गुरुवार, 18 दिसंबर 2014

जख्म माँ के ..



गहरी निद्रा के आगोश में सोये मासूम नौनिहालों को डांट-डपटकर
झटपट माँ ने किया होगा तैयार ,लंच -बॉक्स को वक्त पर खाने की नसीहतें
भी दी होंगी हज़ार ,मुस्कराता वो चेहरा ,बाय-बाय करती वो गूँज आज करती
दिल की किरचें हज़ार ,वो लख्तेजिगर जो गया था अभी विद्यालय जाने को बाहर
उन आततायियों का कलेजा ना पसीजा एक बार भी उन मासूम फूलों को देख
खिलने से पहले ही रौंद डाला उन जल्लादों ने ,इंसानियत को किया शर्मसार
क्या गुजरी होगी उस माँ पर जो खाने की थाली संजोये तक रही थी राह अपने लाडले की
पर ना आया वो मासूम आई थी उसकी छत -बिचत देह जो काफी थी चीरने को कलेजा बाप का ,क्यूंकि अब ना था वो मासूम अपनी जिद्देँ पूरी करवाने को अपने बाप से
रीता कर दिया था घर आँगन उन जेहादियों ने कितने ही घर परिवारों का
एक पल ना सोचा कि मारा तो उन्होंने दोनों तरफ माओं को
एक तरफ मरी बेमौत उन मासूमों की माएं ताउम्र

और दूसरी तरफ उन जेहादियौं की अपनी माएं क्यूंकि इंतज़ार तो वो भी
कर रही थी अपने बच्चों का ,जना तो उन्होंने अपनी कोख से सिर्फ बच्चा ही था
ज़माने ने उनको बनाया था जेहादी ,किया था जिन्होंने कोख को शर्मसार
एक तरफ थे मारनेवाले बच्चे और एक तरफ मरने वाले बच्चे
जख्म तो खाए दोनों तरफ सिर्फ और सिर्फ माँ ने ,सिर्फ माँ ने

बुधवार, 15 अक्तूबर 2014

परिवर्तन

बिदाई की बेला में जानकी को दीं थीं ढेरों नसीहतें माँ और तात ने
वास्ता दिया था निभाने को दोनों कुल की मर्यादा और पति का साथ
निभाया भी था जानकी ने ,कर गईं वनगमन बिना वाद्प्रतिवाद के
युवराज को तनिक भी एहसास ना हुआ उस नव्व्याही वधु के सपनों ,अरमानों का
माँ के वचनों की शायद ज्यादा एहमियत लगी थी सुकुमार को
पर उन वचनों का क्या ?जो वेदी पर लिए थे अग्नि को साक्षी मानकर
वन में ना बचा पाए  कुंवर निज सुता का अस्तित्व
बाँध गए मात्र एक सूक्ष्म सी लक्ष्मणरेखा के दायरे में
क्या -क्या ना वरपा उस मासूम पर उस दारुण वन में
कैसे की होगी अपने सतीत्व की रक्षा ,उन अमानुषों में
कल्पना मात्र से ही सिहर उठता है तन और मन
क्या किस्मत लिखवा कर लायी थी जनकसुता
अभी देखने थे और दारुण दुःख उस सुकुमारी को
निभाए जा रही थी जो मैथिली और अयोध्या की परम्पराओं को
तनिक भी हठ ना किया और निभाती रहीं पत्नीधर्म
यूं ही किसी के कहने मात्र से कर दी गयी वो बेघर
ना जाने से होता उनके पति की मर्यादा का हनन ,निशब्द त्याग दिया घर -आँगन
उस प्रसूता को घर से निकाल निभाई कौन सी मर्यादा यह ना जान सके हम
पर अब सीता ने भी जीना सीख लिया है ,उस लक्ष्मण -रेखा को लांघना भी लिया है सीख
अपनी सफाई में कहने को हैं आज उसके पास कुछ सबूत ,बरसों झेला है उसने वनवास
बेबजह झेली है रुसवाई उसने क्यूंकर ओढ़े रहे मायूसी का दामन
और क्योँ दे वो निरपराध अग्निपरीक्षा या समा जाये वेवजह धरती में
मु श्किलों ने कर दिया है अब उसका हौसला बुलंद ,.......
जमीं और आसमां दोनों  हैं अब उसकी मुट्ठी में ,ना कि उसमें समां जाने को ..........

शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

आधुनिकता का कहर

इस ज़माने में कई चीज़े हैं जो मिलनी नामुमकिन सी हो गयी हैं .......
पार्टीस में हाय- हेल्लो करने वालों की दुनिया में भरमार मिलेगी
पर आपके दुःख को समझने वाली दोस्तों की कमी मिलेगी
माता -पिता तो आपको समाज में ढेरों मिलेंगे
पर बच्चों के साथ वक्त गुजारनेवाले शायद दो चार मिलेंगे
हर इंसा की जिंदगी में मसरूफियत इतनी बड गयी है
कि सच्चे रिश्तेदार भी दो चार मिलेंगे
घर -व्यापार के लिए कर्मचारी तो सैंकडो मिलेंगे
पर काम को अपना समझने वाल्व ना मिलेंगे
दुःख -दर्द बांटने को सारा समाज इकठा होगा
पर दर्द समजने वाले एक दो भी ना होंगे
अस्पताल में फोन तो मिजाजपुर्सी वास्ते ढेरों आएंगे
पर वहां रहने वाले हरगिज़ ना मिलेंगे
दुःख तकलीफ में राय देने वाले ढेरों हमदर्द मिलेंगे
पर सही मशवरा देने वाले दूंदे ना मिलेंगे
सच कहूँ तो आस -पास बच्चे तो ढेरों मिलेंगे
पर माँ -बाप के लिए फ़र्ज़ पूरा करने वाले दो चार ही मिलेंगे ...........




छुट्टी वाले दिन अचानक दो- चार दिन पहले जी टीवी का जिंदगी चैनल देखा ,बहुतअच्छे लगे उसके प्रोग्राम .....अब जिसको भी बता रहे हैं सभी कह रहे हैं हम भी देख रहे हैं लगता है हम सभी सोनी ,कलर्स ,स्टार आदि सभी चैनलों के फूहड़ ,भद्दे प्रोग्राम्स से ऊब चुके हैं ..लिपा-पुता चेहरा ,भारी लहंगे ,साडी ,ढेरसे विलेन,बनावटीपन आखिर हमारे चैनल वाले कुब तक हम सबको बेबकूफ बनाते संयुक्त परिवारों की धज्जी जिस तरह यह उड़ाते हैं वो नाकाबिले वर्दाश्त होता जा रहा है .......एक हफ्ते में ही जिंदगी चैनल के हमको ढेरों प्रशंसक मिल गए ...जागो चैनल वालों जागो

शुक्रवार, 15 अगस्त 2014


महाभारत सीरियल देखकर उधृत कुछ भाव.
काश महाराजा ने वृद्धावस्था में अपने पाडिग्रहण की .अपेक्षा
पुत्र भीष्म का .पाडिग्रहण संस्कार किया होता तब शायद कुरुवंश की बुनियाद सुद्रण होती
पितृ- प्रेम से लबरेज भीष्म ने को अपनेकाश आजीवन अविवाहित जीवन का संकल्प ना किया होता तो विमाता ने इतना अनर्थ ना कुरुवंश पर अपनाया होता ...
युधिष्टर को बचपन से ही इतना निरंकुश ना बनाया होता
काश उसके विवाह की बुनियाद धोखे की नीव पर कुरुवंश ने ना रखी होती
तो गांधारी के भ्राता को इतनी कुटिल चालों का दामन ना थामना पड़ता
बहिन के उज्जवल  भविष्य की कामना हर भ्राता का होता है सपना
काश गांधारी ने पति -प्रेम में नेत्रों पर ना बंधी होती पट्टी ....
और देख पाती अपने नौनिहालों को ,दे पाती उनको उच्च संस्कार
दुशासन ,दुर्योधन जैसे वीर पुत्रों के बल ,विद्या का कर पाती सदुपयोग
कुरु -वंश का परचम समस्त धरा पर फैराने में ,ना की यूं जमीदोज होने में
काश कुंती ने विवाहोपरांत पति को कर्ण  के जीवन का सत्य बताया होता
तो बेचारा अबोध बालक इतनी भर्त्स्याना,विष का गरल जीवन भर ना पीता
पग -पग पर मिली सामाजिक प्रतारणा उस निश्पापी को दुर्योधन जैसे पापी
का दोस्त बनने को कदापि ना प्रेरित करता ,ना ही कुटिल शकुनी के हाथो कठपुतली बनता
कदापि द्रुपद कन्या ने स्वयंवर में सूत-पुत्र कह कर्ण का भरी सभा में उपहास ना उड़ायाहोता
 काश कुंती ने पुत्रों की विवाहोपरांत वधु आगमन पर सारी बात  ध्यान से सुनी होती
तो कुंती ने अपना समस्त वैवाहिक जीवन यूं पांच पतियौं  के बीच ना गुजारा होता
दुर्योधन को अन्ध्पुत्र कह उसका अपमान कर पांचाली ने किया जो बड़बोलेपन का अनर्थ
उन व्यंगोक्तियौं ने दी भरपूर हवा शकुनी ,और दुर्योधन की कुटिल चालों को
काश शकुनी ने वक्त रहते सोचा होता अपने घर परिवार के वास्ते एक घडी भी
ना बने होते इतने निरंकुश उसके भगिनी -पुत्र  ,ना भगनी होती यूं निरवंशी
गर भीष्म पितामह ,द्रोणाचार्य ,कृपाचार्य ,सबने वक्त रहते युधिस्टर ,दुर्योधन को
यूं निरंकुशता पूर्ण शासन ,और आदेश ना माने होते तो शायद महाभारत युद्ध ताल जाता
पर होनी तो हो के रहती है और सार यह है की अति सर्वथा वर्ज्येते .........

बुधवार, 4 जून 2014

नेक सलाह का शगल

दुनिया को नसीहतें देने का था शगल,सो निभाते रहे
सही और गलत से उनको रूबरू करवाते रहे
अपने लिए कांटे, गैरों की राह फूलों से सजाते रहे
उनकी मुसीबतों को कमकरने के चक्कर में खुद भंवर में उतराते रहे
आज तक ना समझ सके वो गलती कर रहे थे या हम
इस नामाकूल शौक के चलते दोस्त कम दुश्मन ज्यादा बनाते रहे
सच्ची राह दिखाना ,नेक सलाह देना गर है गुनाह तो हम गुनाह ताजिन्दगी करते ही रहे

सोमवार, 2 जून 2014

आधुनिकता की तेज बयार




मृतक की आत्मा की शांति हेतु रखे जाने पाठ भी
अछूते ना बचे हैं आधुनिकता की तेज बयार से
थोथा दिखावा ही बन कर रह गयी हैं प्राचीन रूदियाँ
किसी अपने का गम कम ,ना आने वालों का गम होता है ज्यादा
उसकी यादें सालती हैं कम ,उपस्थित संगत पर ध्यान होता ज्यादा
हम आने -जाने वालों की गिनती में ही उलझे रह जाते हैं ज्यादा
तनिक भी स्मरण नहीं करते उस पवित्र आत्मा को जो विलीन हो गयी ईश्वर में
अपने व्यापार ,कामकाज ,को निपटने की बस रहती है हमको हड़बड़ी
अपना घर ,बच्चे ,दुनिया के रासरंग के मकडजाल ने उलझा रखा है हमको इतना
तनिक ध्यान ना जाता कि हम क्या सिखा रहे अपने लाडलों को
हमारे पास जब वक्त है इतना कम अपनों को स्मरण करने वास्ते
तो वो बेचारे अपना कीमती वक्त कैसे निकालेंगे हमारे वास्ते ..........

मंगलवार, 13 मई 2014




बचपन से ही ज्यादातर लड्कियौं को सिखा दिया जाता है
यह करो ,वो ना करो ,यहाँ जाओ .वहाँ ना जाओ .....
उनकी सोच ,उनकी समझने की शक्ति को कुचल दिया जाता है
उनके वस्त्र ,उनकी शिक्षा ,उनका घूमने -फिरने के दायरे पर
हम खींच देते हैं एक लक्ष्मन -रेखा ,जिसके भीतर सिमट जाते हैं उनके सपने
उनका जीवन बन के रह जाता है ,माफिक एक पर -कटे परिंदे के
जिसको रख देते हैं एक पिंजरे में ,और वक्त पर परोस दिया जाता है भोजन
क्योँ नहीं हम दे पाते हैं ?उनको एक स्वछंद वातावरण ,एक उन्मुक्त जीवन
काश हम सब दे पाते एक नीला ,सुंदर आसमां अपने पंख फडफडाने को
जिस गगन तले जब चाहें,जैसे चाहें अपने पंख फडफडाने को ......

रविवार, 11 मई 2014

माँ

हर पल याद आता है वो माँ का निश्चल प्यार -दुलार
वो दांत-फटकार ,वो उलहाने ,आँखों में समाया था उनके छोटा सा संसार
हर घडी उनका रोकना -टोकना लगता था तब कितना निरर्थक
पर आज यूं लगता है जीवन हुआ है उन सीखों से कितना सार्थक
अप नी पीड़ा ,दुःख ,तकलीफ का ना होने दिया कभी एहसास
बस बच्चे ही थे उनकी दुनिया ,और वो रही सदा अपनी धुरी के आसपास
आवाज़ से ही जो जान लेती है बच्चों की पीड़ा ,और ईश्वर से जो मांगे औलाद के गम
अपने दामन में भरने को..... संसार में सिर्फ कर सकती है  सिर्फ माँ ,माँ और माँ

गुरुवार, 8 मई 2014

घरोंदा

घर के आँगन में रखे छोटे पेड पर देखी कुछ ज्यादा ही चहल-पहल
दो नन्ही खूबसूरत चिडियाँ का बढ़ गया था एक छोटे से बोनसाई पर
उत्सुकता बड़ी ,जाकर देखा बड़ा ही अद्भुत घोंसला बना लिया था चटपट दोनों ने
इतनी बेमिसाल कारीगरी से दोनों ने बनया था अपना नया आश्याना
छोटे छोटे तिनके संजोए थे दोनों ने पूरी शिद्दत के साथ अपने नए घरोंदे के वास्ते
तेज आंधी भी ना डिगा पा रही थी उनका अद्भुत घरोंदा ,ना हिला सका प्रचंड बारिश का वेग
एक या शायद बस दो दिन में ही बना लिया था दोनों ने वो घोंसला
आज दोनों पक्षी थे नदारद ,ना दिखी उनकी चहल-पहल
अचनक नज़र पड़ी तो देखी बैठी चिडया घोसले में अपने अण्डों के साथ
प्रकृति के कितने हैं अद्भुत रूप और रंग ............
प्रसव से मात्र एक या दो दिन पहले ही निकले थे दोनों चिड़ा-चिडया एक साथ
अब मात्र माँ ही अण्डों को से रही है ,कर रही है वो बालकों का इंतज़ार
चिड़ा अब है नदारद शायद किसी और दिशा में कर गया है पलायन
पर माँ को तो अब है इंतज़ार अपने नौनिहालों का .........

गुरुवार, 10 अप्रैल 2014

नन्ही बिटिया



जब गर्भ में थी बिटिया तो कभी ना आया ख्याल उस गुनाह का
क्यूंकर हम हत्या करने जा रहे थे मासूम जिंदगी की ,नन्ही कली की
क्योँ ना हुआ गुमा हमको एक पल भी उस मासूम का अस्तित्व नेस्ताबूत करते वक्त
जब -जब कोई पायल की सुनेंगे रुनझुन याद आयेगी यह ही बिटिया
रंगीन ओड़नी,सितारों से लकदक लहंगा देख रोयेगा मन इस बिटिया को याद कर
हाथों पर मेहँदी के बूटे सखियों के देख रुकेगी ना आंसूओ की लड़ी
नवरात्रों में जब ना होगी कोई कन्या आसपास पूजने को उसके पाँव
भाईओं की जब रहेगी सूनी कलाई ,ना दिकेगी कोई बहिन उनके आस -पास
माँ की पीड जो समझ लेती चुटकी बजाते पल -भर में ,
नन्ही कलाइयों में रंग -बिरंगी चूड़ी खनकाती ना  नज़र आएगी मासूम बिटिया
सुबह आँख खुली और सपना टूटा,और बच गए हम उस गुनाह से
जो करने जा रहे थे क्रूरतम पाप अपने हाथों से  

बुधवार, 9 अप्रैल 2014

कन्या






कल नवमी पर गए थे मंदिर माता के दर्शन करने ,वहां देखा जगह -जगह भंडारे हो रहे थे और बड़ी चहल -पहल थी बड़ा शोर था  पास जाकर देखा तो कन्याओं के वास्ते लड़ाई हो रही थी क्यूंकि कुछ ही बच्चियां वहां पर नज़र आ रही थी और उनको लेकर खींचातानी हो रही थी ,उन कन्याओं को पूजा और भोजन वास्ते हर कोई अपने साथ ले जाना चाह रहा था  बच्चियां कह रही थी भूख नहीं है ,हम थक गए हैं पर आज तो उनके पैर छू -छू कर मनाया जा रहा था ......वाह रे विधाता क्या किस्मत लिखी है स्त्री जात की बस एह दिन मान -मनुहार अगले दिन ही तिरस्कार  आज भरपेट भोजन कल से ही अत्याचार ,यूं ही सिलसिला चलता रहा भ्रूण -हत्या का ,बहुओं को यूं ही जलाते मारते रहे ,लड्कियौं की अस्मत  यूं ही पाँव तले रौंदते रहे तो वो दिन दूर नहीं कि हिन्दुस्तान के स्थान पर विदेश जाना होगा बहु लेने .....   कई राज्यों में तो विवाह हेतु कन्याओं कीबहुत कमी हो गयी है ...........

शनिवार, 8 मार्च 2014

अपने -पराये





यह जिंदगी के चक्र का अजीब फलसफा है
कभी यह शीर्ष पर तो कभी गर्त में गिराता है
शीर्ष पर सुख और गर्त में घनघोर सताता है
काश ,हो जाये कुछ ऐसा कि चले मनमाफिक वक्त का पहिया
अपनों और गैरों की पहचान यह वक्त का पहिया ही कराता है
यूं तो सब अपना दिखाने का करते हैं हर वक्त ढकोसला
पर रंगें सियारों की पहचान तो यह ही कराता है


गुरुवार, 6 मार्च 2014

नवयुगल


यात्रा में मिला एक नवयुगल ,प्रेमरस से जो था सरोबार
पूरे रास्ते जो खींच रहा था सबका ध्यान अपनी ओर बार -बार
अभी- अभी जो लौट रहे थे शायद हनीमून से अपने घर- बार
ट्रेन में सारे रास्ते करते जा रहे थे असभ्यता बार -बार
यूं सारे राह ना उनका स्नेह प्रदर्शन भा रहा था किसी भी सहयात्री को 
जैसे ही निकट आया उनका स्टेशन पत्नी के रंग बदले बार -बार
पति पर चीखी की उतारो सूटकेस और निकालो सामान तत्काल
नौकर की भांति लपका वो और रखा सूटकेस उसके चरणों में तत्काल
निकला चूड़ी का डिब्बा और पहना चूडा ,सजा ली कलाई उसने
दी सिन्दूर की डिब्बी पति के हाथ ,हुकुम साथ भरने को गहरी मांग
लगाने को कहा बिंदिया माथे पर ,ना था कोई शीशा उसके पास
पर्स से निकाले बिछिया , और नेलपालिश सजाने को हाथ -पाँव
झट तैयार हो गयी वो नव व्याहता .देखे सबने उसके रंग हजार
क्या वो बिच्या ,मांग सब पति प्रेम का प्रदर्शन था?
या सास का डर उसको कर रहा था मजबूर इस नाटक को करने को
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गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014




हे त्रिपुरारी जब ,जब प्रथ्वी पर असुरों का आतंक छाया है ,दानवों ने कोलाहल मचाया है आपने सदेव तीसरा नेत्र खोलकर इन राक्षसों को भस्म किया है ,प्राणिमात्र की सदेव रक्षा की है ....जागो और अपने भ्रमास्त्र का सदुपयोग करो यह धरती पापों के दावानल तले गर्त में जा रही है आतंकी ,बलात्कारी .झूटे ,मक्कार जैसे सैंकडों दानवों ने अपना सर्वस्व साम्राज्य फेला लिया है ....जागो शिवा जागो

सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

लाचारी और बेबसी



देखा कल राह में एक अद्भुत नज़ारा
एक बूढा ,क्रश्काए शरीरसे लाचार था बेचारा
ठेले पर था सजाये कुछ छोटी -मोटी चीज़ों की दुकान
जो थीं उस गरीब की रोज़ी -रोटी का सामान
ठेले को हाथ जोड़कर चूम रहा था बार -बार
बुदबुदा रहा था कोई मंत्र मन में बार -बार
क्योंकि रोज सांझ को घर का चूल्हा जल पाता है सिर्फ
उसकी दिन भर की कमाई से ,चलता है घर- परिवार
जैसे करते हैं पूजा -इबादत बड़े-बड़े सेठ साहूकार अपने प्रथिष्ठानों की
वो गरीब भी कर रहा था उतनी ही इबादत अपने थोड़े से सामान की
आँखों में ढेरों सपने सजा कर बड चला वो अपनी मंजिल की ओर
पत्नी और बच्चे भी देख रहे सूनी आँखों से उसको जाते दूर 

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

हाय री किस्मत



बचपन से ही पाथते रहे ईटें ,वो बच्चे भट्टों पर
देखते गुजरती रही उम्र ईंटों को उनकी भट्टों पर
सबके आश्याने वास्ते हाथों से बन गयीं लाखों ईटें
पर वो गरीब बना ना सका एक खोली भी उम्र भर
उफ़ ,,,,,कुदरत के खेल भी हैं कैसे अनोखे
जो दर्जी सीता रहा सबके वस्त्र उम्र भर
अपने लिए ना जोड़ पाया साबुत एक कमीज़ उम्र भर 

खुदा की नेमत


कभी रोना रोते रहे कि किस्मत नहीं साथ दे रही
कभी रोये सुनकर कि सेहत नहीं साथ दे रही
कभी रही तकलीफ कि हालत नहीं साथ दे रहे
कभी था रोना कि परिवार साथ नहीं दे रहा
पूरी उम्र निकाल दी रोते -रोते ,ईश्वर को कोसते -कोसते
कभी दायें -बाएं मुड़कर ना देखा ,जो था पाया उसको ना सराहा
उस ईश्वर ने जो दिया ,उसको हमेशा था ठुकराया
अब मौत का आ गया बुलावा दरवाज़े पर
तो था वो अब हमको खुदा याद आया 

सोमवार, 17 फ़रवरी 2014

नवप्रसूता का अप्रितम सौंदर्य




अपने लाल को स्तनपान कराती नवप्रसूता का अप्रितम सौंदर्य
उसकी आँखों से टपकता अद्भुत लाड़-दुलार
कपोलों पे छलकती मातृत्व की लालिमा
माँ की आत्मा भी जैसे एकाकार होने को लालायित
अपने बालक में ,उसके सम्पूर्ण अस्तित्व में
उसके एक रुदन पर माँ का चहक उठना जैसे हुआ हो आघात खुद उस पर
कानों में बजें माँ के सुमधुर घंटियाँ ,ज्यों मुस्का भी दे लाल
क्या ऐसा अद्भुत सौंदर्य धरा पर किसी से तुलना करने योग्य है
इस सौदर्य के आगे सभी विशेषण रह जाते बौने ,कोरे अस्तित्वहीन 

शनिवार, 15 फ़रवरी 2014



जब मस्तिस्क हो शून्य ,दिमाग भी ना दे साथ
सौंप दे जीवन नैया तब अपनी प्रभु के हाथ
राह हैं वो दिखाते मानुस छोड़ते ना तेरा हाथ
सब होते हैं दरवाज़े बंद ,देतें हैं वो ही नन्ही सी रौशनी की किरन
खाती है जब -जब नैया तेरी हिचकोले ,तो सम्हाले भी प्रभु आकर हौले -हौले
इंसा के अर्जित कर्म ,पुण्य ,पाप जीवन पथ पर बिखेरते हैं जरूर
कंटक हों या हों वो पुष्प ,पर अगर पतवार सौप दी प्रभु को
तो हो जाओ निश्चिन्त ,अब अपना कामवो करता जरूर
हमारे साथ यह ही तो समस्या है सबकी  कि
चाहते सब हैं कि प्रभु कर दे सब ठीक परन्तु उसकी रजा  में है ना यकीन
यकीं करो पूरा और छोड दो सब कुछ उसके ऊपर 

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

बीती बात



संत कहते हैं,बीती ताहि बिसर दे आगे कि सुध ले ,
पर क्या यह संभव हो पाया खुद उनसे
दिल कि चोट को क्या भूल पाए देव ,मानुस ,नर या किन्नर
ज़ख्म भले भर गया  पर नासूर तो टीसता रहा है सदेव
 चाहे राम हो या रावण ,कृष्ण हो या कंस
वक्त का फायदा उठाया सबने और पुराने ज़ख्मों का भी हिसाब चुकाया
द्रोपदी ने भी लिया अपने अत्याचार का बदला
अंधे का पुत्र अंधा कहकर हिसाब था उसने चुकाया
जब किसी का बस नहीं है पुराने ज़ख्म भूल पाने पर
तो कैसे हम इंसान बिसराएँ पुराणी यादों को 

रविवार, 9 फ़रवरी 2014

द्रुपद -सुता की पीड़ा




नियति को कब और क्या है हमारी किस्मत में मंजूर 
सबब इसका है जानना नामुमकिन ,हमारी पहुँच से है दूर 
चंद लम्हों में बदल देती है किस्मत, होता है वही जो रब को है मंजूर 
चिर -प्रतीक्षित प्रियतम से व्याह की कल्पना में डूबती-उतराती दृपद्बाला 
खोई थी उसकी प्रतीक्षा में कुब आएगा वो बांका सलोना श्रेष्ठ धनुर्धर 
कभी निराशा से देखती धनुर्धरों से विहीन मंडप ,और कभी निराश पिता को
कि शायद आज रह जायेगी बेटी बिन व्याही और होगा परिहास समस्त संसार में
पर विधना ने तो कुछ अद्भुत खेल लिखा था उसके भाग्य में .........
जंगल जाते -जाते मुड गए राजकुमार उसके घर आँगन में
मन था प्रमुदित द्रोपदी का ,पा गयी थी वो मनवांछित वर
देखा था जिसका उसकी आँखों ने हर प्रहर ,हर घडी सपना
बेध दिया चड भर में सर्वश्रेठ धनुर्धर ने मछली के नेत्र को
स्तंभित रह गयी थी सभी वीरों की सभा ,निकली सबके दिल से एक आह
पिता ,पुत्री ,भाई सबका पूर्ण हुआ सपना खिल उठा था तन -मन द्रुपद सुता का
अभी वासुदेव का खेल था बाकी जिसका ना था किसी को गुमां
जानते थे वासुदेव कि पाँचों पांडवों का तेज ,बाहुबल,शौर्य
धरा पर कोई सम्हाल सकता है तो सिर्फ वो है द्रुपद कन्या
मुख से माँ के कहला दिया कि बाँट लो भिक्षा सब आपस में
पल भर में हुआ बज्रपात नवबधू के सपनों का ,बिखरे सारे अरमान
विधना कौन सा खेल खेलेगी पल भर में ना हो सकता मानुस को गुमान

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

कर्ण का दावानल

महाभारत सीरिअल में देखकर दिल में यह ख्याल आया 
कि जीवन पर्यंत अंगराज कर्ण ने कितना विरल दुःख उठाया 
पग -पग पर बालक कर्ण को तानों के दावानल नेरोज जलाया होगा 
कितनी अवहेलना का दंश कर्ण ने जीवनपर्यंत उठाया होगा 
माँ के जीवित होते भी मात्रबिहीन कहलाया जाता रहा होगा 
तिरस्कृत जीवन जीना उसने बचपन से ही सीख लिया होगा
राजकुमार होते हुए भी सदा सूतपुत्र सुनता आया होगा
वाह रे विधि कि विडम्बना कि माँ को बालक कभी माँ ना कह पाया होगा
पांच -भाईओं के होते भी जीवन भर वो परिवार की मृगतृष्णा ने भरमाया होगा
साथ ही उस माँ के दर्द की पीड़ा का कोई ना लगा सकता है अंदाजा
जिसने मानमर्यादा की खातिर पुत्र को कभी अपने सीने से ना लगाया होगा
ऐसे माँ और पुत्र इतिहास में शायद और कोई ना रहे होंगे कि
जिन्होंने हर पल ,हर दिन और बरसों इस जहर का प्याला रोज अपनी नसों में उतारा होगा

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014


सदैव से ही हम बालकों को आशीर्वाद देते वक्त कहते आये हैं की बेटा खूब तर्रकी करें, खूब फूलें -फलें पर क्योँ ना अब हम उस आशीर्वाद में थोडा इजाफा भी कर दें कि बच्चों तरक्की जरूर करो किन्तु अपने पाँव जमीं पर सदेव रखो ,जमीं पर पाँव जमाकर ही आसमान कि ओर देखो ईश्वर आपका मार्ग प्रशस्त करेंगे ......

मंगलवार, 21 जनवरी 2014

देश के नेता





जब घर- द्वार ,अंदर-बाहर कंही भी जमा हो जाये धुल -मिटटी 
तो लेती है जरूर काफी वक्त हटाने में वो गंदगी 
पर ना जाने क्योँ चाहते हैं हम बस कुछ ही लम्हों में एकदम सफा करना उसको 
जो काई जमीं है बरसों से उलीचना उसको है नामुमकिन 
यह ही हाल है कुछ मेरे देश का इस वक्त दोस्तों 
अरे ,हम किसी पार्टी ,नेता की ना कर रहे हैं तरफदारी दोस्तों
जब इतना लंबा अरसा गुजार दिया गंदगी के दामन में
तो फकत कुछ वक्त तो दो नए बन्दों को
हमारे देश की जड़ों तक जो फ़ैल चुका है जहर इस नामुराद गंदगी का
उसको बुहारने का ,जड़ों तक पहुचने को जरूरत है कुछ नए इंसानों की
अब तक फैलाया है मकडजाल जिन्होंने उसको तोड़ने की
शायद इनसे सीखें कुछ सीख पुराने देश के करनधार
की हो गयी है अब जनता भी तैयार अपना परिवेश साफ़ करने को
वो भी सीख गयी है आस -पास फैली गंदगी बुहारना
अब जो नेता कुछ करेगा वही देश का परचम फैलाएगा

शनिवार, 18 जनवरी 2014

बेटियां और धान का पौधा

बेटियां और धान का पौधा ,पाते हैं दोनों एक सी किस्मत
बोई जाती हैं कहीं ,रोपी जाती हैं रही और कंहीं ....
किस्मत होती अच्छी ,मिलती पौधे को उपजाऊ जमीं
खिल उठता ,फल -फूल जाता पाकर उचित देखभाल
बेटियां भी अगर पाती संस्कारी परिवार ,तो दमक उठता उनका रूप
बरना तो कम पानी ,बंजर जमी में जैसे तोड़ देता दम पौधा
बेटियां भी तिल -तिल रोज मरती हैं नए परिवेश में
करनी होती है दिल से दोनों की देखभाल नए माहौल में
थोड़ी सा भी ध्यान दिया नहीं की खिलखिला उठते हैं दोनों
अच्छी फसल धान की भरती है जैसे घर किसान का
वैसे ही भर देती हैं बेटियां ससुराल का आँगन ढेर सी खुशिओं से ......

गुरुवार, 16 जनवरी 2014

लक्ष्मण रेखा .......




क्यों कर हम बचपन से सदेव लड़किओं को ही देते रहे हैं उपदेश 
हमारी माँ ने हमको समझाया बाल्यकाल से ही हमारी मर्यादा की सीमायें 
जो हम सुनते आये थे उन्ही परम्पराओं की डोरी से बाँधा अपनी बच्यौं को 
अब जब हमारी बच्ची बन गयी है खुद मां तो कहते सुना उसको सब यथावत 
चार पीड़ी से चल रही हैं लड्कियुं के लिए सब कुछ वैसे का वैसा ........
ना समाज में ,ना घर में ,ना देश में बदला है कुछ स्त्रियुं के वास्ते
ना सतयुग ,ना त्रेता युग और ना ही कलयुग ला पाया तनिक सा भी बदलाव
जो लक्ष्मण रेखाएं खिचीं थी सतयुग में ,बरक़रार है आज भी उन रेखाओं का वजूद
प्रताडना ,नित नए जुल्म,जलाना,बलात्कार , मानसिक शोषण बरक़रार हैं यूँ ही
कभी किसी राम ,कृष्ण के लिए नहीं खींची कोई रेखा ना हम आज भी सिखा रहे
कोई मर्यादा का पाठ अपने लडको को की रहें वो भीतर अपनी लक्ष्मण रेखा के
संयम का पाठ पढाना जरूरी है उनको भी बालपन से ही लड्कियुं के साथ -साथ .....

बुधवार, 15 जनवरी 2014

शरद ऋतू

शरद ऋतू में कभी बंद दरवाजे की झिरी के पास तनिक बैठ के देखो
मिनटों में एहसास हो जायेगा उस बेदर्द सर्द हवा का जो गलाती है हड्डी
रोज उन गरीबो की जिन्होंने कदाचित कभी कपडा ही ना डाला हो जिस्म पर अपने
कभी गुजारकर देखो एक रात बिना किसी छप्पर के ,छत के सिर्फ एक रात
तड़प -तड़प जायेगा वजूद ,सिहर जायेगी आत्मा बगेर किसी आसरे के
होगा शायद थोडा चड भर का एहसास उन बेघरों का जो सिर्फ मिटटी में ही
पैदा होते और वहीँ मर मिट जाते ,बगेर किसी घर -द्वार के
सोने को बिस्तर ,तन पर कपडे ,थाली में भर पेट भोजन
अंग -हीन काया देख करो अदा शुक्रानाउस परवरदिगार का
जो बक्शी है सुंदर काया उसने तुमको और बरसाई हैं ढेरों नेमते तुम पर
रात -दिन मे एक प्रहर सो कर देखो कभी भूखे पेट कुलबुलाती अंतडियो
से होगा महसूस उस भूख का जो कभी ना होने दी महसूस उस विधाता ने तुमको
सिर्फ एक चड का शुकराना ही काफी है उस ईश्वर के वास्ते ,सिर्फ एक चड का
कितनी रहमतें है बरसाईं उसने हम पर,पर हम रहे उसके नाशुक्रे ही ताजिंदगी
ना खुद को रख पाए कभी खुश ,ना सजदा किया दिल से उस उपरवाले का
अब भी है जिंदगी में काफी वक्त उसका शुक्रिया अदा करने का ,सजदा करने का ........... 

रविवार, 5 जनवरी 2014

माँ की तेहरवीं पुण्य तिथि पर



आप चली गयीं उस जहाँ में जहाँ ना कोई आपसे मिल सकता
लगता है हर पल आप यहीं हैं ,हर पल यहीं हैं ........
घर ,आँगन में है हर पल आपका प्यार -दुलार है बरसता
देहरी जोहती है बाट आपकी ,करके गयीं थीं उससे वापिस आने का वायदा
हर पल मन दूंद्ता है आपको ,पर है ना कोई फायदा .......
पता नहीं कि हमारी तकलीफ  का अंदाज़ हो रहा होगा आपको कितना
बस दिल से सभी करतें है यह ही दूया आप जहाँ हो खुश रहो
क्योंकि अब धीरे -धीरे डाल ली है आदत जीने कि आपके बिना ...........

  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...