बुधवार, 11 दिसंबर 2013

मनवा की गति है न्यारी .............



हमारा मन समुंदर की मानिद ही है शायद
समेटे है मन ,समुंदर भांति अतुल गहराई
लहरों सम आते ढेरों उतार -चडाव
पा ना सका कोई इस मनवा की गहराई
सागर है समेटे ढेरों अदुलित राशि अपने दामन में
मिनटों में ज्वार -भाटा ,तत्काल गज़ब का ठहराव
अद्भुत शांति ,दिखे ऊपर से ना पाए कोई अंदर का उतार -चडाव
ना जाने कोई मन का गम -और देखे उसका दर्द
क्या सागर की लहरें गिन पाया है कोई ?
कदापि नहीं ,,,इस मनवा की भी गति है न्यारी
पल में है शांत .और पल में ही है दुश्वारी 

  कुम्भ है देश विदेश सम्पूर्ण दुनिया में छाया असंख्य विदेशियों ने भी आकार अपना सिर है नवाया सनातन में अपना रुझान दिखाया ,श्रधा में अपना सिर ...