चाट के ठेले के पास देखे दो बालक चुपचाप ,लालच भरी निगाह से खड़े
निस्तेज चेहरा ,जीर्ण -शीर्ण काया,धूल -मिट्टी से अटे ,कुछ पाने की इच्छा से खड़े
दयनीय भाव से भीख मांगते ,शायद भूखे भी थे दिखते ,उम्मीद से कुछ पाने की
बार -बार करते थे गुजारिश , पैसे दे दो खाना नहीं मिला, गुजारिश थी पैसों की
हमने कहा पैसे नहीं कुछ खिला देते हैं ,तत्काल थे वो लपके ठेले पर सब खाने को
पल भर में खत्म किया खाना ,देख उनको दो अश्रु हमारी भी आँख से टपके
भूख क्या होती है ?,भोजन की अहमियत का ना था एहसास हुआ हमको कभी
आज था जाना अपनी भरी थाली का मोल ,जब जेब में ना हो पास टका कभी
अन्न का दाना है कितना बेशकीमती ,जब थाली सिर्फ दूर से देखनी हो कभी
शुक्र अदा करो उस ईश्वर का जिसने अता की इतनी नेमते ,जानकर आपको खास
बेशकीमती है यह भोजन की थाली, जिसको है ना मयस्सर ,पूछो उससे आज .....
--रोशी
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