते बनाते ही रहते हैं लोग
मन भर उठता है जब देखते हैं रोज ऐसे १०-२० लोग
क्या दुनिया में अपना कोई नहीं पूछता है मन हमसे रोज
इस मन को कैसे समझाएँ की होते नहीं हैं सब अपने लोग
सामने दुआए पीछे बददुआएं पल पल रंग बदलते लोग
दिल करता चीत्कार , आत्मा हाहाकार देखकर आसपास ऐसे लोग
पर क्या करें दुनिया- दारी तो न छोड़ी जाएगी चाहें कुछ भी करे लोग
दिल की न सुनकर दिमाग से ही पहचाने जाते हैं ऐसे लोग
कितना भी मजबूत रक्खें पर दिल फिसल ही जाता है देखते ही ऐसे लोग
चिकनी चुपड़ी, निज प्रशंशा सुनने को मन ढूंडता है ऐसे लोग .........

  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...