ना कोई शब्द .ना कोई अलफ़ाज़ बचे हैं आज हमारे पास
सब कुछ चिंदी -चिंदी उड़ गए ,बह गए समूचे दर्द के दरिया में
थोडा -थोडा तो हम रोज़ मरती ही थी कुदरतन इस समाज में
क्यूंकि हम लड़की जो जन्मी थी माँ के गर्भ से ,इस दुनिया में
कभी राह चलते शोहदों ने किया था दुश्वार ,और छीन लिए एहसास
सारे गिद्ध रोज़ ताकते ताज़ा मांस अपनी अपनी मंडी का
किसको और कैसे मिलता जरा भी ना भान रहता अपनी अपनी बेटी का
क्यूंकि हम लड़की जो जन्मी थी माँ के गर्भ से ,इस दुनिया में
बहुत हो चुका अब अत्याचार मासूमों पर ,अब तो उठो और चेतो
घर में ही सिमट जाएगी जिन्दगी अब बेटी की
देश के नेता तो कुछ कर ना सकेंगे ,खुद हैं जो खुनी और बलात्कारी
आवाम को ही करना , बेटिओं को खुद लड़ना होगा