गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011
Roshi: प्रेम दिवस यानी वैलेंनटाइन-डे
Roshi: प्रेम दिवस यानी वैलेंनटाइन-डे: "बढ़ गया है युवा पीढ़ी में कुछ ज्यादा ही इसका क्रेज संत वैलेंनटाइन को भी ना पता होगा कि यह आयेगा फेज युवा, बच्चे सभी ..."
Roshi: बसंत
Roshi: बसंत: "बसंत ऋतू आई ,साथ ही अपने हैं बसंती बयार लाईशरद ऋतू में ,साथ ही थोड़ी सी नरमी भी है आई  ..."
प्रेम दिवस यानी वैलेंनटाइन-डे
बढ़ गया है युवा पीढ़ी में कुछ ज्यादा ही इसका क्रेज
कुछ दिल से ,कुछ दूसरो को देखकर दौड रहे है इसके पीछे
वैलेंनटाइन-डे के विषय में जब नहीं पता था हमको
तब क्या प्यार , मोहब्बत का नाम ज्ञात नहीं था हम सबको
लेकिन अब तो पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण कर रहे हैं देखकर सबको
जिस भी तरह से आधुनिक दिखाई दें वही भा रहा है हम सबको
श्रवण कुमार का माता पिता से स्नेह और भरत का भात्र प्रेम
सावित्री का पति प्रेम , शबरी का प्रभु प्रेम क्या यह कम थे
हमारा इतिहास , हमारी परम्पराएं , हमारे आदर्श तो सब ठक गए
नव विकसित समाज से , नई सभ्यता से , नई परम्पराओं से
पर समय चक्र तो यूं ही चलता रहेगा और जरूर आएंगा बदलाव
हमारे बीच भी होंगे भरत , श्रवण कुमार , शबरी और सावत्री
और हम भारतीय भी मना सकेंगे इसको कुछ नया नाम देकर
प्रेम दिवस यानी वैलेंनटाइन-डे
संत वैलेंनटाइन को भी ना पता होगा कि यह आयेगा फेज
युवा, बच्चे सभी मनाना चाहते हैं इसको देकर तोहफे अच्छेकुछ दिल से ,कुछ दूसरो को देखकर दौड रहे है इसके पीछे
वैलेंनटाइन-डे के विषय में जब नहीं पता था हमको
तब क्या प्यार , मोहब्बत का नाम ज्ञात नहीं था हम सबको
लेकिन अब तो पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण कर रहे हैं देखकर सबको
जिस भी तरह से आधुनिक दिखाई दें वही भा रहा है हम सबको
श्रवण कुमार का माता पिता से स्नेह और भरत का भात्र प्रेम
सावित्री का पति प्रेम , शबरी का प्रभु प्रेम क्या यह कम थे
हमारा इतिहास , हमारी परम्पराएं , हमारे आदर्श तो सब ठक गए
नव विकसित समाज से , नई सभ्यता से , नई परम्पराओं से
पर समय चक्र तो यूं ही चलता रहेगा और जरूर आएंगा बदलाव
हमारे बीच भी होंगे भरत , श्रवण कुमार , शबरी और सावत्री
और हम भारतीय भी मना सकेंगे इसको कुछ नया नाम देकर
प्रेम दिवस यानी वैलेंनटाइन-डे
बसंत
बसंत ऋतू आई ,साथ ही अपने हैं बसंती बयार लाई
शरद ऋतू में ,साथ ही थोड़ी सी नरमी भी है आई
पावन पवन सभी के तन को बहुत ही हैं सुहाई, बालक,वृद्ध,युवा सभी को हैं पुरवाई भाई
अम्बर में रंगीन पतंगो की अदभुत छठा है छाई
क्या बच्चे ,क्या युवा सभी जन ने हैं हुर्दंग मचाई
घरों की छतें जो साल भर रहती है अनछुइ
उन्ही छतों पर गीत, संगीत और धमाचौकडी है मचाई
प्रकृति ने मानो धरा पर पीत पुष्पों की चादर है फेहराई
सर्वत्र उल्लास और बगियन में भी बौरों पर भी अमराई छाई
कोयलिया की कूक ,पशु -पक्षियौं ने भी ली है अब अंगडाई
ऐसी है हमारी बसंत ऋतू तभी यह ऋतूओं कि रानी कहलाई
शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011
मुलाकात
आज हुई मुलाकात एक नवयुवती से
जिसकी हुई थी अभी-अभी सगाई
मुलाकात हुई उसकी काली-घनेरी फैली जुल्फों से
मुलाकात हुई उसके ललाट पर चमकती बिंदिया से
मुलाकात हुई उसकी आँखों में पलते मीठे सपनो से
मुलाकात हुई उसके लज्जा युक्त-रक्त होते कपोलो से
मुलाकात हुई उसके अनछुए लरजते काँपते होठो से
मुलाकात हुई उसके चहरे पर छाई अदभुत लालिमा से
मुलाकात हुई उसकी गर्व से उठी ग्रीवा से
मुलाकात हुई उसकी अल्लहड़ अनछुई जवानी से
मुलाकात हुई उसकी नाजुक बलखाती कमरिया से
मुलाकात हुई उसकी मदमस्त चाल से
मुलाकात हुई उसके लहराते हुए आंचल से
मुलाकात हुई उसकी नई मीठी बातो से
नव संबंधो ने ही एक दिवस में उस युवती
पल भर में ही जवां और हसींन बना दिया था
ऐसा ही होता है प्रेम बंधन ...
जिसकी हुई थी अभी-अभी सगाई
मुलाकात हुई उसकी काली-घनेरी फैली जुल्फों से
मुलाकात हुई उसके ललाट पर चमकती बिंदिया से
मुलाकात हुई उसकी आँखों में पलते मीठे सपनो से
मुलाकात हुई उसके लज्जा युक्त-रक्त होते कपोलो से
मुलाकात हुई उसके अनछुए लरजते काँपते होठो से
मुलाकात हुई उसके चहरे पर छाई अदभुत लालिमा से
मुलाकात हुई उसकी गर्व से उठी ग्रीवा से
मुलाकात हुई उसकी अल्लहड़ अनछुई जवानी से
मुलाकात हुई उसकी नाजुक बलखाती कमरिया से
मुलाकात हुई उसकी मदमस्त चाल से
मुलाकात हुई उसके लहराते हुए आंचल से
मुलाकात हुई उसकी नई मीठी बातो से
नव संबंधो ने ही एक दिवस में उस युवती
पल भर में ही जवां और हसींन बना दिया था
ऐसा ही होता है प्रेम बंधन ...
शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011
Roshi: गणतंत्र दिवस
Roshi: गणतंत्र दिवस: "गणतंत्र दिवस आया और चला गया वही परेड,वही ध्वजारोहण ,वही भाषण दोहराया गया बात तो हमारे नेता सब आधुनिकता की करते है पर हमारे न..."
गणतंत्र दिवस
गणतंत्र दिवस आया और चला गया
वही परेड,वही ध्वजारोहण ,वही भाषण दोहराया गया
बात तो हमारे नेता सब आधुनिकता की करते है
पर हमारे नेता परम्पराएं वही पुरानी दोहरातें है
जब हमारे नेता ,देश के करनधार आज भी
कही भी ,कुछ भी नया नहीं सोच पाते है
तो फिर क्यों ? वो हमसे कुछ नया चाहते हैं
गाँधी नेहरु और इन्द्रा को ही दोहराते है
क्यूंकि वो सब उनकी मज़बूरी है -परंपरा है
क्यों नहीं एक भी बार "सालस्कर" ,"करकरे" ,"अशोक कामते"..
और "मनोज पाण्डेय" ,"शशांक सिंधे" का नाम जुवां पर लाते
बच्चे, युवा ,बुजुर्ग लगभग सभी हैं परिचित हैं इन नामो से
उनकी क़ुरबानी ,जज्बा ,देश प्रेम से ही कुछ सीखें हम
अपनी जान गंवाकर इन शहीदों ने भी दिया है बहुत कुछ
हमको ,हमारे देश को ,हमारी आने वाली नस्लों को बचाकर
हमारे नेताओं ने इन सभी वीरों को कर दिया सम्मानित
और कर दी गयी ईतिश्री उनके बलिदानों की
इनके त्याग , इनके हौसलों की खबरें तो छपी
पर उस कवरेज को भी ढँक लिया हमारे नेताओं ने
नेताओ और आतकियों के आगे तो हमारे शहीद छुप गए
और भुला दिए गए उनके बलिदान, हमारे गणतंत्र दिवस पर
क्यूंकि २६ जनवरी को यूँही इसी रूप में मनाना
हमारी परंपरा है ......मज़बूरी है ...?
वही परेड,वही ध्वजारोहण ,वही भाषण दोहराया गया
बात तो हमारे नेता सब आधुनिकता की करते है
पर हमारे नेता परम्पराएं वही पुरानी दोहरातें है
जब हमारे नेता ,देश के करनधार आज भी
कही भी ,कुछ भी नया नहीं सोच पाते है
तो फिर क्यों ? वो हमसे कुछ नया चाहते हैं
गाँधी नेहरु और इन्द्रा को ही दोहराते है
क्यूंकि वो सब उनकी मज़बूरी है -परंपरा है
क्यों नहीं एक भी बार "सालस्कर" ,"करकरे" ,"अशोक कामते"..
"सालस्कर" ,"करकरे" ,"अशोक कामते". |
बच्चे, युवा ,बुजुर्ग लगभग सभी हैं परिचित हैं इन नामो से
उनकी क़ुरबानी ,जज्बा ,देश प्रेम से ही कुछ सीखें हम
अपनी जान गंवाकर इन शहीदों ने भी दिया है बहुत कुछ
हमको ,हमारे देश को ,हमारी आने वाली नस्लों को बचाकर
हमारे नेताओं ने इन सभी वीरों को कर दिया सम्मानित
और कर दी गयी ईतिश्री उनके बलिदानों की
इनके त्याग , इनके हौसलों की खबरें तो छपी
पर उस कवरेज को भी ढँक लिया हमारे नेताओं ने
नेताओ और आतकियों के आगे तो हमारे शहीद छुप गए
और भुला दिए गए उनके बलिदान, हमारे गणतंत्र दिवस पर
क्यूंकि २६ जनवरी को यूँही इसी रूप में मनाना
हमारी परंपरा है ......मज़बूरी है ...?
मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011
अबला
"अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी" "आंचल में है दूध और आँखों में पानी"
पढकर, लिखकर और सुनकर ही बड़ी हुई थीं मै
बचपन में था सोचा की कितना कमजोर बना दिया हमको
पर पाया था कहीं भी कोई कोई भी ना बदलाब जवानी में
तुम लड़की हो, लड़की की तरह रहना, खाना पीना और सोना
बहुत सी आजादी भी थीं, पर साथ ही बेड़ियाँ समाज की
सोचा अभी क्या, बदलाब तो आयेगा ही समाज में ?
हम हो तो गए आधुनिक पहनाबे में, रहने-सहने में
पर जरा भी तो ना बदला समाज देने में ताने ?
" नो वन किल्ड जेसिका" देखकर याद आ गयी "सुभद्रा जी कि कविता"
पहले दी थी सीता ने अग्निपरीक्षा, अब मार दी गई "जेसिका"
आज "शीलू-निषाद" हो या हो वो "पांचाली"
चीर हरण तो हर युग में हुआ ही है उस "अबला" का
आज बन गयीं हूँ नानी पर फिर भी समझाती हूँ हर वक्त यही जुबानी
कल मेरी माँ मुझको देती थी यही नसीहत बताकर कहानी
कि लड़की-जात ही है देने को क़ुरबानी ?
आज बताती हूँ यही अपनी "बेटी" को कि वो भी रखे ध्यान अपनी "बेटी" का
इस बहशी समाज सोसायटी और घर भीतर-बाहर फैले दरिंदो से
क्यूंकि यह तो हर वक्त ढूँढते है "जेसिका और शीलू" को लेने उनकी क़ुरबानी
जरा भी ना बदली - ना बदलेगी यह परिभाषा की अबला जीवन, हाय तेरी यही कहानी. .......?
पढकर, लिखकर और सुनकर ही बड़ी हुई थीं मै
बचपन में था सोचा की कितना कमजोर बना दिया हमको
पर पाया था कहीं भी कोई कोई भी ना बदलाब जवानी में
तुम लड़की हो, लड़की की तरह रहना, खाना पीना और सोना
बहुत सी आजादी भी थीं, पर साथ ही बेड़ियाँ समाज की
सोचा अभी क्या, बदलाब तो आयेगा ही समाज में ?
हम हो तो गए आधुनिक पहनाबे में, रहने-सहने में
पर जरा भी तो ना बदला समाज देने में ताने ?
" नो वन किल्ड जेसिका" देखकर याद आ गयी "सुभद्रा जी कि कविता"
पहले दी थी सीता ने अग्निपरीक्षा, अब मार दी गई "जेसिका"
आज "शीलू-निषाद" हो या हो वो "पांचाली"
चीर हरण तो हर युग में हुआ ही है उस "अबला" का
आज बन गयीं हूँ नानी पर फिर भी समझाती हूँ हर वक्त यही जुबानी
कल मेरी माँ मुझको देती थी यही नसीहत बताकर कहानी
कि लड़की-जात ही है देने को क़ुरबानी ?
आज बताती हूँ यही अपनी "बेटी" को कि वो भी रखे ध्यान अपनी "बेटी" का
इस बहशी समाज सोसायटी और घर भीतर-बाहर फैले दरिंदो से
क्यूंकि यह तो हर वक्त ढूँढते है "जेसिका और शीलू" को लेने उनकी क़ुरबानी
जरा भी ना बदली - ना बदलेगी यह परिभाषा की अबला जीवन, हाय तेरी यही कहानी. .......?
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...
-
आज हुई मुलाकात एक नवयुवती से जिसकी हुई थी अभी-अभी सगाई मुलाकात हुई उसकी काली-घनेरी फैली जुल्फों से ...
-
मुखौटे चडे हैं चेहरों पर ,पहचानना है नामुमकिन गर मुखौटा हटा कर देखो हर चेहरा मुस्कराता दिखेगा यक़ीनन बड़े से बड़े शूरवीर भी खा गए धोखा असल नक़...
-
माँ का स्पर्श होता जादुई तिलिस्म औलाद के वास्ते जन्म से चंद लम्हों में ही पा जाती औलाद सम्पूर्ण सुख दुनिया के माँ के आंचल में सिमटी होती ब...