गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

प्यारी बिटिया

सावन की बद्री में
झूलो की बद्री में
तुम याद बहुत आओगी
                    बारिश की फुहारों में
                     तृप्त करती  बौछरो में
                     तुम याद बहुत आओगी
मेहंदी के बूंदों में
रंग बिरंगे सूटों में
तुम याद बहुत आओगी
                    रंग बिरंगी चुनर में
                    लहंगे की घुमर में        
                    याद बहुत आओगी
मेघो की घन घन में
पायल की छन छन में
तुम याद बहुत आओगी
                            चमकती बिंदिया से
                             छनकति पायलिया में
                            तुम याद बहुत आओगी
                                              

शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

बरसता सावन

टिप -टिप गिरती बूंदों की आवाज़
कर रही थी यूँ रात्रि की निस्तब्धता भंग
दूर कही कोई छेड़ रहा हो जलतरंग 
झींगुरों की सरसराहट भी बना देती है अद्भुत समां 
कोई है मदमस्त सावन की रूमानियत में 
किसी का होश है हुआ इस सावन में गुमां 
नन्हे बालक ले रहे पूरा आनंद उस घुमड़ते सावन का 
अब कहाँ रहे वो भीगते प्रेमी युगल इस मद मस्त सावन में
हो गयी हैं अब यह किताबी बातें सिर्फ इस जहाँ में 
बदल लिया है अब शायद प्रकृति ने भी अपना स्वरुप 
ना वो रहे काले घुमड़ते ,लरजते ,बरसते मेघ 
न रहा वो सावन में भीगने ,लुत्फ़ उठाने का आनंद  

शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

झूट और फरेब


कितने झूठ ,कितने फरेब  कोई कब तक कर सकता है ?
शायद उम्र भर ......और अब उसको भी लगने लगा है 
की शायद वो है ही गुनाहगार  इन सब हालातों की वो है 
मुजरिम ,या शायद वक़्त खेल रहा है कोई खेल उसके साथ 
पर जब कोई बात बार -बार दोहराइ जाती है लगातार 
तब पत्थर पर भी पड़ जाती है दरार ,.........
स्याह को सफ़ेद और सफ़ेद को स्याह तो दिखा ही देती है यह दुनिया 
जब राम को दिखाया दुनिया ने आइना सीता के दुश्चरित्र का 
तो वो भी ना देख पाए सीता के सतीत्व को ,उसके प्रताप को 
 कब तक ? आखिर कब तक चलता रहेगा यह अत्याचार ?????????

मंगलवार, 14 अगस्त 2012

आज़ादी

आज़ादी के इतने बरस गए बीत और हुए क्या हम सच में आज़ाद
यह ना सोचा तनिक भी और ना ही हुए हम परेशां 
क्यूंकि जन्मते ही हम जकड़े रहे ताउम्र भाँति -भाँति की जंजीरों में 
और उन बेड़ियों का बंधन तो हमको लगने लगा अपना 
ना मुह से निकलती कोई आह ,,,ना लगता कोई बंधन 
भ्रष्टाचार ,आतंक ,हैवानियत ,जुल्म सहना तो अब बन गयी है हमारी गिज़ा 
न कोई खिलाफत ना ही कोई आवाज़ सब कुछ दब गयी है इस आत्मा में
कब तक ?आखिर कब तक हम सहेंगे यह अत्याचार और देंगे सब कुछ यह विरासत में
वक़्त रहते अब क्यूँ नहीं आता कोई कृष्ण अपना सुदर्शन चक्र लेकर
सब ना सही लेकिन करता कुछ तो पापियौं का अंत इस समाज से
ना हम सोच रहे हैं उन नौनिहालों की जो कल गिरेंगे इस से भी ज्यादा गर्त में
पूछा आज स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर कुछ बालको से बताने को कुछ शहीदों के नाम
बता ना सके वे 4 भी सेनानियौं के नाम सिर्फ एक गाँधी को छोड़कर किसी दूजे के भी
शर्म से झुख गया सर ,जुवां भी हो गयी स्थिर ना बता सका कोई बालक देश भक्ति -गान
बताने को सब तत्पर कटरीना कौन और कौन सलमान और शहरुख्खन
ना ही पता हमारा कौन सा है राष्ट्रीय खेल और कौन है रचयिता हमारे राष्ट्रीय गान का
अभी भी ना चेते तो हो जाएगी बहुत देर और तब ना भेद पायेगा कोई अभिमन्यु इस पाप का चक्रव्यूह
अब तो सुन लो पुकार दीना नाथ ,दीनबंधु और घुमा दो कोई जादू की छड़ी
कुछ ढीले हो अब हमारे बंधन और सीखें हम खुल के सांस लेना
नया परिवेश ,नयी स्वच्छ आत्मा ,नयी दुनिया बसा ले हम

मंगलवार, 31 जुलाई 2012

सावन की मस्ती

कब आया सावन ,कब बीता सावन जरा भी ना हुआ इसका गुमां
कहीं भी ना दिखी नवयौवना बढाती झूले की पींगे ,गाती कजरी बनती अद्भुत समां 
बरसते ,लरजते कारे -कारे बदरा भी जैसे भुला ही बैठे मदमस्त आसमां 
दीखे ना कोई प्रेमी युगल बतियाते ,भीगते इस मधुर सावन में 
सब कुछ हो गयी बिसरी बातें ,सावन रह गया कवियौं की कल्पना में 
हरियाला सावन था सिमट गया बस कुछ पन्नो में और रह गया था अतीत की कथाओं में 
अब न सुनाई पड़ती कजरी ,ना सावन के गीत ,ना सुनती पपीहे की आर्तनाद 
क्यूंकि अब हमने ना बचाए पेड़ -पौधे ,ना बाग़, ना बची वो हरितमा 
बना दिया है कंक्रीट का जंगल चहुँ ओर  व्यथित और परेशा नर -नारी  
ना दिखते छप -छप करते बालक ना सावन का आनंद लेते नर -नारी 

बुधवार, 25 जुलाई 2012

आइना

कितने झूठ ,कितने फरेब  कोई कब तक कर सकता है ?
शायद उम्र भर ......और अब उसको भी लगने लगा है 
की शायद वो है ही गुनेह्गर इन सब हालातों की वो है 
मुजरिम ,या शायद वक़्त खेल रहा है कोई खेल उसके साथ 
पर जब कोई बात बार -बार दोहराइ जाती है लगातार 
तब पत्थर पर भी पड़ जाती है दरार ,.........
स्याह को सफ़ेद और सफ़ेद को स्याह तो दिखा ही देती है यह दुनिया 
जब राम को दिखाया दुनिया ने आइना सीता के दुश्चरित का 
तो वो भी ना देख पाए सीता के सतीत्व को ,उसके प्रताप को 
कुब तक ? आखिर कब तक चलता रहेगा यह अत्याचार ?????????

























































































सोमवार, 23 जुलाई 2012

मेरे जिगर के टुकड़े





बच्चे कितनी जल्दी बड़े हो जाते हैं यह आज समझ आया
जब हमारे बच्चे ने हमको नेतिकता का पाठ पड़ाया 
वो सारी बातें जो हम थे रहे सिखाते उसको जिन्दगी भर 
एक पल में ही उसने उनको अमल में लाकर कर दिखाया 
फख्र है हमको तुम परअब जाकर महसूस हुआ बच्चों  
हमने यूँ ही नहीं अपना जीवन व्यर्थ है गंवाया 
  

रविवार, 22 जुलाई 2012

तीज का मनोहारी उत्सव ,

तीज का मनोहारी उत्सव ,भर देता है हर युवती के मन में कुछ अनूठी उमंग
साजन के प्यार में खिल उठता है उसका अंग और प्रत्यंग 
 बरसता सावन जैसे छेड़ देता है काया में उसकी सरस मृदंग 
सावन के झूले बड़ा देते हैं ह्रदय की उठती गिरती सांसो की सरगम 
यह सतरंगी त्यौहार है ही हमारे देश की अद्भुत रीति -रिवाजों की शान 
अल्हड ,बूढी और जवान सभी मनाएं इसको भिन्न -भिन्न रूपों में सजकर 
धानी लहरिया ,की ओढ़ चुनर सजे गोरी पहन हाथ भर भर चूड़ी और पाँव सजे महावर 

सोमवार, 9 जुलाई 2012

बदलती वयार

बिसरा दिया है मेघों ने भी सावन में बरसना
सावन के झूले भी अमुआ की डार पर ना दिखते हैं अब 
बच्चियो की मस्ती ,मेहँदी के पत्तों पर आपसी खटपट 
सब हो गयी हैं शायद गुजरे ज़माने की बातें  अब 
ना कानों में पड़ती है किसी भी गलियारे से चूडियो की खनखनाहट 
वो मेहँदी से रची हथेलियाँ अब ना दिखती हैं गावं ,कस्बो में 
शायद बढता स्कुल ,आफिस का दबाब दबा रहा है पुरानी परम्पराएं 
सुहागिनों का नैहर भी छूट रहा है त्यौहार पर जाने से 
परंपरा अनुसार तीज पर बाबुल घर लाये और भाई राखी बंधवा कर ससुराल पहुचाये 
 बदल गए हैं सब मायने वक़्त ,सहूलियत के अनुसार त्यौहार मनाने के 
अब कौनसा नया परिवेश बदल देगा सारे के सारे ख़ुशियों के पैमाने 

रविवार, 8 जुलाई 2012

वैदेही की व्यथा

आज दिव्या शुक्ल जी का लेख देखा उसी लेख पर वैदेही के लिए कुछ भाव .............
 वैदेही का तो हर युग मैं जनम ही हुआ है नारी जीवन का संताप भोगने वास्ते 
कभी जन्मी वो जनकसुता बनकर और पाए घोर कष्ट भार्या राम की बनकर 
जन्मी थी वो राजकुल में और व्याही भी गयी रघुकुल में सहचरी वो राम की बनकर 
पांचाली भी जन्मी थी राजकुल में और पाया था अर्जुन सा राजकुमार स्वयंवर में उसने 
पर वह री किस्मत ? विधि की लेखनी ने उल्टा दिया सारा का सारा किस्मत का लेखा -जोखा 
व्याही एक पति को ,और भोग्या बनी पांच पतियौं कीकुदरत का खेल निराला 
कितने ही किस्से ,कहानी भरी पड़ी है इतिहास में हमारे हर युग की वैदेही की 
रूप अनेकों पर वैदेही तो हर युग ,काल में रही है सिर्फ भोग्या ,शापित और अबला 
जब ,जैसे,जिस भी रूप में पाया है दारूण कस्ट उसने सदेव वैदेही रूप  में जनम्कर 

शनिवार, 7 जुलाई 2012

जिन्दगी की अजब कहानी




किस्मत से बढकर कुछ नहीं है मिलता देख लिया है जिन्दगी की आपा -धापी में
सब कुछ था अजमाया हमने बस समझ ये ही आया इस जिन्दगी की दौड़ा -भागी में 
सारी अक्ल ,सारी होशयारी बस रह जाती है धरी की धरी इस जिंदगानी में 
बड़े से बड़े बन्दों को देखा है मिलते खाक और मिटटी में इसी जिन्दगी में 
जो  लिखा कर आये है तकदीर अपनी वो ही पाते हैं सब सुख जिन्दगी में 
अक्सर देखा है बहुत से कर्मयोगी कर्म करते है पूरा इस जिंदगी में 
पर कुछ भी ना कर पाते हैं हासिल सारी की सारी जिंदगी में 
इस को भाग्य का लिखा कहा जाये या कहें किस्मत की बुलंदी 
बिना कुछ करे भी वो सब कुछ पा जाते हैं जिन्दगी में 
  

मंगलवार, 3 जुलाई 2012

जीवन

जिन्दगी का पहिया इतनी तेज़ी से रहा था भाग
हम सोच रहे थे कि हमने तो इसको बाँध रखा है मुटठी में 
पर वो तो खिसक रहा था मुट्ठी में बंद रेत की मानिद 
कब हो गया हाथ खाली हमको पता ही न चला 
और समेट भी ना सके एक भी कण उस रेत का 
जो समय जाता है गुजर लाख चाहो तो भी न पा सकोगे ऊम्र भर 
क्योँ नहीं समझ पाया मानुस वक़्त रहते यह गणित
बस फिर बटोरता रहता है रेत के टुकडो को जीवन भर 

शनिवार, 30 जून 2012

सावन की फुहार



प्यासी धरती ,सूखे अधर ,व्याकुल तन -मन
कातर नैन किसान के है तकते आसमान 
मरणासन्न पपीहा नभ को तके आये न उसको चैन 
अतृप्त चक्षु मांगे इश्वर से बरसा दो जल दिन- रैन 
पपड़ाए अधर और बोझिल काया कहीं न पाए चैन 
धरा ,नर -नारी ,पशु -पक्षी सभी हैं आसन्न और बैचैन 
अब बरसा भी दो नेह अमृत सा और सबकी रूह पाएं चैन 

मंगलवार, 26 जून 2012

अनचाहे मेहमान

आजकल जिन्दगी में कुछ अनचाहे मेहमान आ बैठे हैं
ना कोई न्यौता ,ना कोई सन्देश बस आ बैठे हैं 
क्रोध ,जलन ,ईर्ष्या ,जैसे यह अनचाहे हैं मेहमान 
रोज इनको चाहते हैं जिन्दगी से अपनी भगाना 
पर यह पाहून हैं ऐसे ढीठ कि जिन्दगी में गए हैं रच -बस 
ना होती है इनकी कोई पूछ फिर भी ना जाना चाहते हैं 
रोज अपने अस्तित्व का एहसास भी हरदम कराते हैं 
कैसे इन मेहमानों को करू में विदा बताएं आप सब मुझको ?????????

गुरुवार, 24 मई 2012

भूले बिसरे दिन

बिसर गए वो दिन जब सब भाई बहिन होते थे इकट्ठा
सुबह से होता था जी भरकर उधम ,और हंसीठठठा
ना कोई था समर कैंमप ,ना था होम वर्क का टनटा 
दिन भर थी बस हंसी -ठिठोली और था बस मस्ती का फनडा 
कहाँ गए वो दिन ,वो खिलखिलाहटों से चहकते घर आँगन 
सब कुछ भुला दिया इस जीवन की आपाधापी ने दिन -प्रति दिन 
काश हम लौटा लौटा  पाते   न न्हे नौनिहालो का मासूम बचपन 
जहाँ घुमते वो निर्द्वंद ,लेते भरपूर छुट्टी का वो भरपूर आनंद 
बर्फ का गोला .चुस्की और कच्ची कैरी के चटकारे बड़ा देते जीवन का रंग
कभी जाते थे छत पर ,और सोते थे खुली हवा में लेकर मच्छर दानी  का आनंद 
पर अब तो हो गयी सब भूली -बिसरी बातें  और ना रहे वो आनंद 

बुधवार, 23 मई 2012

देखा आज एक पूर्ण पल्लवित पलाश का एक वृक्ष अपने पूर...

देखा आज एक पूर्ण पल्लवित पलाश का एक वृक्ष
अपने पूरे यौवन ,पूरे शबाब के साथ खड़ा था वो 
अपनी पूर्ण विकसित शाखों को यूँ फेलाए  था वो 
जैसे लेने को आतुर हो प्रेयसी को अपनी बाँहों में 
तन पर लपेटे था वो पीत वसन की चादर चहुँ ओर 
रिझा रहा था वो अपने पीले पुष्प गिराकर अपनी प्रेयसी को 
हर कोशिश थी उसकी भरसक प्रेमिका को लुभाने की 
कभी देखा है ऐसा निशब्द प्रेमालाप किसी भी प्रेमी का 
जो बिन बोले ही सब कुछ कह देता है पूर्न मौन रहकर  

शनिवार, 12 मई 2012

ना कोई चिट्ठी .ना कोई संदेस पंहुचा सकते हैं हम वंह...


ना कोई चिट्ठी .ना कोई संदेस पंहुचा सकते हैं हम वंहा
चली गयी हो माँ आप हम को छोड़ कर जहाँ 
रोज़ रोता है दिल ,और तिल तिल-तिल मरते हैं हम यहाँ 
सोचा भी न था कभी ऐसा भी होगा हमारे साथ यहाँ 
जिंदगी में जैसे एक झंझावत आया और फैला सब यहाँ -वहां 
साडी दुनिया मना रही है मात्-दिवस हमारी नज़रे हैं सिर्फ वहां 
जहाँ आप जा बैठी हैं,क्यूँ नहीं हमसे मिल सकती हैं यहाँ ??????????????? 

गुरुवार, 10 मई 2012

कन्या भ्रूण हत्या है आजकल सबसे सनसनीखेज खबर पर जो ...



कन्या भ्रूण हत्या है आजकल सबसे सनसनीखेज खबर
पर जो रोज तिल -तिल मर रही उनकी न किसी को खबर 
लगता है विधाता ने उस जात की किस्मत में ही लिखा है मरना 
कुछ को पेट में ,कुछ को है बाहर आकर जलना और मरना 
होती हैं कुछ जो जीती हैं जिन्दगी पूरे मान और सम्मान से 
आमिर ने भी कन्या भ्रूण की तो बात की पूरी शान से 
पर रीना को वो भी छोड़ बैठे है जीने को पूरे अपमान से 

रविवार, 8 अप्रैल 2012

मन का कोना


संगीत है .स्वर बिखरे हैं ,कोलाहल है पर मन का कोना खाली है
शहनाई है ,बाजा है ,बारात है ,बाराती है पर मन का कोना खाली है
नवबालको का रुदन है .उनका क्रंदन है पर मन का कोना खाली है
बाल अठखेलियाँ  हैं ,,मस्ती है हठ है पर मन का कोना खाली है
छायाहै सर्वत्र उल्लास , घर करता पाहुनों का इंतजार पर मन का कोना खाली है
यह कैसी लीला है उस प्रभु की ?कि मन का कोना शायद विधाता भरना भूल जाता है
हम जब हुई थी पैदा तो बताया कि बड़े होने पर खाव्ब होंगे पूरे
बड़े होने पर समझाया शादी के बाद ही बेटियां सपने पूरे करती हैं
विवाह के बाद पता चला माँ बनने के बाद ही नारी होती है सम्पूर्ण
 तो न तो बचपन में मन का कोना भर पाया न ही युवावस्था में
यह ही है हकीकत हम सभी नारी जात की  

बुधवार, 4 अप्रैल 2012

जीने की आशा


जान अपनी कितनी होती है कीमती देखा कल निज आँखों से
पकड़ा था लोगो ने एक चोर को रंगे हाथ अपने हाथों से
कितना मार-मार कर किया था लहूलुहान लातों और घूंसों से
 मरंतुल ही लगभग हो चुका था वो इन्सान अपनी सांसो से
उस भीड़ में हर इन्सान ने लगभग हाथ साफ़ कर ही लिए थे
गूँज उठा तभी पुलिस van का सायरन कही दूर से
जरा सबकी नज़र हटी .और हो गयी पकड़ ढीली उस चोर से
उस मुर्दा शरीर में जान पड़ी इतनी तेज़ी और जोर से
वो भागा इतना सरपट बचने को उस खतरनाक भीड़ से
क्या जिन्दगी  जीने का जज्बा बना देता है इतना मज़बूत अंदर से
सुना ही था ,पड़ा था किताबो में पर देखा आज आँखों से  

मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

टूटते रिश्ते


जीवन के है अद्भुत रूप और विचित्र रंग
आज किसी का साथ और कल दुसरे का संग
ना है रत्ती भर उनको साथ छोड़ने का गम
बरसों की दोस्ती बस यूं ही भुला दी पाने को किसी और का संग
वो सारे लम्हे जो थे बांटे साथ बैठ कर एक संग
एक पल में ही उड़ा दी सारी धज्जियाँ रूई की मानिद
ना रखे कुछ भी अपने पास मीठे एहसासों का संग  

बुधवार, 28 मार्च 2012

गम


ऐसा क्यूं होता है की किसी के हिस्से ढेरों गम ?
ज़माने  के ढेरो जुल्म और अनगिनत सितम
क्यों वो दे देता है सारी काएनात की रुसवाई किसी एक को
जरा भी ना सोचता है अपने नेक बन्दे का दर्देगम  

रविवार, 25 मार्च 2012

पाषाण हिरदय

सब कहते हैं कि इंसान वक़्त के साथ बदल जाया करते हैं
समाज ,तजुर्बे ,उम्र ,रिश्ते आखिर बदल ही देते हैं कुछ इंसानों को 
पर जो पाषाण- ह्रदय ही जन्मे थे इस जग में कुछ भीं ना कर पाते हैं 
वक़्त,हालत चाहे दे उनको कितनी भी चोटे वे जस के तस रह जाते हैं 
क्या देखा है कभी किसी शिला को टूटते समंदर कि लहरों से ??
नहीं ना ,,,ना बदला दुर्योधन और  ना ही बदल सका अपने को पापी कंस
ना ही बदली कुटिल चाले शकुनी मामा की और ना ही बदल पाया दुष्ट रावन 
यह या तो नियति या फिर प्रवृति का ही होता है खेल 
पहले भी सबने की थी  पत्थरों से दरिया बहाने की नाकाम कोशिश  
पर ना तब ही कंस बदला और ना ही वो सब बदले अब ............

माँ के भक्त

माँ के भक्त बने वो घंटो मंदिर में कीर्तन किया करते हैं
घर आकर पत्नी और बेटी पर सितम धाय करते हैं 
नवरात्री में सिर्फ फलाहार  का सेवन किया करते हैं 
बेटी और माँ भूखे पेट ही सो जाया करते हैं 
दक्षिणा में मिले रूपए मदिरालय में जाया करते हैं 
माँ -बेटी फूटी कौड़ी को भी तरस जाया करते हैं 
रखते तो माँ के व्रत हैं पर हर स्त्री पर कामुक नज़र रखते हैं 
माँ -बेटी को दरिंदगी की हदों से भी बदतर रखते हैं 
मंदिर में माँ की महिमा का बखान करते हैं 
घर पर लात घूंसे से ही बात आरम्भ करते हैं 
इतना बदसूरत विरोधाभास  हम अक्सर अपने आसपास देखा करते हैं 

शनिवार, 17 मार्च 2012



होली के पावन-पर्व पर कुछ वेह्शी दरिंदो ने हमारे जंवाज पुलिसअफसर नरेन्द्र सिंह की निर्मम हत्या कर दी  उनकी पत्नी माँ बननेवाली हैं इस घटना ने सबको झिंझोर दिया  उनको शिरिधांजलि स्वरुप कुछ मन से निकले भाव........
तन का रंग तो सबने खूब धोया पर निज हिरदय में न झांक पाया कोई 
काया तो कर ली सबने कोरी अपनी पर दिल और आत्मा न बदल पाया कोई 
आतंक ,दहशत ,जुलम ,झूट और फरेब के पक्के रंग जो दिल में थे हमने जुदाए 
काश ,,हम तनिक झांक पते अंतस में तो देता न हमको कुछ भी दिखाई 
छुड़ा पाते एक भी इन अमानुषिक रंगों की परत ,,न होती मानवता यूं बदरंग
मात -पिता के साथ मनाता अजन्मा उनका मासूम लाल 
होली के सबरंग ,,,सबरंग और होली के सबरंग   

होली

होली आयी,फिजाओं में सप्तरंग और बागों में भी है कोयल चेह्काई
ब्रिध -बालक ,नर -नारी और युवा तन -मन सभी पर है मस्ती छायी
रंग ,गुलाल इतर की खुसबू इन सबने है अद्भुत छठा बिखराई
गुझिया ,समोसे ,चाट -पकोड़ी और प्रेमियौं ने तो है भांग घुट्वाई
जीजा -साली ,देवर -भावी जैसे सभी रिश्तों ने दी है होली की दुहाई 
लाल -पीले ,,हरे- नीले सरीखे रंग और गुलाल में रंगकर है मनाई 
है हम सबने खूब होली है मनाई ,,,खूब होली मनाई ............  

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

प्रेम दिवस


आज दुनिया मना  रही है बेलेंतिने  दिवस
अद्भुत प्रेम प्रदर्शन करने का सुंदर दिवस
सिर्फ एक दिन ही क्यूँ इस प्रेम के लिए
३६४ दिवस क्या कम हैं इस प्रेम के वास्ते
क्योँ झुटा प्रेम प्रदर्शन ,क्योँ झूटे हाव-भाव इस दिवस पर
अगले वेर्ष कौन सा रिश्ता रहेगा साथ ,किसी को न पता आज इस दिवस पर
मीरा का अपने आराध्य से अद्भुत प्रेम ,राधा का सांवरे से अनोखा प्रेम
सीता का राम से प्रेम ,और सावित्री का सत्यवान से अतुलनीय प्रेम
सब भुला बैठे हम और अपना बैठे पाश्चात्य शैली दिखाने को प्रेम
जिसकी ना कोई नीव ,ना ही मंजिल ना ही कोई है भविष्य
बस अन्धानुकरण करना पश्चिम का और दिखाना दो घडी का झुटा प्रेम
मात्र एक दिवस का प्रदर्शन कर, क्योँ? हो रहे हम शामिल इस आपाधापी में
हमारी सभ्यता ,बेद ,पुराण तो रचे -बसे पड़े हैं हमको बताते इस प्रेम से
 गुरु -शिष्य ,माता -पिता ,बहिन -भाई ,पति -पत्नी ,मित्र ,बंधू ,वान्धव
ढेरो है रिश्ते  ,कभी भी कही भी निभाने को इस अद्भुत प्रेम को
तो फिर क्यूँ ना रंग जाये प्रेम के इन अनगरित रूपों में
और साल के ३६५ दिन रोज़ मनाये प्रेम दिवस के रूप में  

शनिवार, 21 जनवरी 2012

त्रासदी


सुबह पेपर में पड़ाएक युवक ने की आत्महत्या
दो दिन से था पेट खाली पोस्त्मर्तम रिपोर्ट ने यह बताया
गरीबी का था आलम की पूरा परिवार समां जाता एक गुदरी में
न सर पर था छप्पर ,न पेट में भोजन जीवन की मार्मिक त्रासदी मन को न भाई
हम बातें करते हैं २१वी सदी की ,चाँद पर जाने की सबने है जुगत भिडाई
पर वह रे मानव तुजसे तो यह इश्वर प्रदत्त धरा न सम्हाल पाया
जितना दिया तुझको उस विधाता ने पहले उसको तो तू सहेज
सर पर छेत,पेट में अन्न ,और थोडा सा वस्त्र इतना सा भी तू न सबको दे पाया

मकर संक्रांति


आज थी मकर संक्रांति और था मांगने वालों का रेला
तभी नज़र पड़ी  कोने में कड़ी था एक वृद्ध अकेला
पास बुलाया और पुछा बाबा क्या चाहिये ?
बोला कुछ नहीं बस दुआएं दिए जा रहा था
वृद्ध काया ,पोपला मुह,शीतल वायु फटे वस्त्र उडाये जा रही थी
धीमे -धीमे रेंगते रेंगते सड़क पर बस घिसट रहा था
कहा बाबा घर से न निकला करो सड़क पर गिर जाओगे
बोला हम कहाँ निकलना चाहते है बेटा ,कमबक्त ये पेट नहीं मानता
न पत्नी ,न परिवार  न ही औलाद है हमारे पास
पर क्या करे बेटी घर पर नहीं वैठकर भर पता यह पेट
हमारे तो अब तुम सब बच्चे हो जिन्होंने न सोने दिया कभी भूखे पेट
 निशब्द रह गए थे हम उसका जबाब सुनकर
सब कुछ छीनकर भी प्रभु ने दिया उसको सबका प्यार

गुरुवार, 19 जनवरी 2012

सर्दी का मौसम


सर्दी का मौसम अमीरों को ही है भाया,बेचारे गरीब की तो वैसे ही लाचार है काया
गर्मी की मार तो वो झेल ही जाता है ,गिरते छप्पर में टूटी झोपडी में जी ही जाता है
दीवारों के सूराखों से घुसती प्रचंड वायु हिला जाती है गरीब की सम्पूर्ण काया
नस्तरों की चुभन से भी ज्यादा घायल कर जाती गरीब का तन और मन
बिना बिछावन के और बिना रजाई इस शीतल पूस की रात्रि में
कैसे जी सकता है इंसा ?..जिसने भोगाउसी का जाने तन ............
हाड कपाँदेने वाली ठण्ड में भी कैसे जिया जाता है इन गरीबो से कोई सीखे
बदन पर तार-तार हुई वस्त्र ,नस्तर चुभातीशीत वयार
हडियाँ तक कंपा जाती हैं अमीरों की बैठते हैं दिन भर जो हीटर ,अंगीठी को जलाये
पर यह लाचार खुद और परिवार समेटे काटते हैं कैसे पूस की रात ?
मर -मर के जीना फिर उठाना फिर मरना तो शायद  नियति और जिन्दगी है इनकी







  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...