सोमवार, 31 जनवरी 2022

 चंद्र ,सूर्य सम गृह चाहे कोशिश कर लें जितना

राहू ,केतू भी अपना स्थान परिवर्तन कर लें कितना
पर दीन -हीन की दशा ना बदल सकाहै कभी भी विधना
शायद ये गृह दशा ,सितारे भी अपना प्रभाव दिखाते हैं उतना
जब ईश्वर की मार से लाचार मानुष भी भूल बैठता है जीने का सपना
दारिद्र्य ,रोग ,विपन्नता जैसे गृह आ बैठते हैं कुंडली में समझ कर उसकी घर अपना
पीढ़ी -दर पीढ़ी चलती रह जाती ज़िंदगी बिना बदले निज स्वरूप अपना
वेद ,पुराण क्या उनकी कुंडली का कोई उपाए ना बूझ सके अंगुल जितना
कोई टोटका ,कर्म -कांड ,कभी ना फल दे सका बदल ना सका दुर्बल का जीने का सपना
समस्त राशि- फल उपाए ,,सदियो से बस बदलते रहे हैं सबल के संग स्वरूप अपना
रोशी --
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 जगविदित है की गम हो तो बाँट लो ,कम हो जाता है

हम मानते हैं खुशी भी बाँट लो दुगनी हो जाती है
फर्क सिर्फ इतना है कि अपना दिल किधर खोलते हैं
हमारे जज़्बात किसके दिल को छूते हैं ,तड़पाते हैं
वक़्त , मौका दोनों का सही होना भी बहुत जरूरी है
पर -पीड़ा ,दूजे का सुख दोनों को जज़्ब करना मुश्किल होता है
सही फैसला करना ,अक्सर दोस्तों बड़ा ही टेड़ी खीर होता है
तो दोस्तों सुख -दुख का पिटारा सदेव देख कर ही खोलो
वरना हो जाओ तैयार और उसका दंश ज़िंदगी भर झेलो
रोशी --
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Aditi Goel, Manju Maninder Bakshi and 7 others
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 प्रचड़ शीत लहर का हुआ है भीषण प्रकोप

शायद इसी कारण शब्द ,विचार सब शून्य
ना कोई एहसास ,ना कोई शब्दों का पास
सोचते बस गुजरता है दिन कैसे कटता होगा दिन -रात
बिन कथरी ,बिन बिछावन कुछ ना होगा जिनके पास
ईश्वर का वरद हस्त ही होता है जिनके साथ
प्रकर्तिक प्रकोप भी ना डिगा पाता जिनके जीवन की जिजीविषा
देखना है तो देखो कण -कण में है बिखरा पड़ा ईश्वर का वास

  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...