बचपन से ही पाथते रहे ईटें ,वो बच्चे भट्टों पर
देखते गुजरती रही उम्र ईंटों को उनकी भट्टों पर
सबके आश्याने वास्ते हाथों से बन गयीं लाखों ईटें
पर वो गरीब बना ना सका एक खोली भी उम्र भर
उफ़ ,,,,,कुदरत के खेल भी हैं कैसे अनोखे
जो दर्जी सीता रहा सबके वस्त्र उम्र भर
अपने लिए ना जोड़ पाया साबुत एक कमीज़ उम्र भर
देखते गुजरती रही उम्र ईंटों को उनकी भट्टों पर
सबके आश्याने वास्ते हाथों से बन गयीं लाखों ईटें
पर वो गरीब बना ना सका एक खोली भी उम्र भर
उफ़ ,,,,,कुदरत के खेल भी हैं कैसे अनोखे
जो दर्जी सीता रहा सबके वस्त्र उम्र भर
अपने लिए ना जोड़ पाया साबुत एक कमीज़ उम्र भर
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